जुबिली पोस्ट ब्यूरो
लखनऊ। यूपी की राजधानी हजरतगंज स्थित शत्रु संपत्ति को शोरूम में तब्दील कर किराये से चार से पांच लाख रुपये की कमाई और सरकार को किराया दे रहे महज 1500 रुपये प्रतिमाह। शत्रु संपत्ति के किरायेदारों की इसी मौज को खत्म करने और संपत्ति का वास्तविक किराया वसूलने के लिये किराया बढ़ोत्तरी का अध्यादेश अब लागू होकर ही रहेगा।
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कॉमर्शियल किरायेदारों को सर्किल रेट का 30% व रेजिडेंशियल किरायेदारों को देना होगा सर्किल रेट के 20% की दर से किराया, 2013 से अब तक का एरियर भी करना होगा भुगतान, आपत्तियां हुई दरकिनार
जिला प्रशासन ने किरायेदारों की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए इसे लेकर आदेश जारी कर दिये हैं। खास बात यह है कि शत्रु संपत्तियों के किरायेदारों को यह किराये की नई दर का एरियर 2013 से भुगतान करना होगा।
राजधानी में अभी करीब 167 शत्रु सपंत्तियां हैं। सबसे अधिक 112 शत्रु संपत्तियां सदर तहसील में हैं। मलिहाबाद- माल में 29 व मोहनलालगंज में राजा सलेमपुर की 9 संपत्तियां हैं। इसके अलावा कई ऐसी संपत्तियां भी हैं जिनको लेकर अभी विवाद की स्थिति है। प्रशासन को अभी केवल 47 संपत्तियों से ही किराया मिल रहा है। जो किराया मिल भी रहा था वह बेहद मामूली बताया जाता रहा है।
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जब जिला प्रशासन ने इन संपत्तियों का सर्वे कराया तो हैरान कर देने वाली हकीकत सामने आई। कई संपत्तियों को उनके किरायेदारों ने दूसरों को मोटे किराये पर उठा रखा है। एक संपत्ति में तो सामने आया कि सरकार को महज डेढ़ हजार रुपये देने वाले शत्रु संपत्ति के किरायेदार एक निजी इलेक्ट्रानिक कंपनी से करीब 9 लाख रुपये प्रतिमाह किराया वसूल रहे हैं।
नये अध्यादेश के बाद शत्रु संपत्तियों का किराया 31 मार्च से नये सिरे से तय किया गया था। प्रशासनिक अफसरों के मुताबिक नई किरायेदारी सूची डीएम सर्किल रेट या फिर बाजार दर में से जो अधिकतम होगा उसे माना जाएगा।
इसमें भी अगर कॉमर्शियल यूज वाली संपत्तियों का सर्किल रेट का 30% प्रति स्क्वायर फीट की दर से और रेजीडेंशियल में यह दर सर्किल रेट का 20% निर्धारित की गई। यह किराया 2013 अप्रैल से प्रभावी माना गया। इसे लेकर किरायेदारों ने आपत्तियां दाखिल की थीं, जिन्हें खारिज कर दिया गया।
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120 से नहीं मिल रहा किराया
सौ से अधिक शत्रु संपत्तियां ऐसी हैं जिनका किराया भी प्रशासन के खाते में नहीं आ रहा है। इनमें से कई के सीमांकन को लेकर विवाद चल रहा है। प्रशासन अब अभिलेखों का मिलान कर किरायेदारी करार देखने के बाद बकाया वसूल करेगा। जिनका किरायेदारी करार नहीं मिलेगा उनका कब्जा हटाया जाएगा।
क्या है शत्रु संपत्ति
विभाजन के बाद जिन संपत्तियों के मालिक पाकिस्तान चले गए और उन्होंने वहां की नागरिकता ले ली, उनकी संपत्तियों को सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया था। इन्हीं संपत्तियों कों शत्रु संपत्तियों का नाम दिया गया था। शत्रु संपत्ति अधिग्रहीत करने इसके बाद सरकार ने जरूरतमंदों को न्यूनतम दर पर किराये पर दिया था जो पिछले साठ साल से काबिज हैं।
ये है लखनऊ की शत्रु संपत्तियां
- बटलर पैलेस
- लारी बिल्डिंग, हजरतगंज
- महमूदाबाद मेंशन, हजरतगंज
- काकर वाली कोठी एमजी मार्ग, हजरतगंज
- लाल कोठी, मौलवीगंज
- अली वारसी बिल्डिंग
- नसीम खां बिल्डिंग, नरही
- कनीज सईदा बेगम बिल्डिंग, नरही
- मलका जमानिया इमामबाड़ा, गोलागंज
- सिद्दीकी बिल्डिंग, अमीनाबाद
- पीर जलील बिल्डिंग, अमीनाबाद
- आलिया बिल्डिंग, गोलागंज
- शहजादी बेगम मकबरा, अमीनाबाद
- कच्चा हाता, अमीनाबाद