रूबी सरकार
देश में हर साल लगभग तीस हजार बच्चे डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा हो रहे हैं, जो विश्व में सबसे अधिक है। डाउन सिंड्रोम से ग्रसित बच्चों में लड़कियों के मुकाबले लड़को की संख्या अधिक है। इन्हीं में एक लड़का लक्ष्य है, जो तीन साल का होने के बाद भी बोलता नहीं था, गुस्सा और कुण्ठा उसके चेहरे पर साफ देखी जा सकती थी। वह अपनी भावना के प्रति सही प्रतिक्रिया नहीं देता था।
लक्ष्य की मां सुरूचि चौधरी बताती हैं, कि उस वक्त न चाहते हुए मुझे स्वीकार करना पड़ा था, कि लक्ष्य एक सामान्य बच्चे की तरह व्यवहार नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा, उसमें ऑटिज्म के लक्षणों की पहचान पहले ही की जा चुकी थी। फिर उसकी थेरेपी के लिए मेरी खोज प्रारंभ हुई । 2017 में मैं एक ऑटिज्म जागरूकता कार्यक्रम में सम्मिलित हुई, तो वहां मुझे एक ऐसी संस्था का पता चला, जो लक्ष्य के इलाज के लिए उपयुक्त था। अगले ही दिन मैं लक्ष्य के उपचार के बारे में जानने आधार संस्था पहुंची।
हालांकि मुझे इस बात पर तब भी संदेह था, कि यहां इलाज से लक्ष्य को लाभ होगा। क्योंकि उसके व्यवहार के कारण समाज उसे मंदबुद्धि और पागल मानने लगा था। फिर उपचार प्रारंभ हुआ, जिससे लक्ष्य को नया जीवन मिला। श्रीमती चौधरी ने बताया, कि समय बीतने के साथ ही हर सुबह लक्ष्य की उत्सुकता आधार संस्था जाने के लिए दिखाई देने लगी। चिकित्सक के द्वारा उसे दिये जाने वाला स्नेह और प्यार उसे प्रेरित करता था।
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उन्होंने कहा, आधार संस्था द्वारा वाट्सएप्प ग्रुप पर लक्ष्य के कार्यकलाप के वीडियों देखकर मेरे शुरूआती संदेह खत्म होने लगे थे और आशा की एक किरण दिखाई देने लगी थी। दिन और महीने गुजरते गये, फिर करीब पांच महीने बाद एक दिन मुझे विश्वास ही नहीं हुआ, जब लक्ष्य ने अपना पहला शब्द आधार का उच्चारण किया । मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था, खुशी के आंसुओं के साथ मैंने अपनी ओर से आधार का आभार माना। लक्ष्य में जो सुधार हुआ, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। आज वह बोलने से रूकता नहीं है और आश्चर्यजनक रूप से वह रोज नये शब्दों का उच्चारण करता है। सालभर हुए उपचारों की बदौलत लक्ष्य ने वाणी, तकनीकी कौशल, सामाजिकता जैसी कई और भी मुश्किलों से पार पाया। लक्ष्य अब पांच साल का हो रहा है। वह नियमित रूप से स्कूल जाने लगा है। दिन-प्रतिदिन उसमें सुधार होता जा रहा है और सामाजिक जीवन की मुख्यधारा में वह शामिल होने लगा है।
प्राची भी हो रही सामान्य
लक्ष्य की तरह भोपाल जिले की बावडि़या कलां निवासी 6 साल की प्राची पाल भी डाउन सिंड्रोम से ग्रसित है। हालांकि प्राची ऊर्जा और उत्साह से भरी एक जीवंत बच्ची है, पर थोड़ी मूडी है, बहुत बातूनी है, लेकिन कुछ सवाल पूछे जाने पर वह नृत्य करने लगती है। वह नृत्य बहुत अच्छा करती है और इसका आनंद भी लेती है। प्राची केजी 2 में पढ़ती है। प्राची में मध्यम बौद्धिक विकलांगता है। पहले न तो वह अपनी भावनाएं व्यक्त कर पाती थी और न ही किसी चीज को बांटने की उसमें आदत थी। यहां तक, कि वह अपनी बारी का इंतजार करने में भी असमर्थ थी और पढ़ाई में अन्य बच्चों की बराबरी नहीं कर पाती थी। लेकिन उपचार के बाद वह अक्षर पहचानने लगी, एक से दस तक गिनती का स्पष्ट उच्चारण करती है। अब वह अपनी बात आसानी से साझा कर लेती है। यहां तक, कि वह खाने से पहले हाथ भी धो लेती है। उसे साथी बच्चों के साथ पढ़ना और दूसरे बच्चों को पढ़ते हुए देखना अच्छा लगता है। वह स्वयं कपड़े भी बदल लेती है।
जन्म के डेढ़ साल बाद उमर और उमेर को हुआ डाउन सिंड्रोम
मजदूर पिता के दो जुड़वा बच्चे उमर और उमेर जन्म के डेढ़ साल बाद डाउन सिंड्रोम से अचानक ग्रसित हो गये । मां बिलकिस बानो बताती है, कि जब उन्होंने देखा, कि उनके दोनों बच्चे सामान्य बच्चों की तरह व्यवहार नहीं कर रहे हैं, तो उन्होंने चिकित्सक से सलाह ली। चिकित्सक ने दवा के साथ-साथ थेरेपी की सलाह दी। आर्थिक रूप से कमजोर बिलकिस काफी दिनों तक बच्चों के इलाज के लिए भटकती रही, लेकिन जब आधार के बारे में उसे पता चला, तो वह फौरन बच्चों को लेकर यहां पहुंचीं । यहां उचित समर्थन और उच्च उपचार के बाद उमर में तो काफी सुधार आया, लेकिन उमेर की रीढ़ की हड्डी में काफी दिक्कत है।
परिजनों को मानसिक स्वास्थ्य की चिंता से गुजरना
डाउन सिंड्रोम एक ऐसा डिसऑडर है, जो बच्चे को किसी भी उम्र में अपनी चपेट में ले सकता है। भारत में प्रति एक हजार बच्चों में से एक बच्चा इस विकार के साथ पैदा होता है। वर्तमान में चार लाख से अधिक भारतीय इस विकास से पीडि़त हैं। वह इसलिए भी, क्योंकि इस विकास के प्रति जागरूकता बहुत कम है और ऐसे सभी बच्चों और वयस्कों के परिजनों को पीडि़त के मानसिक स्वास्थ्य की चिंता से गुजरना होता है। ऐसे में उनमें भी तनाव बढ़ता हैं, जो स्वयं उनके मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ाता है।
मुझे खुशी है, कि कुछ माताएं इतनी जागरूक हैं, कि वे चिंता और दुख के बजाय स्वयं आगे बढ़कर बच्चे के उपचार के रास्ते खोजती हैं। संस्था में अभी 30 डाउन सिंड्रोम से ग्रसित बच्चे हैं। भले ही सामान्य बच्चों की तरह इनका शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हो पाता हो, लेकिन ये बच्चे समझदार होते हैं। अधिकतर बच्चे साल भर में कुछ हद तक ठीक हो जाते हैं और सामान्य बच्चों की तरह व्यवहार करने लगते हैं। दरअसल ऐसे बच्चों को शारीरिक और मानसिक स्तर पर मजबूत बनाने के लिए इनके हर छोटी गतिविधियों को परिजनों द्वारा प्रोत्साहित करते रहना चाहिए।
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