Tuesday - 29 October 2024 - 12:50 PM

हवा और पानी की गुणवत्ता को लेकर संतुष्ट है ज्यादातर भारतीय

न्यूज डेस्क

कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए दुनिया के अधिकांश देशों ने लॉकडाउन का सहारा लिया हुआ है। लॉकडाउन झेल रहे दुनिया के कई हिस्सों से वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण के कम होने की सूचनाएं आने लगी हैं। आज पर्यावरण स्वच्छ हो रहा है तो वह कोरोना की वजह से न कि सरकारों के प्रयास की वजह से। कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने से पहले दुनिया भर के वैज्ञानिक पर्यावरण संरक्षण को लेकर गुहार लगा रहे थे, लेेकिन इसमें कोई सुधार नहीं दिख रहा था, बावजूद इसके दुनिया भर में करीब 63 फीसदी व्यस्क अपने देश द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए किये जा रहे प्रयासों से संतुष्ट हैं।

जी हां, पर्यावरण संरक्षण के लिए दुनिया के देशों द्वारा किए जा रहे प्रयासों से करीब 63 फीसदी व्यस्क संतुष्ट हैं। भारत में करीब 77 फीसदी लोग इस मामले में सरकार के प्रयास से संतुष्ट हैं तो 20 फीसदी लोग सरकार के कामों से असंतुष्ट हैं। यह जानकारी अमेरिका की प्रमुख पोलिंग एजेंसी गैलप द्वारा किये एक वैश्विक सर्वे में सामने आयी है। भारत के परिप्रेक्ष्य में देखे तो यह आंकड़े हैरान करने वाले हैं, क्योंकि भारत में प्रदूषण विकराल रूप धारण कर चुका है और इस हालात में भी लोग सरकार के प्रयास से संतुष्ट हैं।

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भारत के 20 शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल हैं। भारत की नदियां इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि उसके पानी से नहाने से स्किन की तमाम बीमारियां हो रही है। एक माह पहले तक भारत के ज्यादातर शहरों में हवा तय मानकों से कई ज्यादा गुना प्रदूषित हो चुकी है, और लोगों को सांस लेने में भी कठिनाई हो रही थी, बावजूद अधिकांश लोग सरकार के प्रयास से खुश हैं।

भारत में करीब 86 फीसदी लोग हवा की गुणवत्ता से संतुष्ट थे, जबकि केवल 13 फीसदी ने ही इस पर असंतोष जाहिर किया है। इसी तरह पानी की गुणवत्ता को लेकर भी भारत के करीब 75 फीसदी लोगों ने संतोष जाहिर किया है, जबकि 24 फीसदी ने पानी की गुणवत्ता पर असंतोष दर्ज किया है। विडंबना देखिये ऐसा तब हुआ है जब देश की ज्यादातर नदियों का जल प्रदूषित हो चुका है और भूजल में आर्सेनिक और अन्य प्रदूषकों की मात्रा बढ़ती जा रही है। हाल ही में पंजाब और उत्तर प्रदेश में भी भूजल में भारी मात्रा में आर्सेनिक पाया गया था, जोकि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।

ऐसी ही स्थिति चीन की है जहां करीब 81 फीसदी लोग हवा की गुणवत्ता से संतुष्ट थे, जबकि 17 फीसदी लोगों ने ही असंतोष जाहिर किया है। वहीं दुनिया के करीब तीन चौथाई से ज्यादा (78 फीसदी) लोग हवा की गुणवत्ता को लेकर संतुष्ट थे।

यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो दुनिया के करीब 73 फीसदी लोग जल की गुणवत्ता से संतुष्ट हैं, जबकि अफ्रीकी देश गैबोन में केवल 32 फीसदी लोग इससे संतुष्ट हैं। वहीं रूस में 60, ईरान में 64, चीन में 76, दक्षिण कोरिआ में 78, अमेरिका में 83, जापान में 86, कनाडा में 87, जर्मनी में 88, सऊदी अरब में करीब 89 फीसदी लोग जल की गुणवत्ता को लेकर संतुष्ट हैं। जबकि रूस में 37 फीसदी और ईरान में 36 फीसदी लोगों ने पानी की गुणवत्ता को लेकर असंतोष जाहिर किया है।

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सर्वे में पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकार के प्रयास से सबसे ज्यादा खुश संयुक्त अरब अमीरात के लोग हैं। यहां करीब 93 फीसदी लोग सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास से खुश हैं। लेबनान में इसके उलट है। यहां सिर्फ10 फीसदी लोग सरकार के प्रयास से खुश हैं।

ऐसा ही कुछ अमेरिका और रूस में भी हैं। यदि दुनिया के 10 सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जकों को देखें तो रूस में केवल 34 फीसदी संतुष्ट हैं। वहीं 59 फीसदी ने पर्यावरण के प्रति सरकार की जिमेदारी पर असंतोष दिखाया है। जबकि अन्य देशों में दक्षिण कोरिया के (42 फीसदी), जापान (43), अमेरिका (44), ईरान (46), कनाडा (50), जर्मनी के केवल 53 फीसदी लोग ही सरकार द्वारा पर्यावरण के लिए किये जा रहे कामों को लेकर संतुष्ट हैं। वहीं चीन में करीब 85 फीसदी लोगों ने सरकार द्वारा किया जा रहे कामों पर संतोष दिखाया है, जबकि वहां केवल 11 फीसदी लोग असंतुष्ट थे। सऊदी अरब में भी 79 फीसदी लोग संतुष्ट थे।

मालूम हो कि साल 2019 में अमेरिका के करीब 56 फीसदी लोग सरकार के कामों से असंतुष्ट थे, जबकि 2017 में 52 फीसदी लोगों ने असंतोष जाहिर किया था। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह ट्रम्प सरकार को माना जा सकता है, क्योंकि ट्रम्प सरकार तेजी से देश में पर्यावरण के लिए बनाये नियमों को बदलती जा रही है। उसका मानना है कि यह नियम विकास की राह में बाधा हैं। कुछ समय पहले अमेरिका ने जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए किये पेरिस समझौते से भी अपने हाथ पीछे खींच लिए थे।

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