कृष्णमोहन झा
संयुक्त राष्ट्र ने कुख्यात आतंकी संगठन जैश-ए- मोहम्मद के सरगना मसूद अजरह को वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया है। फ्रांस अमेरिका एवं ब्रिटेन के प्रस्ताव पर संयक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने यह फैसला किया है। पिछले तीन बार से इस प्रस्ताव के विरूद्ध वीटो का प्रयोग करने वाले देश चीन ने इस बार इस प्रस्ताव के पारित होने में कोई अडंगा नहीं लगाया।
गौरतलब है कि विगत 14 फरवरी को जम्मू कश्मीर के पुलवामा इलाके में जैश-ए-मोहम्मद ने ही सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकी हमले की साजिश रची थी, जिसमें सीआरपीएफ के 41 जवान शहीद हुए थे। उस हमले के लिए पाकिस्तान को सबक सिखाने की मंशा से भारत ने एक पखवाडे के अंदर ही उसकी सीमा के अंदर घुसकर एयर स्ट्राइक की थी एवं उनके आतंकी अड्डो को तहस-नहस कर डाला था।
इस कार्यवाही में बडी संख्या में आतंकवादियों के मारे जाने का भी सरकार ने दावा किया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसके बाद संयक्त राष्ट सुरक्षा परिसद के स्थायी सदस्य देशों से संपर्क साधकर जैश-ए-मोहम्मद के सरमना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की दिशा में सामूहिक पहल किए जाने के जो निरंतर प्रयास किए उसमें आखिरकार भारत को सफलता मिल ही गई।
पाकिस्तान के जरिए जपने आर्थिक हितों को साधने में जुटे चीन ने पहले तो अपनी दोस्ती की खातिर मसूद अजहर को ब्लैकलिस्ट होने से बचाने की मंशा से सुरक्षा परिसद ने तीन बार वीटो का प्रयोग किया ,परंतु जब उसे ऐसा महसूस हाने लगा कि मसूद अजहर को बचाकर अंतर्राष्ट्रीय जगत में अपनी फजीहत कराने में उसे कोई फायदा नहीं होने वाला है तो उसने प्रस्ताव के पक्ष में समर्थन करने में भी भलाई समझी ।
उल्लेखनीय है कि भारतीय विदेश सचिव विजय गोखले ने विगत माह जब अपने चीन प्रवास के दौरान वहां की सरकार को पुलवामा हमले की साजिश में जैश-ए- मोहम्मद का सीधा हाथ होने के पुख्ता सबूत सौंपे थे तभी से चीन के अडियल रवैए में नरमी आने के संकेत मिलने लगे थे।
यद्यपि भारतीय विदेश सचिव की चीन यात्रा के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी चीन का दौरा किया था ,लेकिन वे कुछ भी हासिल करेन में असफल रहे। इसे भारत की कूटनीतिक सफलता की माना जाएगा कि जो चीन इसके पहले तीन बार यूएनओ में मसूद अजहर को के प्रस्ताव पर वीटो कर चुका था ,उसने इस बार प्रस्ताव का समर्थन करते हुए यह बयान दिया है कि उसे मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित किए जाने के प्रस्ताव में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगा और इसके बाद उसने इसके पारित होने में अपनी रोक हटा ली है।
गौरतलब है कि प्रतिबंध के बाद आतंकी मसूद अजहर अब संयक्त राष्ट्र के किसी भी सदस्य देश की यात्रा नहीं कर सकेगा। संयक्त राष्ट्र के सदस्य देश उसे किसी भी तरह से आर्थिक मदद नहीं पहुंचा सकेंगे। मसूद अजहर की सारी संपत्तियां जब्त कर ली जायेंगी एवं उसके बैंक खातो को भी फ्रीज कर दिया जाएगा। संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैष्विक आतंकियों पर लागू होने वाले सारे प्रतिबंधों को मसूद अजहर पर ईमानदारी से लागू करने की जिम्मेदारी दरअसल अब पाकिस्तान सरकार की है जो अपने देश में आतंकी संगठान को अभीतक संरक्षण प्रदान करता है।
भारत में कई भयावह आतंकी वारदातों के लिए जिम्मेदार जैश- ए- मोहम्मद को अगर पाकिस्तान की सरकार सेना एवं आईएसआई ने संरक्षण प्रदान नहीं किया होता तो वह अपने आतंकी नेटवर्क का दुनिया भर में विस्तार नहीं कर सकता था। दुनिया के कुख्यात आतंकियों में से एक मसूद अजहर को वर्ष 1994 में जम्मू कश्मीर में विभिन्न आतंकी गुटों के बीच तालमेल कायम करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
