राजीव ओझा
शारदीय नवरात्र में नौ दिन ही सही, माहौल में एक सकारात्मकता महसूस होती है। नवरात्र में नारी शक्ति की प्रतीक मां दुर्गा की उपासना होती है। तो आज बात करते हैं नारी सशक्तिकरण की लेकिन अलग अंदाज में। एक दिन पहले जुबली पोस्ट के इसी प्लेटफार्म पर अनुष्का और वंदना के बहाने बेटियों सुरक्षा को लेकर सवाल उठाये थे। आज समझने की कोशिश करेंगे कि बेटियों की सुरक्षा और नारी सशक्तिकरण के क्या मायने हैं। डॉ. वंदना या अनुष्का जैसे हादसे लगातार हो रहे। पिछले हफ्ते ही लखनऊ में 14 साल की शिवानी ने भी अपनी जान दे दी। ये सभी मेधावी थीं, लेकिन भीतर ही भीतर असुरक्षित थीं। इसी लिए कहा गया है – मन के हारे हार है मन के जीते जीत।
हार मैनेजमेंट का मंत्र भी बेटियों को आना चाहिए
नारी सशक्तिकरण का पहला पहला कदम है बच्चों को भीतर से मजबूत बनाना। जीत की आदत होना अच्छी बात है लेकिन हार के मैनेजमेंट का मंत्र भी बेटियों को सिखाना होगा। बेटियां मेधावी हों, टॉप करें इसके लिए हम जी-जान लगा देते हैं लेकिन हार या स्ट्रेस को कैसे मैनेज करना है, यह नहीं सिखाते। जरा सी असफलता या दबाव में बेटियाँ टूट जाती हैं। इसे झेल सकने की क्षमता बेटियों में विकसित करना ही नारी सशक्तीकरण है। तो हार के मैनेजमेंट का मंत्र सिखाने वाली इस कहानी को ध्यान से पढ़ें। यह हममें से अधिकांश युवाओं, विशेषकर बेटियों के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है। असफलता और सफलता दोनों एक सिक्के के दोनों पहलू हैं। यह जानना जरूरी है कि असफलता कभी अंतिम नहीं होती है और इतनी घातक भी नहीं होती कि जान देनी पड़े। सफलता भी कभी स्थाई नहीं रहती है और देर-सबेर विफलता का स्वाद हमसब को चखना होता है।
आईआईटी के मेधावी छात्र की कहानी
बात कुछ साल पहले की है एक बहुत ही मेधावी छात्र था। उसे हमेशा विज्ञान में 100 प्रतिशत नंबर मिलते थे। फिर उसका चयन आई आई टी मद्रास में हो गया । वहां भी उसने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। इसके बाद वह एमबीए के लिए कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय गया। अमेरिका में उसे शानदार वेतन वाली नौकरी मिली और वह वहीं बस गया। उसने एक खूबसूरत तमिल लड़की से शादी की, 5 कमरे का बड़ा घर और लग्जरी कारें खरीदीं। सफल कहलाने के लिए उसके पास सबकुछ था। लेकिन कुछ साल पहले उसने अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। उसके जीवन में गड़बड़ी कहाँ हो गई?
गड़बड़ कहाँ हुई
कैलिफोर्निया के मनोविज्ञान चिकित्सा संस्थान ने उनके मामले का अध्ययन किया और खोज लिया कि गड़बड़ कहाँ हुई थी। शोधकर्ता ने लड़के के दोस्तों और परिवार से मुलाकात की। पता चला कि उस लड़के ने अमेरिका के आर्थिक संकट के कारण अपनी नौकरी खो दी थी और लंबे समय तक बेरोजगार था। वह पिछली वेतन राशि से बहुत कम पर भी काम करने को तैयार था लेकिन उसे नौकरी नहीं मिली। वह घर की किस्त भी नहीं चुका सका। घर भी हाथ से निकल गया। वह और उसका परिवार बेघर हो गया। गंभीर तंगी में उसने कुछ दिन काटे। फिर उसने पत्नी और बच्चों को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। इस केस स्टडी में निष्कर्ष निकाला गया कि उसे सफलताओं के लिए दक्ष किया गया था लेकिन असफलताओं से निपटने के लिए उसे प्रशिक्षित नहीं किया गया था।
विफलताओं से निपटने का प्रशिक्षण है सक्सेस मंत्र
अब वास्तविक मुद्दे पर आते हैं कि अतिसफल लोगों की आदतें क्या होती हैं? आपको सफलता के मंत्र सिखाने वाले बहुत लोग मिल जायेंगे, लेकिन आज इस बात को समझ लीजिये कि भले ही आपने जिन्दगी में बहुत कुछ हासिल कर लिया हो लेकिन इसकी भी पूरी आशंका रहती है कि आपसब कुछ पलभर में गवां दें। अगले पल क्या होने वाला है यह किसी को पता नहीं होता, यह भी नहीं पता होता कि अगला आर्थिक संकट दुनिया में कब आएगा। इस लिए सबसे अच्छा सक्सेस मंत्र यही है कि अपने आप को असफलताओं से निपटने के लिए प्रशिक्षित करें।
इस नवरात्र में हर पेरेंट्स से अनुरोध है कि अपने बच्चे को सफलता के लिए तैयार जरूर करें लेकिन उन्हें असफलताओं से निपटने के लिए भी प्रशिक्षित करें। उच्च कोटि का विज्ञान और गणित पढ़ कर उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने में मदद मिलेगी लेकिन जीवन के मर्म को समझ लें तो हर समस्या का सामना करने और उससे उबरने में मदद मिलेगी। पैसे के लिए काम करने के बजाय उन्हें सिखाएं कि पैसे कैसे काम करते हैं। उनमें जीवन के प्रति उत्साह और जुनून पैदा करें। जहां डिग्री काम नहीं करती वहां जीने का जुनून नैया पार लगता है। बेटियों को जीना सिखाएं और यही है असली नारी सशक्तिकरण।
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