न्यूज़ डेस्क
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीते दिन G-7 की बैठक को स्थगित कर दिया है।यह बैठक जून में व्हाइट हाउस में होने वाली थी। अब यह सितंबर में हो सकती है। दरअसल अमेरिका चाहता है कि इस बार होने वाली G-7 की बैठक में वो भारत सहित कुछ अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देश हिस्सा लें।
एयरफोर्स वन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि ग्रुप-7 को सितंबर तक स्थगित किया जा रहा है। इस बैठक में अब रूस, साउथ कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और भारत को शामिल किया जाएगा।
ट्रंप ने कहा कि आज दुनिया में जो कुछ हो रहा है, मुझे नहीं लगता कि ग्रुप सेवन उसका वाजिब तरीके से प्रतिनिधित्व करता है। ये एक पुराना पड़ गया देशों का समूह बन गया है। अगला सम्मेलन सितंबर में या उससे पहले भी हो सकता है या फिर संयुक्त राष्ट्र की महासभा के बाद। ऐसा भी मुमकिन है कि मैं चुनाव के बाद ये बैठक बुलाऊं।
इससे पहले व्हाइट हाउस के स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशंस के निदेशक एलिसा एलेक्जेंड्रा फराह ने कहा कि यह हमारे पारंपरिक सहयोगियों को एक साथ ला रहा है, जिससे हम ये चर्चा कर सकेंगे कि किस तरह से भविष्य में चीन के साथ निपटा जाए।
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वहीं, इस बैठक में शामिल होने के लिए बीते शनिवार को जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल के कार्यालय ने कहा था कि वह शिखर सम्मेलन में तब तक शामिल नहीं होंगी जब तक कि कोरोना वायरस संक्रमण पर काबू नहीं पाया जाता।
क्या है जी-7
गौरतलब है कि जी-7 दुनिया के सबसे बड़े और सबसे उन्नत अर्थव्यवस्थाओं वाले सात देशों का एक मंच है। इसमें फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और कनाडा शामिल हैं। इन देशों के प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय, आर्थिक और मौद्रिक मुद्दों पर हर साल बैठक होती हैं।
मौजूदा समय में जी-7 की अगुआई अमेरिका कर रहा है। आम तौर पर शिखर सम्मेलन के दौरान, जी-7 अध्यक्ष एक या दो देशों के प्रमुखों को बैठक में शामिल होने के लिए आमंत्रित कर सकता है। पिछले साल फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जी 7 शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया था।
कितना प्रभावी है जी-7
जी-7 की आलोचना अक्सर लोग यह कह कर करते हैं कि यह कभी भी प्रभावी संगठन नहीं रहा है, हालांकि यह समूह कई सफलताओं का दावा करता है। इन दावों में एड्स, टीबी और मलेरिया से लड़ने के लिए वैश्विक फंड की शुरुआत करना भी शामिल है।समूह का दावा है कि इसने साल 2002 के बाद से अब तक 2.7 करोड़ लोगों की जान बचाई है।
यही नहीं समूह इस बात का भी दावा करता है कि 2016 के पेरिस जलवायु समझौते को लागू करने के पीछे इसकी अहम भूमिका है, हालांकि अमरीका ने इस समझौते से अलग हो जाने की बात कही है।