सुख और दुख में फर्क यूं खुद को बताते हो,
तुम उसको याद करते हो और भूल जाते हो
तुम जिसको चाहते थे, हासिल न कर सके
फिर खुशनसीब क्यों भला खुद को बताते हो
क्या इस ख़ुशी में तेरी कहीं गम भी है शरीक
क्यों रौशनी बुझा कर जन्मदिन मनाते हो
वे आज भी कहता है मुझे तेरा ही हमदर्द
तुम जिस रकीब को मेरा अपना बताते हो
तुम ही हो जो दुनिया को बदल सकते हो
तुम हर बुराई की वजह खुद को बताते हो
क्यूं आए थे जहां में क्या इसको भूल बैठे
कब से हो सोए, क्यूं नहीं खुद को जगाते हो
झुकना जिन्हे कुबूल था, फलदार हो गए
ये फलसफा तरक्की का, शाखों से पाते हो
तुम इसलिए औरों से पीछे रह गए हो आज
तुम अपनी उलझनों से खुद को दबाते हो
‘कजी’ तेरी जबान तो मीठी है बहुत मगर
सच कड़पा होता है, तुम्ही अक्सर बताते हो
अबूजर काज़ी