डॉ उत्कर्ष सिन्हा
जरा याद कीजिए 2017 का वो चुनावी माहौल जब यूपी में बहदाल कानून व्यवस्था का मुद्दा जोरों पर था। तब विपक्ष में रही भारतीय जनता पार्टी ने एक नारा दिया “अपराध मुक्त उत्तर प्रदेश” सूबे के यमन पसंद लोगों को स्वाभाविक रूप से ये नारा खूब पसंद आया। इसके साथ ही महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा का नारा भी पैकेज का हिस्सा था। जनता ने भारतीय जनता पार्टी को सर आँखों पर उठाया और वोटों से उनकी झोली भर दी।
सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कड़े तेवर दिखाए और सीधे कहा कि अपराधी या तो यूपी छोड़ें या फिर दुनिया। पुलिस के हाँथ खोल दिए गए और ताबड़तोड़ एनकाउंटर्स की झड़ी ने एक खौफ का माहौल बना दिया। उम्मीद की गई कि भयमुक्त समाज का नारा हकीकत में तब्दील होगा और यूपी में बेटियाँ सुरक्षित रहेंगी।
मगर तीन साल बाद आसमान एक बार फिर सिहाय होने लगा है, सरकार अपराध में कमी के आँकड़े लाती है और उसी वक्त अपराधी एक और हत्या कर देते हैं। बीते एक हफ्तों की ही बात करें तो प्रतापगढ़, आजमगढ़ और गोरखपुर में जिस तरह हत्या की वारदातें हुई और लखीमपुर से ले कर गोरखपुर तक मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएं घटी उसके बाद ये कहना बहुत मुश्किल है कि सब कुछ ठीक चल रहा है।
और जिस पुलिस पर भरोसा करने की बात थी उसके हाँथ इतने खुल गए कि उसने अत्याचार की सीमाएं लांघ ली है। कहीं पूरा थाना ही बदमाशों के हाथों गिरवी पड़ा मिला तो कहीं फरियादी को इतना मारा गया कि कान ही फट गए।
ठोको नीति का असर ये हुआ कि घर से उठा कर गोली मारी जा रही है और उसे मुठभेड़ बता दिया जा रहा है, कहीं पुलिस पर ये आरोप लग रहा है कि वो फिरौती दिलवाने में शामिल है .. कुल मिला कर कहें तो हाल गजब ही है।
जरा देखिए ये रिपोर्ट..