Friday - 1 November 2024 - 11:23 AM

अतीक़ अहमद के बारें में सब कुछ… सियासत से सलाख़ों तक…

जुबिली न्यूज डेस्क

उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता रहे अतीक़ अहमद की आज प्रयागराज के एमपी-एमएलए कोर्ट में पेशी हुई. उमेश पाल अपहरण मामले में  प्रयागराज की एमपी-एमएलए कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. मामले में अतीक अहमद समेत तीन दोषियों को कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. साथ ही एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। आज ही कोर्ट ने तीनों आरोपियों को दोषी करार दिया था.

ये वही उमेश पाल हैं जिनकी बीते महीने दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी. साल 2005 में बहुजन समाज पार्टी के विधायक राजू पाल की हत्या की गई थी. उमेश पाल इस हत्या केस के मुख्य गवाह थे.

हालांकि, आज जिस मामले में फ़ैसला आया है वो उमेश पाल के 17 साल पहले हुए अपहरण का है. उमेश पाल ने आरोप लगाया था कि साल 2006 में अतीक़ अहमद ने अपने साथियों के साथ मिलकर उनका अपहरण करवाया था.पेशी के लिए अतीक़ अहमद को गुजरात की साबरमती जेल से भारी सुरक्षा के बीच प्रयागराज की नैनी जेल लाया गया.

सुर्ख़ियों में रहने वाले अतीक़ अहमद

सलाखों में बंद अतीक़ अहमद का सियासी रसूख़ किसी से छिपा नहीं है. हत्या, हत्या की कोशिश, अपहरण, रंगदारी जैसे क़रीब सौ से अधिक संगीन आरोपों में अभियुक्त अतीक़ अहमद पाँच बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके हैं.

अतीक़ अहमद की शुरुआत

अतीक़ अहमद का जन्म साल 1962 में इलाहाबाद में हुआ जिसे अब प्रयागराज कहा जाता है.कहा जाता है कि अतीक़ के पिता फ़िरोज़ अहमद इलाहाबाद में ही तांगा चलाया करते थे. चुनावी पर्चे में अतीक़ ने अपने बारे में जो जानकारी दी है, उसके अनुसार वो मैट्रिक तक पढ़े हैं.

हत्या का पहला मुक़दमा

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, साल 1979 में अतीक़ अहमद नाबालिग़ थे और तभी उन पर पहली बार हत्या का मुक़दमा दर्ज हुआ था. हालांकि, इसके बाद उनके ख़िलाफ़ अपराधिक मामलों का ये सिलसिला लगातार जारी रहा. 1992 में इलाहाबाद पुलिस ने अतीक अहमद के कथित अपराधों की सूची जारी की थी और तब बताया गया था कि उनके ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश के कई शहरों के अलावा बिहार में भी हत्या, अपहरण, जबरन वसूली आदि के क़रीब चार दर्जन मामले दर्ज हैं.

अतीक पर दर्ज हो चुके हैं 101 मुकदमे

अतीक के खिलाफ कुल 101 मुकदमे दर्ज हुए. वर्तमान में कोर्ट में 50 मामले चल रहे हैं, जिनमें एनएसए, गैंगस्टर और गुंडा एक्ट के डेढ़ दर्जन से अधिक मुकदमे हैं. उस पर पहला मुकदमा 1979 में दर्ज हुआ था. इसके बाद जुर्म की दुनिया में अतीक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. हत्या, लूट, रंगदारी अपहरण के न जाने कितने मुकदमे उसके खिलाफ दर्ज होते रहे. मुकदमों के साथ ही उसका राजनीतिक रुतबा भी बढ़ता गया.

राजनीतिक सफ़र की शुरूवात

1989 से अपना राजनीतिक सफ़र शुरू करने वाले अतीक़ अहमद बसपा, अपना दल और सपा में रह चुके हैं.अतीक़ देश के उन नेताओं में से एक हैं जो अपराध की दुनिया से निकलकर राजनीति की गलियों में आए. हालांकि, राजनीति में भी उनकी बाहुबली वाली छवि बनी रही और वो सुर्ख़ियों में रहे.

पहली बार निर्दलीय चुनाव लड़ा

अतीक़ अहमद के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा मामले इलाहाबाद ज़िले में ही दर्ज हुए हैं. इतने संगीन आरोपों में अभियुक्त अतीक़ अहमद राजनीति में भी सफलता की सीढ़ी चढ़े. उन्होंने पहली बार साल 1989 में निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत गए.उनके इलाक़े में ये बात आम है कि इलाहाबाद शहर (पश्चिम) की सीट भी वो अपनी इसी छवि के कारण कई बार जीते.

