रेशमा खान
पटना। चार चरण के चुनाव समाप्त हो चुके हैं और अब कल होने वाले पांचवें चरण की तैयारी भी पुरी कर ली गई है। लेकिन जानकार ये बताते हैं की महागठबंधन के सबसे बड़े दल राजद को अपने सुप्रिमों की कमी इस चुनाव मे काफी खल रही है। सूत्र ये बताते हैं कि राजद में नेतृत्व की कमी की वजह से उसे कई जगह त्रिकोणीय मुकाबले का भी सामना करना पड़ा।
चौथे चरण के चुनाव में बीजेपी और अन्य दलों नें राजद को कम से कम तीन सीटों पर कड़ी चुनौती दी जिसमें बेगुसराय, दरभंगा और उजियारपुर महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं।
बेगूसराय में सीपीआई के स्टार उम्मीदवार कन्हैया कुमार, बीजेपी के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह और आरजेडी के तनवीर हसन के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखा गया। हालांकि, ये तीनों उम्मीदवार प्रबल दावेदार माने जा रहे है मगर इस सीट पर दो राजनीतिक है कन्हैया कुमार और गिरिराज सिंह के एक ही जाति(भूमिहार) के होने की वजह से वोट के बंटवारे की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।
हालांकि, राजद के तनवीर हसन नें बेगूसराय में वोट विभाजन की अटकलों को खारिज करते हुए कहा कि, ‘कन्हैया कुमार मुकाबले में कहीं थे ही नही। इस सीट पर महागठबंधन और एनडीए के बीच चुनाव लड़ा गया था’।
इस सीट से बीजेपी के भोला सिंह 2014 के आम चुनाव में राजद उम्मीदवार तनवीर हसन को 58,000 वोटों से हराया था। सीपीआई तीसरे स्थान पर रही थी। दूसरे और तीसरे चुनाव में आमुमन यही हाल रहा। खासतौर पर तीसरे चुनाव में महागठबंधन में कांटे की टक्कर देखने को मिली।
इस चरण में मधेपुरा सीट से पप्पू यादव के निर्दलीय चुनाव लड़नें की वजह से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया था। वरिष्ठ नेता शरद यादव को इस बार आरजेडी नें जेडीयू के दिनेशचंद्र यादव के खिलाफ खड़ा किया था।
रिपोर्टस के अनुसार मधेपुरा में इस बार 59.12 वोटरों नें मतदान किया था। सूत्रों ने कहा कि चार बार के सांसद शरद यादव को आरजेडी के पारंपरिक मुस्लिम–यादव (M-Y) और ओबीसी वोट बैंक से काफी उम्मीदें हैं। इस सीट पर यादव वोटर्स लगभग 22 प्रतिशत हैं, मुस्लिम 12 और दलित 13.5 प्रतिशत हैं।
हालांकि, राजनीतिक विशलेषकों ने मधेपुरा में वोटों के विभाजन की संभावना भी जताई हैं। उनका मानना है की एक ही जाति (यादव) से संबंधित तीन राजनैतिक दिग्गज के मैदान होने से शरद यादव को खासा नुकसान हो सकता है।
सुत्रो नें कहा की ‘जेडीयू के उम्मीदवार दिनेश यादव को मधेपुरा में यादव वोटों के बटवारे से फायदा हो सकता है’।
राजनीतिक विशलेषकों के अनुसार तीन दशकों में ये पहला चुनाव है जब लालू यादव खुद चनावी अखाड़े से दूर हैं। आरजेडी के बड़े नेताओं का मानना है की लालू के जेल में होने की वजह से लोगों में सहानुभूती तो है मगर पार्टी के भीतर उनकी कमी जरुर खल रही है जिसकी वजह से बिहार में चुनाव में महागठबंधन को थोड़ा झटका लग सकता है।
उन्होने सीटों के बटवारे को लेकर महागठबंधन में तनातनी की भी बात कबुली और बताया की कई सीट पर नेतृत्व की कमी की वजह से ही त्रिकोणीय मुकाबले का भी सामना करना पड़ा। महागठबंधन में खासतौर पर कन्हैया कुमार को समर्थन ना दे और उनके खिलाफ उम्मीदवार खड़ा करने को भी ‘एक बड़ी भूल बताया’।