Monday - 28 October 2024 - 6:03 AM

EVM: मीठा मीठा गप..कड़वा कड़वा थू…आख़िर कब तक.!

कृष्णमोहन झा

हमारे देश में अनेक राजनीतिक दल इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के माध्यम से सम्पन्न होने वाली मतदान की प्रक्रियां पर जब-तब  सवाल खड़े करते रहे है। ईवीएम के जरिए किए जाने वाले मतदान की विश्वनीयता को सुनिश्चित करने के लिए ही चुनाव आयोग ने यह व्यवस्था दी थी कि हर विधानसभा क्षेत्र में एक मतदान केंद्र में ईवीएम में पड़े मतों का मिलान वह वीवीपैट पर्चियों से कराएगा। विपक्षी दल इससे संतुष्ट नहीं थे इसलिए 21 विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी कि वह आयोग को हर विधानसभा क्षेत्र की पचास फीसदी ईवीएम का मिलान वीवीपैट से कराने की व्यवस्था के लिए निर्देशित करे।  सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर विचार करने के बाद चुनाव आयोग को गत 8 अप्रैल को यह निर्देशित किया था कि लोकसभा चुनाव में वह विधानसभा क्षेत्र की पांच ईवीएम में हुई मतदान का मिलान वीवीपैट से कराने की व्यवस्था करे।

विपक्षी दलों को इस आदेश से भी संतुष्टि नहीं हुई और उन्होंने एक बार फिर पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में पेश की। इस पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की और से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अगर मूल याचिका में 50 प्रतिशत ईवीएम परिणामों का मिलान वीवीपैट से कराना संभव न हो तो 33 प्रतिशत अथवा कम से कम 25 फीसदी ईवीएम का मिलान सुनिश्चित किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं ने यह मांग  रखी थी ईवीएम का वीवीपैट से मिलान कराने पर अगर संतोषजनक परिणाम नहीं मिलते है अथवा कोई गड़बड़ी मिलती है तो वीवीपैट की गिनती के आधार पर ही नतीजे घोषित कर दिए जाए,परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने इस पुनर्विचार याचिका को ख़ारिज करते हुए स्पष्ट कह दिया कि हम 8 अप्रैल के आदेश में कोई परिवर्तन नहीं करने जा रहे है। गौरतलब है कि नई व्यवस्था राजनीतिक दलों को ही नहीं बल्कि सारे मतदाताओं को भी संतुष्ट करेगी।

गौरतलब है कि सुप्रीम में याचिका पर सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने पहले ही यह आपत्ति दर्ज करा दी थी कि 50 फीसदी वीवीपैट पर्ची मिलान कराने से न केवल नतीजे घोषित करने में विलम्भ होगा ,बल्कि इसके लिए अतिरिक्त संसाधन भी जुटाने होंगे। आयोग की इस आपत्ति पर विपक्षी दलों ने तर्क दिया था कि यदि चुनाव नतीजे थोड़े विलम्ब से घोषित होने से यदि चुनाव प्रकिया की पवित्रता को सुनिश्चित किया जा सकता है तो थोड़े विलम्ब में कोई हानि नहीं है ,परन्तु चुनाव आयोग ने किसी भी तरह की गड़बड़ी नहीं होने को लेकर इस तर्क को ख़ारिज कर दिया।

दरअसल पिछले चुनावों में ईवीएम से मतदान में गड़बड़ी की शिकायतों के बाद ही वीवीपैट से मिलान की व्यवस्था शुरू की गई थी, जिससे मतदान की प्रकिया पर सवाल नहीं उठ सके ,लेकिन विपक्षी दलों ने इसके बाद 50 प्रतिशत ईवीएम से वीवीपैट मिलान की मांग कर दी और मामले को सुप्रीम ले गए थे।

सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका ख़ारिज होने के बाद विपक्षी दलों ने जो प्रतिक्रियां दी है उससे यही जाहिर होता है कि वे अभी शांत बैठने  वाले नहीं है। तेलुगु देशम पार्टी के अध्यक्ष एवं आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू जो कि पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई  कोर्ट में उपस्थित थे, ने कहा कि याचिका का उद्देश्य लोकतंत्र में पारदर्शिता लाना था ,हम जो कर रहे है वह उचित मांग है। विपक्षी पार्टियां चुनाव आयोग से फिर संपर्क करेगी। नेशनल कांफ्रेस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने अदालत का सम्मान करते हुए कहा कि इस मुद्दे को हम अब देश की जनता के सामने रखेंगे। सिंघवी कहते है कि इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाना एक विकल्प है और चुनाव आयोग में संपर्क करने का रास्ता अब भी खुला हुआ है। इन प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट है कि विपक्ष अभी हार मानने को तैयार नहीं 

दूसरी और चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि इलेक्ट्रॉनिक मशीन से चुनाव कराने की उपयोगिता सिद्ध हो चुकी है ,इसलिए पुरानी व्यवस्था पर जाने का सवाल ही नहीं उठता। इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि विपक्षी दल ईवीएम पर तभी सवाल उठाते है ,जब परिणाम उनके अनुकूल नहीं आते। ऐसा भी कई बार देखा गया है कि चुनावों में अपनी हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ने से राजनीतिक दलों ने कोई संकोच नहीं किया है।

पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में एक सीट भी जीतने में असफल रहने वाली बसपा प्रमुख मायावती ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे। मौजूदा चुनाव में सपा, बसपा व् लोकदल के महागठबंधन ने उत्तरप्रदेश शानदार सफलता का दांवा किया है ,लेकिन यह भी कहा है कि यदि ईवीएम ठीक रही तो उन्हें शानदार सफलता मिलना तय है। इससे यह अनुमान लगाना भी कठिन नहीं होगा कि यदि महागठबंधन को शानदार सफलता नहीं मिलती है तो ईवीएम पर सवाल उठना तय है। अर्थात हार की स्थिति में बचने का बहाना पहले से ही तैयार है। जाहिर सी बात है कि दूसरे विपक्षी दल भी यदि अपेक्षित परिणाम न मिलने की स्थिति में हार जा ठीकरा ईवीएम पर ही फोड़ने से पीछे नहीं हटेंगे।

आश्चर्य की बात है कि जब पंजाब , मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में भाजपा बहुमत हासिल करने में असफल हो जाती है तो यही दल ईवीएम की विश्वनीयता पर सवाल नहीं उठाते है, लेकिन जब भाजपा के हाथों उन्हें पराजय झेलनी पड़ती है तो तुरंत सवाल उठाने लगते है। अतः कहना होगा कि सवाल ईवीएम की विश्वनीयता का नहीं विपक्षी दलों की विश्वनीयता का है। बेहतर तो यह होगा कि अब वह ऐसे सवाल खड़ा करने के बजाय अपने गिरेबां में झांके कि वे जनता का भरोसा जीतने में क्यों असफल हो रहे है।

ईवीएम को लेकर सुप्रीम कोर्ट के ताजे फैसले पर उचित तो यही होगा कि विपक्षी दल अब इस विवाद को आगे ले जाने की मुहीम पर विराम लगा दे। यही उनके भी हित में होगा और लोकतंत्र का भी यही तकाजा है। चुनाव आयोग पर सवाल उठाने के चक्कर  में कही ऐसा न होजाए कि इस दलों की विश्वनीयता पर ही सवाल उठने लगे। देश में तीन लोकसभा चुनाव व् अनेक विधानसभा चुनाव ईवीएम मशीन से हो चुके है। छुटपुट गड़बड़ियों के आलावा ईवीएम को सदैव सुरक्षित पाया गया है और उसपर जनता का भरोसा भी कायम है। अतः अब विरोधी दल केवल चुनाव परिणामों के दिन की प्रतीक्षा करे एवं अपेक्षित परिणाम न आने पाए ईवीएम पर सवाल उठाने से भी परहेज करे|

(लेखक  डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)

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