अतीक़ अहमद एक बार इलाहाबाद की फूलपुर सीट से सांसद भी बने.कभी पूर्व पीएम जवाहरलाल नेहरू ने फूलपुर सीट का प्रतिनिधित्व किया था.पहला चुनाव जीतने के बाद समाजवादी पार्टी से नज़दीकियां बढ़ीं और अतीक़ अहमद सपा में शामिल हो गए.तीन साल सपा में रहने के बाद अतीक़ 1996 में अपना दल के साथ चले गए.

पाँचवीं बार विधानसभा चुनाव जीता

साल 2002 में अतीक़ अहमद ने इलाहाबाद (पश्चिम) सीट से पाँचवीं बार विधानसभा चुनाव जीता. हालांकि, उन्हें लोकसभा जाना था और इसके लिए उन्होंने समाजवादी पार्टी की टिकट पर साल 2004 में फूलपुर से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता भी.

अतीक़ को पहला बड़ा झटका

लेकिन अतीक़ अहमद को पहला बड़ा झटका तब लगा जब उनके और भाई के ऊपर 2005 में राजू पाल की हत्या के मामले में एफ़आईआर दर्ज हो गई.साल 2007 में यूपी की सत्ता बदली और मायावती सूबे की मुखिया बन गईं. सत्ता जाते ही सपा ने अतीक़ को पार्टी से बाहर निकाल दिया. उधर, मायावती की सरकार ने अतीक़ को मोस्ट वांटेड घोषित कर दिया.

साल 2008 में आत्मसमर्पण

अतीक़ अहमद ने साल 2008 में आत्मसमर्पण कर दिया और 2012 में रिहा हो गए. इसके बाद उन्होंने सपा के टिकट पर 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. अतीक अहमद को साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद साबरमती जेल भेजा गया था. इससे पहले वो यूपी की नैनी जेल में ही बंद थे. अतीक़ पर देवरिया के एक कारोबारी को जेल बुलाकर धमकाने और अपहरण करने का केस दर्ज हुआ था. अतीक़ अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन भी राजनीति में हैं. उन्होंने इसी साल जनवरी में बहुजन समाज पार्टी ज्वाइन की थी.

उमेश पाल हत्याकांड में अतीक़ अहमद का नाम

साल 2005 में हुई हत्या की एक घटना के मुख्य गवाह उमेश पाल की 24 फ़रवरी, 2023 को दिन दहाड़े हत्या कर दी गई थी. प्रयागराज पुलिस ने सीसीटीवी फ़ुटेज खंगालने के बाद इस हत्या में पूर्व सांसद और बाहुबली अतीक़ अहमद के बेटे असद, ‘बमबाज़’ गुड्डू मुस्लिम, ग़ुलाम और अरबाज़ का हाथ होने का दावा किया.

उमेश पाल 2005 में बीएसपी के विधायक राजू पाल की हत्या के बाद सुर्ख़ियों में आए थे जब उन्हें राजू पाल की हत्या के मामले में मुख्या गवाह बनाया गया था.राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने कुछ समय पहले  बताया था कि जब 2006 में राजू पाल के मर्डर का ट्रायल शुरू हुआ तब उमेश पाल मुकर गए थे.

पूजा पाल के मुताबिक़, जब राजू पाल हत्या मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई तो सीबीआई ने उमेश पाल को गवाह नहीं बनाया. उन्होंने ये भी बताया था कि उमेश पाल अपने बड़े भाई का टैंकर चलाया करते थे. साल 2005 में वो पुलिस के ज़रिए राजू पाल केस में गवाह बने. पूजा पाल ने बताया कि राजू पाल को अस्पताल लेकर उमेश पाल ही गए थे.

पूजा पाल के मुताबिक़ उमेश पाल 2006 से 2012 तक बसपा में रहे और उसके बाद समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे. 2022 विधानसभा चुनाव के समय उमेश पाल बीजेपी में शामिल हो गए थे. वो प्रयागराज के फाफामऊ विधानसभा सीट से विधायक का चुनाव लड़ना चाह रहे थे.पूजा पाल के मुताबिक़, राजू पाल हत्याकांड के बाद उमेश पाल अतीक़ अहमद के निशाने पर आ गए थे. लेकिन प्रापर्टी और राजनीति के चलते भी उमेश पाल की लोगों से दुश्मनी थी.

