जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ. मत्स्य उत्पादन गांव और गरीब की तरक्की का नया आधार बन गया है। कुछ साल पहले तक दर किनार रहे मत्स्य उत्पादन को राज्य सरकार ने अपनी योजनाओं से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार बना दिया है। पिछली सरकारों में घाटे का सौदा माने जा रहे मछली पालन के व्यावसाय ने हजारों युवाओं को उनके गांव में ही रोजगार का अवसर दे दिया है। पिछले 4 साल में प्रदेश में कुल 7.46 लाख मीट्रिक टन मछली उत्पादन हुआ जो कि सपा सरकार के 5 साल के कार्यकाल से 1.28 लाख मीट्रिक टन अधिक है। मछली उत्पादन में यूपी अब दूसरे राज्यों के लिए मिसाल बन गया है।
सरकार की कारगर योजनाओं के कारण यूपी में अब मछली उत्पादन का कारोबार तेजी से फैलने लगा है। गांव -गांव में युवा इस कारोबार से जुड़ रहे हैं। यूपी में रिकॉर्ड 7.46 लाख मीट्रिक टन मछली का उत्पादन इसका सबूत है। सपा सरकार के पांच साल के कार्यकाल में कुल 6.18 लाख मीट्रिक टन मछली उत्पादन हुआ था। मौजूदा सरकार ने 7883 मत्स्य पालकों किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध करा कर 6972.08 लाख रुपये का ऋण उपलब्ध कराया जबकि पिछली सरकार में एक भी मत्स्य पालक को क्रेडिट कार्ड योजना का लाभ नहीं दिया गया। वर्तमान सरकार ने पिछले चार वर्षों में प्रदेश के 2821 मछुआ आवास आवंटित किए हैं जबकि सपा सरकार के दौरान केवल 2383 मछुआरों को ही आवास दिए गए थे। पिछले 4 साल में राज्य में 3392.74 लाख मीट्रिक टन मत्स्य बीज उत्पादन हुआ जबकि पिछली सरकार के पांच साल में कुल 2703.56 लाख मीट्रिक टन मत्स्य बीज उत्पादन हुआ।
अंतरदेशीय मछली पालन (इनलैंड फिशरीज) के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ग्राम पंचायतों के स्वामित्व वाले तालाबों को 10 साल के लिए पट्टे पर दे रही है। इन सभी तालाबों का रकबा करीब 3000 हेक्टयर होगा। केंद्र सरकार की ओर से शुरू प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के लिए सरकार ने बजट में 243 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। मछुआरा समुदाय को आर्थिक सुरक्षा देने के लिए वित्तीय वर्ष 20121-2022 में दो लाख मछुआरों को निःशुल्क बीमा से आच्छादित किया जाएगा।
बीते वर्ष मछली पालन के लिए राज्य में चल रहीं योजनाओं के सफल संचालन और मछली उत्पादन के लिए उत्तर प्रदेश को उत्तर भारत का सर्वश्रेष्ठ राज्य चुना गया। बाराबंकी जिले के मछली पालक के रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस) सिस्टम को देश भर में लागू कर दिया गया है। अब नई पीढ़ी भी मछली उत्पादन की तरफ आ रही है।
राज्य में मछली की जितनी खपत होती है, उसका अधिकांश हिस्सा आंध्र प्रदेश से आता है। आय और स्वास्थ्य के बारे में बढ़ती जागरूकता के कारण आने वाले समय में पौष्टिक होने के कारण मछलियों की मांग ओर बढ़ेगी। लिहाजा इस क्षेत्र में अब भी भरपूर संभावना है।
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मछली उत्पादन में प्रदेश स्तर पर कई पुरस्कार जीतने वाले डॉक्टर संजय श्रीवास्तव के मुताबिक वैसे तो सिर्फ मछली उत्पादन में ही रोजी-रोजगार की ढेरों संभावनाएं हैं। अगर इसका विविधीकरण कर दिया जाए तो इसकी संभावना बढ़ जाती है। अगर मछली के साथ बत्तख पालन किया जाय तो दोहरा लाभ होगा। पूर्व पशु चिकित्साधिकारी डा.विद्यासागर श्रीवास्तव के एक हेक्टेयर तालाब में मछली के साथ पलने वाली 200-300 बतखों की बीट ही मछलियों के लिए भरपूर भोजन है। अलग से आहार न देने के नाते मत्स्य पालक की करीब 60 फीसद लागत बचती है। डा.विद्यासागर के अनुसार मच्छरों का लार्वा बतखों का स्वाभाविक आहार है। ये तालाब, आबादी के आसपास या धान के खेत में मौजूद मच्छरों के लार्वा को सफाचट कर जाती हैं।