करीब दस साल पहले दिल्ली की राजनीति का फैसला पंजाबी और जाट किया करते थे , मगर अब दिल्ली की सियासत की ड्राइविंग सीट पूर्वांचल ने हथिया ली है।कांग्रेस हो या भाजपा , संगठन से ले कर उम्मीदवारों तक पूर्वांचलियों का दबदबा साफ़ दिखता है।
पूर्वांचल, यानी यूपी और बिहार के लोग। बीते 20 सालों में दिल्ली की आबादी जितनी बढ़ी है उसका एक बड़ा हिस्सा इन्ही दो राज्यों से आता है। सियासत भी समाज से ही अपनी धारा बनाती है तो दिल्ली की धारा भी गंगा की धारा से प्रभावित होने लगी है। कांग्रेस और भाजपा , इन दोनों पार्टियों का दिल्ली दरबार इन्ही पूर्वांचलियों के हांथो में है। कांग्रेस शीला दीक्षित के भरोसे है जो यूपी की रहने वाली भी हैं और दिल्ली की सीएम् बनने से पहले यूपी से ही चुनाव लड़ती रही है। दिल्ली के भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी भी इसी इलाके से हैं और सियासत में उनकी एंट्री भी गोरखपुर में चुनाव लड़ कर ही हुई।
एक वक्त था जब मदन लाल खुराना , हरिकिशन लाल भगत , केदार नाथ साहनी जैसे नेता दिल्ली के राजनैतिक फलक पर छाये हुए थे। भारत विभाजन के वक्त बड़ी संख्या में पंजाबी शरणार्थियों ने दिल्ली को अपनी रिहाइश बनाई और उसके बाद से ही दिल्ली की सियासत पर पंजाबियों का रसूख लम्बे समय तक बना रहा। मगर 80 के दशक के बाद जब दिल्ली बदलने लगी तो रोजगार की तलाश में पुरबियों ने दिल्ली को अपना ठिकाना बनाया। बिहार की खस्ताहाल शिक्षा व्यवस्था और बढ़ाते जातीय संघर्षो ने भी बिहार के बच्चो को बेहतर शिक्षा के लिए दिल्ली का रास्ता दिखाया। धीरे धीरे दिल्ली में इन पुरबियों की बस्तियां बसने लगी।
2014 के चुनावो में भाजपा ने इस ताकत को समझा और वोटबैंक के रूप में बदलने के लिए भोजपुरी के स्टार गायक और अभिनेता मनोज तिवारी को पार्टी के टिकट पर उतार दिया , तब मनोज तिवारी सपा छोड़ कर भाजपा में आये थे। पुरबिया वोटबैंक के बूते उन्होंने ये चुनावी जंग जीती और फिर भाजपा ने मनोज तिवारी को दिल्ली भाजपा का अध्यक्ष भी बना दिया।
पूर्वांचलियों का दबदबा दिल्ली की करीब 4 सीटों पर है। इन सीटों पर करीब 20 से 30 प्रतिशत वोट पुरबियों के हैं। मगर सबसे ज्यादा प्रभावित उत्तर पूर्व दिल्ली की सीट है , इसीलिए भाजपा ने मनोज तिवारी , कांग्रेस ने शीला दीक्षित और आम आदमी पार्टी ने दिलीप पांडेय को उतारा है। ये सभी नेता यूपी से आते हैं। उत्तर पूर्वी दिल्ली के अलावा पूर्वी दिल्ली और पश्चिम दिल्ली लोकसभा सीटों पर भी पूर्वांचलियों की संख्या ज़्यादा है।
पश्चिमी दिल्ली से प्रवेश सिंह वर्मा के सामने आप के उम्मीदवार बलबीर सिंह जाखड़ और कांग्रेस के महाबल मिश्रा मैदान में हैं। इस सीट पर महाबल मिश्रा पहले भी जीतते रहे हैं जिसकी एक वजह उनका भी पूर्वांचली होना ही है।
पूर्वांचलियों को लुभाने के लिए कोई भी दल पीछे नहीं है। शीला दीक्षित का दावा है की उनके मुख्यमंत्री रहने के वक्त ही दिल्ली में छठ पूजा को महत्त्व मिला और इसके लिए दिल्ली में 90 घाट बनाये गए। शीला के इस दावे के बाद आम आदमी पार्टी ने दावा किया कि बीते 4 सालों में दिल्ली में 300 घाट बनाये गए हैं ताकी छठ पूजा करने के लिए मुश्किल न हो। भाजपा ने तो दिल्ली में पूर्वांचल महाकुम्भ का आयोजन भी करा दिया।
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हांलाकि दिल्ली के बीच वाले इलाकों में अभी भी पंजाबियों और बनियों का बड़ा वोट बैंक है, लेकिन इन सीटों पर भी पूर्वांचल के लोगो का करीब करीब 10 प्रतिशत वोट बनता है। इस बार का चुनाव तीनो पार्टियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
आप और भाजपा दिल्ली में अपना दबदबा खोना नहीं चाहती और कांग्रेस अपनी वापसी के लिए कमर कस रही है। ऐसे में चुनावो का त्रिकोणीय होना तय है। त्रिकोणीय चुनावो में पुरबियों का वोट बैंक किस करवट जाता है यह दिल्ली के नतीजे बताएँगे।