कुमार भवेश चंद्र
अमेरिकी लोकतंत्र पर कालिख पोतने वाले ट्रंप अब अपनी करनी की वजह से फंसते नजर आ रहे हैं। यह तय हो गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर गरिमामय विदाई से वह वंचित रहेंगे। विवादों में रहना उनकी नियति रही।
राष्ट्रपति चुने जाने से लेकर पूरे कार्यकाल में, और अब जब राष्ट्रपति के रूप में उनकी विदाई का आखिरी हफ्ता आ गया है वे विवादों के बादशाह बन गए हैं। अमेरिका के निचले सदन यानी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव ने उनके खिलाफ महाभियोग लाने के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है।
अमेरिका यह भी एक नया इतिहास होगा कि कोई राष्ट्रपति अपने पूरे कार्यकाल में दूसरी बार महाभियोग का सामना करने जा रहा है। राष्ट्रपति रहते हुए उन पर अपने ही देश में विद्रोह को हवा देने के आरोप लगे।
पिछले ही हफ्ते चुनाव नतीजों को अमेरिकी पार्लियामेंट की स्वीकृति देने के लिए संसदीय कार्यवाही के दौरान उनका और उनके समर्थकों का जो रवैया सामने आया, पूरी दुनिया में उसकी आलोचना हुई। उनकी सार्वजनिक अपील को अमेरिकी लोकतंत्र को शर्मसार करने वाला कदम बताया गया। दुनिया के प्रमुख नेताओं ने उनके इस कृत्य की आलोचना की। अमेरिकी संसद पर ट्रंप भक्तों के हमले की तीखी निंदा हुई।
इन सबने डोनल्ड ट्रंप को अपनी ही पार्टी की नजरों में गिरा दिया। हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में ट्रंप के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर 10 रिपब्लिकन सांसदों के वोट बताते हैं कि उनकी प्रतिष्ठा अब उनकी पार्टी में भी नहीं बची है। उनके खिलाफ महाभियोग चलाने का प्रस्ताव पूर्ण बहुमत से पास हुआ है।
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अमेरिकी मीडिया के अनुसार प्रस्ताव के पक्ष में 232 वोट पड़े जबकि विरोध में 197 वोट डाले गए। महाभियोग के पक्ष में वोट करने वाले सांसदों की साफ राय थी कि पिछले दिनों संसद हुए फसाद के लिए ट्रंप पूरी तरह जिम्मेदार है। हालांकि प्रस्ताव पारित होने से ठीक पहले ट्रंप को सदबुद्धि आ गई थी और उन्होंने कहा कि अब वे किसी तरह की हिंसा के पक्ष में नहीं।
उन्होंने अपने लोगों से अपील भी की कि अब किसी तरह की हिंसा नहीं होनी चाहिए। कानून तोड़ने या इसी तरह की किसी तरह की कार्रवाई का वे विरोध करते हैं। लेकिन उनके आदर्शवादी भाषण का वोटिंग पर कोई असर नहीं हुआ। तनाव और माहौल को शांत करने की अमेरिकी नागरिकों से उनकी अपील के बावजूद उनकी ही पार्टी के 10 सांसदों ने उनके खिलाफ मतदान किया और नतीजा ये हुआ कि महाभियोग को साफ बहुमत के साथ पारित कर दिया गया।
महाभियोग पर बहस के दौरान भी ट्रंप को सांसदों की खूब खरी खोटी सुननी पड़ी। कहा गया कि अमेरिकी संसद में उस दिन जो भी हुआ उसे विरोध नहीं बल्कि विद्रोह कहना चाहिए। यह अमेरिका के लोकतंत्र पर संगठित विरोध था और दुखद है कि इसे अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसे भड़काया। सबसे कड़ा आक्षेप हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी लगाया।
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उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि ट्रंप देश के लिए खतरा बन चुके हैं। उन्होंने साफ कहा कि ट्रंप ने देश के खिलाफ विद्रोह के लिए लोगों को उकसाया। ट्रंप ने चुनाव के नतीजों को कभी स्वीकार नहीं किया और उसके बारे में बार-बार झूठ बोला। लोकतंत्र पर बेवजह शक किया गया।
पेलोसी ने कहा कि महाभियोग का यह संवैधानिक तरीका ट्रंप से अमेरिकी गणतंत्र को सुरक्षित करेगा। उन्होंने इसे लगातार नुकसान पहुंचाया है। रिपब्लिकन पार्टी के जिम जॉर्डन ने ट्रंप का बचाव किया। उन्होंने कहा कि डेमोक्रेट्स राष्ट्रपति ट्रंप को समय से पहले हटाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उनकी बात का समर्थन उनकी ही पार्टी के 10 सांसदों ने नहीं किया।
बहरहाल ट्रंप के खिलाफ महाभियोग का यह प्रस्ताव अब अमेरिकी सीनेट यानी वहां के उच्च सदन में विचार के लिए रखा जाएगा। और अमेरिका समेत पूरी दुनिया की नजर वहां से आने वाले फैसले पर टिकी है। 2019 में ट्रंप के खिलाफ लाए गए महाभियोग को सीनेट ने नामंजूर कर दिया था।
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यही एक उम्मीद बाकी है कि ट्रंप को किसी तरह की राहत मिले। लेकिन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव मे जिस तरह से उनकी ही पार्टी के सांसदों ने उनका साथ नहीं दिया है उससे किसी भी तरह के नतीजे का अनुमान मुश्किल नहीं है। हाल में संसद पर ट्रंप समर्थकों के हमले के बाद पार्टी के भीतर भी उनको लेकर समर्थन कम हुआ है।
अमेरिका के इतिहास में राष्ट्रपति के ऊपर इस तरह के महाभियोग का मामला केवल तीन बार सामने आया है। 1998 में मोनिका लेविंस्की की वजह से विवादों में आए बिल क्लिंटन को महाभियोग का सामना करना पड़ा था जबकि उससे भी पहले 1868 में एंड्रयू जॉनसन ने ऐसे ही संसदीय अपमान का सामना किया था। अमेरिकी इतिहास में यह भी दिलचस्प है कि ट्रंप को अपने कार्यकाल की समाप्ति के आखिरी हफ्ते में इस तरह के महाभियोग का सामना करने की नौबत आ रही है।