उमेश पाल की किडनैपिंग पर फ़ैसला

दरअसल, उमेश पाल ने 2007 में आरोप लगाया था कि 28 फ़रवरी 2006 को अतीक़ अहमद ने उनका अपहरण करवाया.उनके साथ मारपीट की और जान से मारने की धमकी दी क्योंकि वह राजू पाल हत्याकांड के एकमात्र गवाह थे.उमेश पाल ने 2007 में दिए अपने शिकायती पत्र में लिखा था, “28 फ़रवरी 2006 को अतीक़ अहमद की लैंड क्रूज़र कार समेत एक अन्य वाहन ने उनका रास्ता रोका और घेर लिया. उस कार से दिनेश पासी, अंसार बाबा और अन्य शख़्स उतरे.

कमरे में बंद कर मारपीट व करंट के झटके

उन्होंने पिस्तौल तान दी और कार में खींच लिया. इस कार के अंदर अतीक़ अहमद और तीन अन्य लोग राइफ़ल लेकर बैठे थे.इन लोगों ने उनसे मारपीट की और चकिया स्थित अपने दफ़्तर लेकर पहुंचे. उसे एक कमरे में बंद कर दिया गया और मारपीट की गई. करंट के झटके लगाए गए.”उमेश पाल ने आरोप लगाया कि उन पर राजू पाल हत्या के मामले में अपना बयान बदलने के लिए दबाव डाला गया.

अपनी शिकायत में उन्होंने लिखा, “अतीक़ अहमद ने अपने वकील ख़ान शौक़त हनीफ़ से एक पर्चा लेकर मुझे दिया और कहा इसे रट लो अदालत में यही बयान देना, नहीं तो तुम्हारी बोटी-बोटी काटकर कुत्तों को खिला दूंगा.सांसद ने अपने आदमी भेज कर मेरे घर वालों को भी उसी रात धमकाया कि पुलिस को सूचना दी तो उमेश की हत्या कर दी जाएगी. मुझे रात भर कमरे में बंद कर प्रताड़ित किया गया. सुबह 10 बजे अतीक़ अहमद और उनके साथी गाड़ी में बैठा कर ले गए और कहा कि रात में जो पर्चा दिया था, वही बयान देना नहीं तो घर लौट कर नहीं जा पाओगे.”

अपने शिकायत पत्र में उमेश पाल ने लिखा कि उन्होंने हाई कोर्ट से सुरक्षा मांगी थी, लेकिन उन्हें इसके लिए ख़ुद पैसे देने थे. उन्होंने कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी वो सुरक्षा के लिए पैसों का भुगतान कर सकें.उमेश पाल की शिकायत के ठीक एक साल बाद पुलिस ने 5 जुलाई 2007 को अतीक़, उनके भाई अशरफ़ और चार अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया.

इस मुक़दमे की अदालत में सुनवाई पूरी हो गई है. अदालत ने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ़ अहमद को 28 मार्च को सुबह 11 बजे पेश करने का आदेश दिया था, जिसके बाद यूपी पुलिस उसे अहमदाबाद की साबरमती सेंट्रल जेल से लेकर सोमवार शाम प्रयागराज पहुंची.

विधायक राजू पाल हत्याकांड

उत्तर प्रदेश में 2003 में मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी थी. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़ तब अतीक़ अहमद समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे. 2004 के लोकसभा चुनाव में वो सपा से सांसद बन गए. इस वजह से इलाहाबाद (पश्चिम) विधानसभा सीट खाली हुई.

2004 में अतीक़ ने अपने भाई ख़ालिद अज़ीम उर्फ़ अशरफ़ को वहां से मैदान में उतारा, लेकिन वह चार हज़ार वोटों से बसपा के प्रत्याशी राजू पाल से हार गए थे. राजू पाल पर बाद में कई हमले हुए और राजू पाल ने इसके लिए तत्कालीन सांसद अतीक़ को ज़िम्मेदार ठहराते हुए अपनी जान को ख़तरा बताया था.

25 जनवरी, 2005 को राजू पाल के क़ाफ़िले पर एक बार फिर हमला किया गया. उन्हें कई गोलियां लगीं. अस्पताल पहुंचने पर राजू पाल को डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया था. इस हत्याकांड में अतीक़ अहमद और अशरफ़ का नाम सामने आया.

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उमेश पाल अपहरण मामले में सजा

उमेश पाल अपहरण मामले में  प्रयागराज की एमपी-एमएलए कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। मामले में अतीक अहमद समेत तीन दोषियों को कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। आज ही कोर्ट ने तीनों आरोपियों को दोषी करार दिया था। मामले में अशरफ समेत सात आरोपियों को दोष मुक्त कर दिया था।

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