जुबिली न्यूज डेस्क
ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 रिपोर्ट जारी हो गई है। 107 देशों के लिए की गई रैंकिंग में भारत 94 पायदान पर आया है। विडंबना है, भारत में जो अन्न भंडार हैं, धान और गेहूं, हमारी जरूरत से कहीं ज्यादा हैं। बावजूद देश में इतना अन्न होने के बाद भी यदि हमारी रैंकिंग 94 आती है, तो यह चिंता का विषय है।
यदि ऐसा है तो कहीं न कहीं भोजन का प्रबंधन खराब हो रहा है। देश में खाना भी अतिरिक्त है और दुनिया के सबसे ज्यादा भूखे भी यहीं हैं, तो हमें इस दिशा में सोचना ही पड़ेगा कि आखिर कमी कहां हैं।
एक आंकड़े के अनुसार दुनिया में 7.5 अरब लोग रहते हैं, तो करीब 14 अरब लोगों के लिए भोजन उपलब्ध है। हां, यह अलग बात है कि हर साल 30 से 40 प्रतिशत के बीच भोजन बर्बाद हो जाता है। अगर कहीं कमी है, तो राजनीतिक सोच या दृष्टिकोण की कमी है।
भूख के मद्देनजर हमारे देश को ज्यादा सजग होना है। इसके लिए सरकार को इस दिशा में ज्यादा सोचने की जरूरत है। अब हमें दुनिया में एक ऐसा तंत्र बनाना होगा, जो न केवल कृषि को संकट से निकाले, बल्कि खाद्य तंत्र को उस दिशा में ले चले, जहां सबके लिए पोषण-भोजन का प्रबंध हो सके।
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विश्व खाद्य दिवस के मौके पर इस साल संयुक्त राष्ट्र ने भी संदेश दिया कि- बढ़ें, पोषण करें और साथ रहें। दरसल कोरोना महामारी के माहौल में पूरी दुनिया को समझ में आया है कि भोजन कितनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है और इसीलिए संयुक्त राष्ट्र ने ‘बढें, पोषण करें और साथ रहें’ पर ध्यान केंद्रित किया है।
कोरोना महामारी के समय पूरी दुनिया को कृषि क्षेत्र ही एक आधार के रूप में नजर आया है। भारत में देखा गया है, जब जीडीपी ग्रोथ माइनस 23.9 प्रतिशत था, तब कृषि ही सकारात्मक विकास दर को बरकरार रख सकी। कृषि में आपदा के समय भी 3.4 प्रतिशत की विकास दर देखी गई।
लेकिन हमारे देश में कृषि की हमेशा से अनदेखी हुई है, जबकि कृषि भारत की रीढ़ है। दशकों से देश की नीति रही है कि उद्योग जगत के लिए कृषि से समझौता किया जाए। सोच की यह नाकामी आपदा के समय सामने आई है। अब जरूरी है कि हम खेती-किसानी को इतना संपन्न बनाएं कि किसानों की आय बढ़े।
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जब से कोरोना महामारी आई है, तब से कई बार दुनिया की नामी-गिरामी संगठनों ने कहा है कि दुनिया भर में भुखमरी बढ़ेगी, खासकर दक्षिण एशिया के देशों में। इसीलिए ऐसे हालात में दुनिया का ध्यान कृषि क्षेत्र की ओर जाना ही चाहिए।
इसके दो-तीन कारण हैं। भारत के परिप्रेक्ष्य में देंखे तो कृषि ही सर्वाधिक रोजगार देने वाला क्षेत्र है। भारत की 50 फीसदी जनसंख्या कृषि से जुड़ी है। 70 प्रतिशत ग्रामीण घर खेती से जुड़े हैं। अब समय आ गया है, हम कृषि को सबके हित में पटरी पर लाएं। कृषि क्षेत्र में इतनी क्षमता है कि उसे हम ‘पावर हाउस ऑफ ग्रोथ’ बना सकते हैं। कोरोना महामारी के समय यह संदेश साफ उभरकर सामने आया है।
2014 के बाद बिगड़े हालात
भारत की स्थिति वाकई बुरी है। यहां लगभग 14 प्रतिशत लोग कुपोषण के शिकार हैं। सरकार के तमाम दावों के बावजूद पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 3.7 प्रतिशत है। इसके अलावा ऐसे बच्चों की दर 37.4 है कुपोषण के कारण जिनका विकास नहीं हो पाता है।
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साल 2014 से पहले गर इनडेक्स में 76 देशों की सूची में भारत 55 वें स्थान पर था। उस समय कहा गया था कि भारत की स्थिति इस मामले में बीते साल की तुलना में सुधरी है। उस समय भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश से बेहतर स्थिति में था, पर उस समय भी भारत, नेपाल और श्रीलंका से बदतर हालत में था।