जुबिली ब्यूरो
लखनऊ। यूपी की सरकार लाख दावे करे कि उसने स्वस्थ महकमे को माफिया से मुक्त कर दिया है और जीवन रक्षक दवाओं की क्वालिटी को बेहतर किया है , मगर खबरे इस दावे पर संदेह पैदा कर रही हैं। घटिया दवाओं की सप्लाई बे खौफ जारी है और मजे की बात ये हैं की इन घटिया दवाओं के लिए बाकायदा गुणवत्ता का सर्टिफिकेट भी विभाग से जारी हो रहा है।
सरकारी अस्पतालों में दवाओं की हेरा-फेरी किसी से छुपी नहीं है। अक्सर दवाइयां होने के बावजूद लोगों को दवा नहीं मिल पाती है। इतना ही नहीं सरकारी अस्पताल के डॉक्टर नियमों को ताक पर रखकर मरीजों की जान से खिलवाड़ करते हैं। आलम तो यह है कि यहां जीवनरक्षक दवाओं के नाम पर बड़ा खेल खेला जा रहा है। जीवनरक्षक दवाओं के नाम पर कुछ लोगों ने लाखों रुपये डकार लिये हैं। सरकारी अस्पतालों में जीवनरक्षक दवाओं के फेल होने के बावजूद मरीजों में बांटी जा रही है।
अस्पतालों में सप्लाई की जाने वाली दवाओं को लेकर लम्बा घपला किया गया है। दवाओं की क्वालिटी के नाम पर मरीजों की सेहत के साथ ही खिलवाड़ किया जा रहा है। ताजा मामला उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पातलों का है जहां जीवनरक्षक दवाओं के फेल होने के बावजूद मरीजों को दी जा रही है। जानकारी के मुताबिक यहां पर डेक्सामेथासोन सोडियम फासफेट इजेंक्शन की जिसकी लागत 56,34,014.04 लाख रुपये की थी।
उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लायर्स कॉरपोरेशन ने इस इजेक्शन का टेंडर हिमाल्या मेडीटेक को दिया था। इसका टेंडर नम्बर है यूपी एमएससीएल/ड्रग था। इस इजेक्शन का विवरण इस प्रकार है : पीओ नम्बर : यूपी/ यूपीएचक्यू/18/33/2(10281862080) जबकि पीओ डेट-03 नवम्बर 2018 है। इस इजेक्शन का बैच नम्बर है एचएल 18471 है जबकि मैन्युफैक्चरिंग डेट -11/2018 व एक्सपायरी डेट-10/2020 है।
उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लायर्स कॉरपोरेशन इस इजेक्शन को खरीद कर सरकारी अस्तपालों में बांट दिया। रोचक बात यह है कि इसे उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लायर ने क्लीयरेंस सर्टिफिकेट भी दे दिया लेकिन सबसे बड़ा झोल तब हुआ जब जीवनरक्षक इजेक्शन डेक्सामेथासोन सोडियम फासफेट इजेंक्शन की सैमप्लिंग लेकर जांच की गई तो यह फेल पाया गया है। उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लायर ने नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाते हुए बगैर टेस्टिंग इसे अस्पातलों में बांट रहा है जो नियमों के खिलाफ है। इतना ही नहीं मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इस तरह से देखा जाये तो 56,34,014.04 लाख रुपये का महंगा इंजेक्शन लैब के मानक पर खरा नहीं उतर रहा है।
इस पूरे खेल में उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लायर्स कॉरपोरेशन की भूमिका भी सवालों के घेरे में जिसने किसी जांच के बगैर क्लीयरेंस सर्टिफिकेट जारी कर दिया है। इसमें साफ लिखा है कि यह इजेक्शन स्डैंर्ड क्वालिटी का है। क्वालिटी कट्रोल के मैनेजर अनिल कुमार त्रिपाठी ने अपनी रिपोर्ट में इसे सही बता दिया है लेकिन ऐसा नहीं है जब इस इंजेक्शन की जांच की गई तो यह फेल पाया गया है। इस तरह से मरीजों की जिंदगी से खेला जा रहा है।
क्या है उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लायर कॉरपोरेशन
यूपी के सरकारी अस्पातालों में दवाओं की खरीद-फरोख्त का जिम्मा स्वास्थ्य विभाग का था लेकिन इसके बाद सूबे में योगी राज स्थापित हुआ तो दवाओं की क्वालिटी को लेकर उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लायर कॉरपोरेशन का गठन किया गया। जो दवाओं की खरीदकर सरकारी अस्तपालों में भेजता है।