जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
नई दिल्ली. महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले में डूब रही दो लड़कियों की जान बचाने वाले जिस एजाज़ अब्दुल रऊफ को प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया था वह अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम कर रहा है. जिस दौर में पदक जीतकर देश का नाम रौशन करने वालों के नाम पर सियासत का बाज़ार गर्म है उस दौर में महाराष्ट्र में यह शर्मनाक तस्वीर देखने को मिल रही है कि जिस नौजवान को देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के हाथों सम्मान दिया गया था वह नौजवान दो वक्त की रोटी के लिए मजदूर बन गया है.
नदाफ एजाज़ अब्दुल रऊफ ने एक अंग्रेज़ी अखबार को बताया कि 12वीं क्लास में फीस न दे पाने की वजह से मुझे स्कूल से निकाल दिया गया. मुझे पढ़ाई जारी रखनी है. बहन की शादी करनी है. आमदनी का कोई साधन हमारे पास है नहीं. इसी वजह से अपने पिता और बड़े भाई के साथ मैं भी मजदूरी करने लगा. उसने बताया कि मजदूरी करते हुए मैंने 12वीं क्लास विज्ञान विषय के साथ 82 फीसदी अंकों में पास की है. आगे पढ़ाई भी करनी है मगर मजदूरी करते हुए विज्ञान की पढ़ाई आसान नहीं है इसलिए आर्ट्स में एडमिशन ले लिया है. सब कुछ ठीक रहा तो महाराष्ट्र पुलिस में जाकर देश की सेवा करुंगा.
एजाज़ ने बताया कि जब वह 16 साल का था तब नदी में चार लड़कियां डूब रही थीं. मैं नदी में कूद पड़ा. दो को बाहर निकाल लाया लेकिन दो को नहीं बचा पाया. यह 30 अप्रैल 2017 की बात है. इसी के एवज़ में मुझे राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार मिला था. जिला परिषद ने भी लोगों से चंदा करवाकर मुझे 40 हज़ार रुपये का पुरस्कार दिया था. उसने बताया कि उसके पिता होमगार्ड की नौकरी करते थे. वह कांट्रैक्ट की नौकरी थी, चली गई. अब आगे पढ़ना भी है और परिवार भी चलाना है तो मजदूरी करना मजबूरी है.
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एजाज़ का कहना है कि मुझे किसी की आर्थिक मदद नहीं चाहिए लेकिन अगर एक ऐसी नौकरी मिल जाए जो मुझे ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने पर खर्च उपलब्ध करा दे तो मन लगाकर पढ़ाई कर सकता हूँ. एजाज़ ने बताया कि उससे वादा किया गया था कि 12वीं पास कर लोगे तो नौकरी भी मिलेगी और सरकारी योजना के तहत घर भी मिलेगा. मिला तो कुछ नहीं ऊपर से कोरोना के दौर में हालत और बिगड़ गई.