डॉ. उत्कर्ष सिन्हा
भारत सरकार का राजकोषीय घाटा फिलहाल 6.45 लाख करोड़ रुपए का है। इसका मतलब ख़र्चा बहुत ज़्यादा और कमाई कम. ख़र्च और कमाई में 6.45 लाख करोड़ का अंतर।
तो इससे निपटने के लिए सरकार ने तय किया है कि वो अपनी कंपनियों यानि सरकारी कंपनियों का निजीकरण और विनिवेश करके पैसे जुटाएगी।
ये है सूचना, अब जरा इसके विस्तार में चलिए, सरकार की सूची में सिर्फ खस्ताहाल में चल रही कंपनियों का नाम होता तो शायद इतना हंगामा न होता, लेकिन इस सूची में भारी मुनाफे में चल रही भारत पेट्रोलियम और LIC जैसी कंपनियों का होना चौकाता है।
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ये जों विनिवेश शब्द है, ये बड़ा सुंदर लगता है लेकिन इसका शुद्ध मतलब है बेचना, जनता की जमा पूंजी से खड़ी की गई सफल कंपनियों को कार्पोरेट्स के हाँथ सौंप देना। याद कीजिए अटल विहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व वाली भाजपा सरकार ने इसके लिए बाकायदा एक मंत्रालय ही बना दिया था।
इस पूरे खेल के कई दिलचस्प पहलू हैं… मुनाफे में चलने वाली पवन हंस हेलीकाप्टर कंपनी को बीते कुछ सालों से घाटा होने लगा है, कुछ लोग कह रहे हैं की ये साजिश के तहत हुआ और अब पवनहंस को बेचने का आधार खड़ा हो गया।
देश की दूसरी सबसे बड़ी सरकारी तेल कंपनी भारत पेट्रोलियम को सऊदी अरब और अमेरिकी कंपनी खरीदना चाहती है। एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट दाखिल करने की आखिरी तारीख सरकार ने 31 जुलाई तय की है। मामले की जानकारी रखने वाले लोगों के मुताबिक मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड भी बोली में हिस्सा ले सकती है।
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LIC सरकार के सबसे कमाऊ पूतो में से एक है, हर मुसीबत में इसने सरकार को भरपूर पैसे दिए, अब LIC भी आन सेल होगी। रेलवे के बारे में अब बाते साफ होने लगी हैं।
कई सवाल है। सवाल है की आखिर क्यों ये कसरत हो रही है? किसे होगा फायदा और किसे होगा नुकसान? और सबसे बड़ा सवाल ये कि इन कंपनियों में काम करने वाले लोगों की रोजगार सुरक्षा का क्या होगा? क्यूंकी मैनेजमेंट बदलेगा तो नियम भी बदलेंगे ही… तो आज करेंगे इसी पर बात..