जुबिली न्यूज डेस्क
यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल ने आज अपने ट्वीट में लिखा है-“यूरोप जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में लीडर है।”
अपने ट्वीट में उन्होंने यह बातें ऐसे ही नहीं लिखी है। दरअसल यूरोपीय संघ के 27 देश 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को 55 फीसदी घटाने पर राजी हो गए हैं।
जलवायु लक्ष्यों की दिशा में यह एक बड़ा कदम है। बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में गुरुवार को जलवायु लक्ष्यों पर हुई अहम बैठक शुक्रवार तड़के तक जारी रही।
इस मैराथन बैठक के बाद जलवायु लक्ष्यों को लेकर एक संधि हुई। इस संधि के अनुसार हर सदस्य देश को अगले 10 साल के भीतर जलवायु को गर्म कर रही ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भारी कटौती करना होगा।
यूरोपीय संघ साल 2050 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना चाहता है। अब नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन या कार्बन न्यूट्रैलिटी क्या है यह भी जान लेते हैं।
कार्बन न्यूट्रैलिटी का मतलब है कि जितनी सीओटू (कार्बन डाईऑक्साइड ) उत्सर्जित की जाएगी, उतनी ही सीओटू वातावरण से हटाई जाएगी। आसान भाषा में इसी संतुलन को कार्बन न्यूट्रैलिटी कहा जाता है।
यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष और सम्मेलन के मेजबान चार्ल्स मिशेल ने इस संधि को बड़ी सफलता बताया है।
Europe is the leader in the fight against climate change.
We decided to cut our greenhouse gas emissions of at least 55% by 2030. #EUCO pic.twitter.com/XfoCacHoq0
— Charles Michel (@eucopresident) December 11, 2020
इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अर्थव्यवस्था के हर अहम सेक्टर को इको फ्रेंडली बनाना होगा। वहीं नए लक्ष्यों को लेकर खुशी जताते हुए यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फोन डेय लायन ने कहा, “चलिए हम सब खुद को 2050 तक क्लाइमेट न्यूट्रैलिटी के साफ रास्ते पर लाते हैं। ”
अब इस संधि से यूरोपीय संघ जलवायु परिवर्तन को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच का भी नेतृत्व कर सकेगा। शनिवार को होने वाले संयुक्त राष्ट्र के वर्चुअल सम्मेलन में यूरोपीय संघ दुनिया के बाकी देशों के सामने अपने लक्ष्य रखेगा।
वहीं वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि अगर जलवायु परिवर्तन के घातक नतीजों को रोकना है तो ऐसा करना ही होगा।
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बड़ी मुश्किल से हुई संधि
यह संधि इतनी आसान नहीं थी। बैठक में पश्चिमी यूरोप और उत्तरी यूरोप के देश ज्यादा कड़े जलवायु लक्ष्यों की वकालत कर रहे थे। वहीं पूर्वी यूरोप के देश कुछ खास शर्तों की मांग कर रहे थे।
दरअसल पूर्वी यूरोप में पोलैंड और हंगरी जैसे देश अपनी ऊर्जा और आर्थिक जरूरतों के लिए बहुत हद तक कोयले पर निर्भर हैं। पोलैंड के रुख के कारण इस डील पर शुक्रवार सुबह तक बातचीत होती रही।
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पोलैंड ने ईयू से कहा कि वह गरीब देशों की फंडिंग की गारंटी तय करे। इसके अलावा पोलैंड ने कुछ क्षेत्रों में उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्यों को जीडीपी के अनुपात में तय करने की भी मांग की।
इसका मतलब है कि छोटी अर्थव्यवस्था वाले देश कम कटौती करेंगे। ज्यादातर देशों ने पोलैंड की इन मांगों का विरोध किया। ऐसी तकरार से गुजरते हुए संधि हो गई।
यह डील अब यूरोपीय संसद में जाएगी। यूरोपीय संसद की मंजूरी के बाद ही यह लागू होगी। इस डील को लागू करने के लिए अगले दस सालों में ऊर्जा क्षेत्र में 350 अरब यूरो का निवेश करना होगा।