सुरेंद्र दुबे
कहते हैं राजनीति में लोग टायर होते हैं लेकिन रिटायर नहीं होते। सियासत में उम्र की कोई बंदिशे नहीं होती हैं किसी भी उम्र तक लोग कुर्सियों पर टिके रहते हैं। सियासत का काम ही एक-एक पायदान चढ़ कर शीर्ष तक पहुंचना। पर भाजपा ने अपनी पार्टी में अब परिदृश्य बदल दिया है। 75 साल से अधिक उम्र के लोगों को टायर हो या न हों रिटायर करने का सिलसिला शुरू कर दिया है। जो चहेते हैं उन्हें राज्यपाल की कुर्सी सौंप कर उपकृत किया जा रहा है और लालकृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को नेपथ्य में भेज दिया गया है।
दिल्ली की कुर्सी का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है, यानी उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटें जिसके पास हो, दिल्ली की कुर्सी उसी की हो जाती हैं। पहले ये कहा जाता था कि प्रधानमंत्री की कुर्सी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही जाता है। अब इसमें कुछ इजाफा हो गया है। ज्यादातर राज्यपाल बनने का रास्ता भी उत्तर प्रदेश से ही होकर गुजरने लगा है। गुजरे वक्त के जो नेता गुजरात के हैं उन्हें भी जमकर उपकृत किया जा रहा है।
केंद्र सरकार में यूपी के दबदबे के बाद राष्ट्रपति और राज्य के राज्यपालों की कुर्सी पर यूपी का ही दबदबा दिखाई दे रहा है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कानपुर के निवासी हैं। वहीं, देश के 29 राज्य और 7 केंद्र शासित राज्यों में आठ राज्य में उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले राजनेता राज्यपाल की कुर्सी पर आसीन हैं।
कुछ दिन पहले मोदी सरकार की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कई राज्यों के राज्यपालों का ट्रांसफर किया और कई जगह नए राज्यपाल नियुक्ति किए। इसमें सबसे बड़ा चौकाने वाला नाम फागू चौहान का रहा। फागू चौहान को बिहार का राज्यपाल बनाया गया है। वे यूपी के मऊ की घोसी विधानसभा सीट से विधायक हैं और बड़े पिछड़े नेता माने जाते हैं। यानी कि इस समय पिछड़ों की पौ बारह है। फागू चौहान को राज्यपाल बनाये जाने के बाद वर्तमान में उत्तर प्रदेश की आठ शख्सियतों को प्रदेश के इस सर्वोच्च सांविधानिक पद पर नियुक्त किया जा चुका है। अभी तक देश के सात राजभवनों की शोभा उत्तर प्रदेश के राजनेता बढ़ा रहे हैं।
सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह इस समय राजस्थान के राज्यपाल हैं, जिनके बेटे राजवीर सिंह लोकसभा सांसद हैं। उत्तर प्रदेश के चर्चित नेता तथा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के लाड़ले लालजी टंडन अभी तक बिहार और अब मध्य प्रदेश के राज्यपाल हैं, जिन्हें केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को लखनऊ से सांसद बनवाने के लिए अपनी लोकसभा सीट छोड़नी पड़ी थी। ऐसी चर्चा है कि टण्डन जी को बिहार से हटाकर मध्य प्रदेश का राज्यपाल इसलिए बनाया गया है क्योंकि वहां की कमलनाथ सरकार अब भाजपाईयों के निशाने पर है।
कभी कद्दावर नेता रहे अलीगढ़ के सत्यपाल मलिक इस समय जम्मू एवं कश्मीर के राज्यपाल पद की शोभा बढ़ा रहे हैं। 1995 से 2000 तक आगरा की महापौर रहीं बेबी रानी मौर्य इस समय उत्तराखंड की राज्यपाल हैं। भदोही के बीडी मिश्रा वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल हैं, जो सेना की पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखते हैं।
केशरी नाथ त्रिपाठी इस समय पश्चिम बंगाल के राज्यपाल हैं, जो उत्तर प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए दलबदल कानून के तहत लिए गए निर्णयों के लिए काफी चर्चा में रहे थे। इनका कार्यकाल 24 जुलाई को खत्म हो रहा है। देखना है कि इन्हें एक्सटेंशन मिलता या फिर नेपथ्य में ढकेल दिए जाते हैं। पिछली मोदी सरकार में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्री रहे कलराज मिश्र , जो 81वीं ढलान पर हैं, को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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