जुबिली न्यूज डेस्क
अक्सर हमें ऐसी खबरें सुनने और देखने को मिलती हैं कि फला व्यक्ति ने अपनी पत्नी को फोन पर तलाक दे दिया या किसी ने स्टांप पेपर पर तलाकनामा भेज दिया।
अभी भी अक्सर ऐसी खबरें अखबारों में होती है। भले ही तीन तलाक के खिलाफ सख्त कानून बन चुका हो, लेकिन अब भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो एक साथ तीन तलाक का इस्तेमाल करते हैं।
मुस्लिम धर्म में पुरुषों के लिए शादी और तलाक दोनों ही बहुत आसान है। चार शादी करने के साथ-साथ तलाक देने का भी उन्हें अधिकार मिला है और वह उसी का फायदा उठाते हैं।
लेकिन अब हालात थोड़े बदल रहे हैं। अब महिलाएं खुद अपने शौहरों से तलाक मांग रही हैं। ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि दो साल में दारुल कजा में आई तलाक की अर्जियां कह रही हैं।
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जी हां, दारुल कजा में दो साल में करीब 215 मामले आए जिनमें 150 अर्जियों में महिलाओं ने अपने शौहर से तलाक का मुतालबा किया है। महिलाएं खुला (महिलाओं को तलाक लेने का अधिकार) ले रही हैं।
इस्लामिक सेंटर के दारुल कजा फरंगी महल में ऐसे कई मामले आए हैं, जिसमें बीवियां शौहर से रिश्ता खत्म करना चाह रही हैं।
दो साल से मियां बीवी के झगड़े, बच्चो को लेकर पति-पत्नी का टकराव, आदि के दो सौ से अधिक मामले भी आए हैं। दारुल कजा में 85 फीसदी से अधिक मामले समझौते से सुलझा लिए जाते हैं।
तलाक की अर्जियों को लेकर इस्लामिक सेंटर के चेयरमैन मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि, जितने में भी मामले आए हैं उसमें बीवी की ओर से अधिक अर्जी आई हैं। अर्जियों में उन्होंने लिखा है कि वो अपने शौहर से तलाक लेना चाहती हैं लेकिन शौहर तलाक नहीं दे रहे हैं।
पिछले करीब दो साल में काफी बदलाव देखने को मिला है। पहले पुरुष तलाक देते थे लेकिन अब महिलाएं तलाक मांग रही हैं।
फरंगी महली ने कहा, कई मामलों में उलेमा दोनों को समझाकर सुलह करा देते हैं। जो लोग नहीं सुनते उन्हें तीन महीने तक साथ रहने के लिए कहा जाता है। सुलह न होने पर तलाक करा दिया जाता है।
खुला के करीब 150 मामले दो साल में आए
मौलाना खालिद रशीद ने बताया कि अगर शौहर की तरफ से रिश्ता खत्म किया जाए तो वो तलाक होता है। अगर बीवी शौहर से रिश्ता खत्म करती तो उसे खुला कहते हैं। पिछले दो साल से दारुल कजा में खुला के करीब 150 मामले आए हैं, जिनमे से करीब 80 मामले सुलझा लिए गए हैं। करीब 15 में
खुला ले लिया गया है। बाकी में सुनवाई चल रही है। खुला के बाद महिला को सवा तीन महीने ईद्दत के गुजारने होते हैं। इस दौरान उस महिला का खर्च उसका शौहर उठाता है। ईद्दत के बाद उस शौहर की जिम्मेदारी खत्म हो जाती है।
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उन्होंने कहा कि हमारे यहां कई ऐसे मामले आए जिसमें औरत की खुद की आर्थिक स्थिति अच्छी थी तो उन्होंने शौहर से खर्च के पैसे नहीं लिए।
यदि इन आंकड़ों को देखे तो पता चलता है कि मुस्लिम महिलाएं भी थोड़ी मुखर हो रही है। वह अपने पति के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठा रही हैं। वह खुद के लिए खड़ी हो रही है।