पठानकोट एयर बेस पर हुए आतंकी हमले में भी उसका ही हाथ था उसने पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को भी मरवाने का प्रयास किया था परंतु उसमें उसे सफलता नहीं मिली। उरी एवं पुलवामा हमले की घटनाओं के बाद फ्रांस ,ब्रिटेन एवं अमेरिका जैसे बडे देश भी मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की भारतीय मुहीम के पक्ष में आ गए। इन देशों ने चीन के अडियल रवैए से निपटने के लिए उसे यह चेतावनी दी थी कि वह संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध समिति में यदि उसने इसका पुनः विरोध किया तो वे सीधे सुरक्षा परिसद में इसे पेश करेंगे।
अंततः चीन को यह समझ आ गया कि पाकिस्तान का साथ देकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी फजीहत कराने से बेहतर है कि वह मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने प्रस्ताव का समर्थन कर दे। इसका श्रेय पाने के वास्तविक हकदार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं ,जिन्होंने आतकवाद के विरूद्ध दुनिया के सारे देशों को एकजुट करने की मुहिम छेड रखी है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अजहर का मुददा तो अभी शुरुआत है आतंकवाद जड़ से उखाडने की भारत की कोशिश आगे भी जारी रहेंगी। मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध समिति से वैश्विक आतंकवादी घोषित कराने के कूटनीतिक प्रयासों में भारत की कामयाबी पाकिस्तान के लिए एक झटका है। पाकिस्तान ने इस मामले में जो प्रतिक्रिया दी है उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अभी उस पर और दबाव बनाने की आवश्यकता है।
पाकिस्तान यह भली भांति जनता है कि मसूद को पुलवामा हमले के बाद वैश्विक आतंकी घोषित किया है परन्तु अपनी प्रतिक्रियां कि मसूद के प्रतिबंध के प्रस्ताव में पुलवामा हमले सहित सारे राजनीतिक सन्दर्भ हटाने के बाद ही वह इसपर सहमत हुआ है। अब पाकिस्तान भले ही यह कह रहा है कि मसूद पर लगाईं गई साड़ी पाबंदियों को लागू किया जाएगा लेकिन अभी तक के इतिहास को देखते हुए उसकी बातों पर विश्वास करना कठिन है।
पाकिस्तान ने अगर आतंकी संगठनों पर की गतिविधियों पर पहले ही लगाम लगाने की कोशिश की होती तो उस पर आतंकपोषित देश का ठप्पा नहीं लगा होता। अमेरिका और फ़्रांस द्वारा उसके प्रति सख्ती दिखाए जाने के बाद उसके रुख में थोड़ी नरमी आई है परन्तु अभी भी उस पर निरंतर दबाव बनाए रखने की पूरी आवश्यकता है। पाकिस्तान सरकार को भी यह भली-भांति समझ आना चाहिए कि यदि अब उसने आतंकियों पर दिखावटी कार्यवाही की तो उसकी मुश्किलों में और इजाफा हो सकता है।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंवादी घोषित किए जा चुके 22 संगठनों क पाकिस्तान ने ही शरण दे रखी है। पाकिस्तान को अब उन सभी पर ईमानदारी से कार्यवाही करना चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो निकट भविष्य में उस पर एनएफटी (फायनेंशन एक्शन टास्क फ़ोर्स ) की अगली बैठक में पाकिस्तान पैट आर्थिक पाबंदिया लगाने के प्रस्ताव के लिए पूरी तैयारी कर रखी है।
दरअसल मसूद अजहर ,जकीउर रहमान लखवी और हाफिज सईद जैसे आतंकियों पर पाकिस्तान जब तक कठोर कार्यवाही नहीं करती है, तब तक भारत में आतंकी वारदातों के रुकने की उम्मीद करना बैमानी होगा। भारत की सबसे बड़ी कामयाबी तो अब यह होगी की पाकिस्तान इन दुर्दांत आतंकियों को भारत को सौपने को तैयार हो जाए, ताकि उन्हें यहाँ के कानून के मुताबिक सजा देकर दंडित किया जाए।
(लेखक डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)