चंचल
– हुंह ! फफीम खाएंगे ? पहले नाम लेना तो सीख ले ।
– योग गणित है । ‘ समभोग’ की तरह ।
1+1=2नही होता ।
1+1=1 भी नही होता ।
1+ 1=0 होता है ।
योग उत्सव नही है , समभोग की तरह ।
– आदत है , भूख की हद तक ।
– इसके लिए समय , परिस्थिति और स्थान की
वाध्यता कत्तई नही है ।
योग प्रदर्शन नही है , समभोग की तरह ।
– निहायत एकांत की अनंत यात्रा है, अनवरत
अविरल धारा की तरह । केंद्र विंदु है मूलाधार ।
योग सरल भाषा मे ।
पंडित किशन महाराज तबला के बादशाह थे ,बनारस के कबीर चौरा में रिहाइश रही , ‘ बाएं ‘ का ‘धा ‘ और उनका ठहाका बेजोड़ था । चलते चलते ‘ बजा ‘ देते थे । उनके अनेक शिष्य यह जो उनसे तबला सीखते थे। अमूमन वे सिखऊनी नही लेते थे । पिपलानी कटरा में प्रेस इनफार्मेशन व्यूरो के बनारस इंचार्ज शम्भूनाथ मिश्र टकरा गए । पान की दुकान पर खड़े हो गए । इतने में एक नौजवान पास आया –
– आप किशन महाराज है ?
– हूँ
– आप तबला सिखाते हैं ?
– हूँ
– रेट क्या है ?
– अलग अलग रेट है । ‘तुन्ना’ दो रुपये , ‘तिर्किट’ चार , ‘धा ‘ अठन्नी
– अगर इतना सीख कर आया हो तो ?
– पनही मार के मुह लाल कर दूंगा
– वो क्यों ?
– जो गलत सीखे हो उसे मिटाना भी तो पड़ेगा
इसे अंग्रेजी में कहते हैं – इरेज करना ।
( बनारस ‘अड़ी कथा ‘ से साभार )
कल जब हमने सुना कि 21जून ‘वर्ड योगा डे ‘ है,और लोग अलग अलग जत्थों मेंउत्सव मना रहेहैं तो हमने ‘खोर’ गुरु से कहा कि हे द्विकाल दर्शी , खोर गुरु ! पाणिनि शिष्य पतंजलि को को अगर यह मालूम रहता कि कलयुग के तीसरे पहर में जब , गिरोही राजगद्दी पर बैठेगा , उसका एक डिपर मफतखोर योगसूत्र , अष्टाध्यायी और चरक को एक साथ दुहेगा तो हम भूल कर भी बनारस न जाते । यहीं कांधार में अपने गुरु पाणिनि के साथ इन ग्रंथों को लिए दिए स्वर्ग सिधार जाते लेकिन इसकी ब्याख्या कभी न करते । आप त्रिनेत्र हैं , अनुमान लगाइए जब हम सुनते हैं कि योग ,योगा होकर सारनाथ , दिल्ली , बंगलूर , पता नही कहाँ कहाँ काशन बोल कर कराया जा रहा है –
‘ -टांग उठाओ , आंख बंद करके लम्बी लम्बी सांस लो , दोनो हाथ हिप पर ‘
– ?
– हम पिपलानी कटरा पहुंच गए खोर गुरु । किशन महाराज इरेज कर रहे हैं ।
खोर गुरु जोर का ठहाका लगाते हैं – सुन चोर बच्चा !यह युग ही हरामखोर , जमाखोर , मुफतखोर का है । इसका तर्क सुनो –
– कम से कम इतना तो हुआ लोग पातंजलि को जान गए , योगा को तो जाने ।
– क्या जाता है , ऐसे क्या उखाड़ रहे थे , पार्क में चले गए मुफ़्त में योग कर आये , क्या ले रहा है कोई हमारा ?
ये यह भी नही जानता कि कि मुफ़्त के नाम पर तुम्हारे दिमाग मे गोबर डाल रहा है , तुम इस बात पर मुतमइन हो कि ये सब गोबर ही सही पर मुफ्त में है ? पढ़े लिखे नादानों ! इसे ही अंग्रेजी में कहते है ‘ नैरेटिव गढ़ना ‘ उसका खेल देखो – पहले वह एक आवरण ओढेगा , नौटंकी के पात्र की तरह । केश बढ़ाएगा , दाढ़ी बड़ी करेगा , तिलक लगाएगा , धार्मिक रंग का चोंगा पहनेगा । वह हर हरकत करेगा जी सदियों से तुम्हारे मन मे स्थापित किया जा चुका है । वह अपने इस वाह्य आडंबर के चलते समाज से दो गज की ऊंचाई पर खड़ा हो जाता है । अब वह छल शुरू करेगा , अतीत का एक चमकता नाम उठा कर उसके अपठित खण्ड की व्याख्या अपने ढंग से करेगा । समाज सम्मोहित होगा । फिर झोले से एक उत्पाद निकालेगा ‘ नामर्दी की अचूक दवा ‘ नामर्द समाज दौड़ पड़ेगा । तसल्लीबक्स तेल , शुद्ध गाय (?)का दूध , । इसे लूट का नैरेटिव कहते हैं । तिजारत का एक बड़ा रूप है । आप आंख बंद करके टांग उठाये पड़े हैं , वह आपके खीसे में हाथ डाले कान में मंत्र पढ़ रहा है , शुद्ध जड़ी बूटी लेते जाओ
000
मनसा वाचा कर्मणा । कर्मणा , वाचा , मनसा ।
कर्मणा ( शरीर की शुद्धि )
यम ,नियम , आहार , प्रत्याहार वगैरह । आसन इसी का एक हिस्सा भर है । शरीर शुद्धि का ।
वाचा ( वाणी की शुद्धि )
व्याकरण का ज्ञान । इसे कहते हैं तत्व ज्ञान ।
मनसा ( चित्त शुद्धि )
यह है योग । स्वयं को शून्य में ले जाना । परमानंद की प्राप्ति ।
योग का सरल हल – अपने घर का एक हिस्सा निश्चित करलो । साफ सुथरा । एक आसन रख लो । नितांत एकांत । पांच मिनट अनुलोम विलोम । सुखासन में बैठ जाओ । समाधिष्ट हो जाओ । ज्यादा जानकारी के लिए स्वामी विवेकानंद का ‘राज योग’ पढ़ लीजिये । पातंजलि का ‘योग प्रदीप’ है ।
फुट नोट – खोर बाबा एक बेतुका बाबा है । कुछ भी सलीके का नही है । उसकी भाषा ‘ खोर ‘ से शुरू होती है खोर पर खत्म । अपने शिष्यों को चोर कह कर संबोधित करता है । साल में एक दिन काशी के शिवाला घाट पर सावन ,शुक्ल पक्ष के तीज के दिन प्रवचन देता है ।
(लेखक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष, स्वतंत्र लेखक और चित्रकार है । यह लेख उनकी फेसबुक वाल से साभार लिया गया है )