प्रमुख संवाददाता
लखनऊ. कोरोना वायरस की जानलेवा मार से घबराई दुनिया के सामने जब कोरोना से बचाने में इस संक्रमण से उबरकर सामने आये लोगों में ही उम्मीद की किरण देखने को मिली तो लोगों का उत्साहित होना लाजमी था. बताया गया कि कोरोना वायरस को हराकर घर लौट चुका मरीज़ स्वस्थ होने के 14 दिन बाद अपना प्लाज्मा देकर दो कोरोना संक्रमित मरीजों को ठीक कर सकता है. बताया गया कि प्लाज्मा थैरेपी इतनी कारगर है कि वेंटीलेटर पर जा चुका मरीज़ तेज़ी से स्वस्थ होने के रास्ते पर बढ़ सकता है.
प्लाज्मा थैरेपी की कारगर तकनीक की जानकारी के बाद स्वस्थ होने वाले 129 जमातियों ने अपना प्लाज्मा देने का एलान किया था. दिल्ली के अस्पतालों में प्लाज्मा तकनीक के उत्साहवर्धक परिणाम भी सामने आने लगे. कोरोना को हराने के लिए रात दिन मेहनत कर रहे डॉक्टरों ने भी प्लाज्मा थैरेपी की कारगर तकनीक से राहत की सांस ली.
इस कारगर तकनीक से उत्साहित सिंगर कनिका कपूर ने भी अपना प्लाज्मा डोनेट करने का एलान किया. डॉक्टरों की एक टीम ने उनके घर जाकर उनका ब्लड सैम्पिल भी लिया लेकिन कनिका के ब्लड रिपोर्ट ने विशेषज्ञों को एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया. कनिका का प्लाज्मा इस लायक नहीं पाया गया कि उससे कोरोना वायरस को हराया जा सके.
विदेश से लौटकर मुम्बई होती हुई लखनऊ आयीं कनिका कपूर शहर में दो पार्टियों के बाद कोरोना पॉजिटिव पाई गई थीं. लम्बे समय तक पीजीआई में उनका इलाज चला और उसके बाद ठीक होकर वह अपने घर पहुँचीं. कनिका ने कोरोना से लड़ रहे लोगों की मदद के लिए अपना प्लाज्मा देने की इच्छा जताई तो डॉक्टरों की टीम ने उनके ब्लड की जांच की तो यह पाया कि कोरोना से लड़ने वाले पार्टिकल बहुत कमज़ोर हैं. यह कमज़ोर पार्टिकल मरीजों को राहत नहीं पहुंचा सकते.
प्लाज्मा थैरेपी का प्रयोग कोरोना से जंग में बड़ा कारगर पाया गया है लेकिन कनिका की रिपोर्ट ने यह भी साबित किया है कि यह प्रयोग वास्तव में अभी ट्रायल के दौर में है. ज़रूरी नहीं है कि कोरोना को हराने वाला हर मरीज़ अपने प्लाज्मा से दूसरे मरीजों को ठीक करने में मददगार बन सके. लखनऊ में किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के दो डॉक्टर कोरोना के इलाज के दौरान संक्रमित हुए और खुद उससे ठीक होने के बाद अपने प्लाज्मा से दूसरे मरीजों के इलाज में मददगार बन गए. 40 जमाती भी अपना प्लाज्मा डोनेट कर चुके हैं.
विशेषज्ञ डॉक्टरों का मानना है कि कोरोना वायरस को हराने वाला अपना प्लाज्मा तभी डोनेट कर सकता है जबकि उसके खून में इतनी इम्यूनिटी पाई जाए जो दूसरे मरीजों के लिए फायदेमंद साबित हो. एक लाइन में बात कही जाए तो प्लाज्मा डोनेट करने वाले के साथ वही शर्तें होती हैं जो ब्लड डोनेट करने वाले के साथ होती हैं. ब्लड डोनर जैसे स्टैण्डर्ड पर जो खरा नहीं उतरता वह प्लाज्मा भी डोनेट नहीं कर सकता. प्लाज्मा डोनेट करने वाले का वजन तय स्टैंडर्ड से कम नहीं होना चाहिए. उसका हीमोग्लोबिन 12.5 ग्राम प्रति डेसीलीटर से कम नहीं होना चाहिए.
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प्लाज्मा देने वाले की उम्र 18 साल से 60 साल के भीतर होनी चाहिए. उसे ब्लड प्रेशर का मरीज़ नहीं होना चाहिए. उसे शुगर की बीमारी नहीं होनी चाहिए. हेपेटाईटिस से ठीक हो चुका मरीज़ भी प्लाज्मा डोनेट नहीं कर सकता. विशेषज्ञों का यहाँ तक कहना है कि उसने अगर छह महीने के भीतर अपने शरीर पर टैटू बनवाया है. उसने अगर अपना कान छिदवाया है. उसने अगर अपने दांतों का ट्रीटमेंट करवाया है. यहाँ तक कि पिछले 72 घंटों में उसने दर्द निवारक एस्प्रिन भी खाई है तो वह प्लाज्मा डोनेट नहीं कर सकता.
कोरोना वायरस का शिकार व्यक्ति के शरीर में एंटीबाडीज़ बनती हैं. यही वायरस से शरीर के भीतर लड़ाई करती हैं. वायरस से ज्यादा ताकतवर अगर एंटीबाडीज़ नहीं हों तो मरीज़ का ठीक होना मुश्किल होता है. जिनकी एंटीबाडीज़ ताकतवर होती हैं उनके शरीर में ठीक होने के बाद भी इनके बनते रहने का सिलसिला जारी रहता है. ऐसे लोगों का प्लाज्मा जब रोगी के शरीर में चढ़ाया जाता है तो रोगी के शरीर में कोरोना वायरस से तेज़ी से लड़ने वाले योद्धा पहुँच जाते हैं जो उसे हरा देते हैं और मरीज़ जल्दी ठीक हो जाता है.
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