जुबिली न्यूज डेस्क
पिछले महीने हरियाणा के हिसार जिले में एक स्कूल का फर्जीवाड़ा सामने आया है। स्कूल में टीचर से लेकर छात्र सब फर्जी है। इतना ही नहीं फर्जी कक्षाएं भी चल रही थी। जब मामला प्रकाश में आया तो हरियाणा स्कूल शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन ने स्कूल के खिलाफ कोई कार्रवाई न कर इस पर केवल एक लाख का जुर्माना लगाया। हाईकोर्ट ने चेयरमैन के इस फैसले पर सवाल खड़ा किया है।
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा स्कूल शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन की कार्यशैली के प्रति कड़ा रुख अपनाते हुए राज्य के मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि फर्जी छात्र और फर्जी क्लास रूम मामले की अपनी निगरानी में विस्तृत जांच करवाएं। इस जांच में बोर्ड व बोर्ड के चेयरमैन से लेकर निचले स्तर के अधिकारी की भूमिका के बारे में भी जांच कर हाईकोर्ट में रिपेार्ट दी जाए।
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उच्च न्यायालय ने यह आदेश एक याचिका की सुनवाई में दिया है। याचिका के अनुसार यह मामला हिसार जिले के डीएन पब्लिक स्कूल बरवाला का है। इन छात्रों ने दसवीं कक्षा का उनका परिणाम घोषित न करने के बोर्ड के आदेश को चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट के नोटिस पर बोर्ड ने परिणाम घोषित न करने पर अपना जवाब दायर कर कहा कि जनवरी में स्कूल पर बोर्ड की कमेटी द्वारा छापा मारा गया था और पाया गया कि शिक्षक और छात्र स्कूल में उपलब्ध नहीं थे। जब कमेटी ने पूछताछ की तो कहा गया कि छात्र खेलने गए हैं और जल्द ही आने वाले हैं। एक घंटे के बाद कुछ छात्र सिविल ड्रेस में आए और उन्हेंं कक्षा एक से पांच तक के बच्चों के क्लास रूम में बैठा दिया गया।
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इन कमरों में छोटे बच्चों के बैठने के मुताबिक फर्नीचर था। शिक्षकों ने कड़ी पूछताछ पर स्वीकार किया कि वह किसी दूसरे स्कूल के शिक्षक हैं। इन गंभीर अनियमितताओं को देखते हुए बोर्ड ने जून में स्कूल पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाने का आदेश दिया।
बाद में स्कूल द्वारा जुर्माना न जमा करने के आधार पर बोर्ड द्वारा छात्रों का परिणाम घोषित नहीं किया गया था। इस पर बच्चों की तरफ से वकील ने कहा कि यह स्कूल व बोर्ड का मामला है। बच्चों को बोर्ड द्वारा एडमिट कार्ड जारी किए गए थे। ऐसे में दोनों के बीच विवाद के चलते उनको दंडित नहीं किया जा सकता।
उच्च न्यायालय यह देखकर आश्चर्यचकित था कि बोर्ड चेयरमैन ने कोई सख्त कदम उठाने के बजाय, स्कूल पर केवल एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया। स्कूल फर्जी छात्रों के साथ फर्जी कक्षाएं चला रहा था, जो छात्र वास्तव में कक्षाओं में भाग नहीं ले रहे थे, लेकिन उन्हेंं नियमित छात्रों के रूप में परीक्षा देने की अनुमति दी जा रही थी।
उच्च न्यायालय ने बोर्ड को एक सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ताओं के परिणाम को घोषित करने का निर्देश देते हुए मुख्य सचिव को चेयरमैन समेत सभी अधिकारियों की कार्यशैली की जांच करने के आदेश दिए।
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