जुबिली न्यूज डेस्क
हिंदू धर्म में गाय का बहुत ही महत्व है। भारत के अधिकांश क्षेत्रों में गाय की पूजा होती है। इसलिए जब भी गायों के साथ कुछ बुरा होता है तो देश में बवाल हो जाता है।
जिस तरह पहले गाय की सेवा होती थी वैसे तो अब नहीं होता लेकिन अब भी गाय की तकलीफ लोगों को परेशान करती है।
अब भी तब सड़कों पर आवारा घूमने वाली गायों के पेट से कचरा, खासकर प्लास्टिक थैलियां निकलने की घटनाएं सामने आती हैं, तो भारतीयों को बहुत बुरा महसूस होता है, लेकिन हाल ही में गायों के पेट और प्लास्टिक से जुड़ी एक ऐसी खबर आई है, जो पूरी दुनिया के लिए वरदान साबित हो सकती है।
शोधकर्ताओं ने पाया है कि गायों के पेट के एक हिस्से में पाया जाने वाला बैक्टीरिया प्लास्टिक को खत्म करने का काम कर सकता है, वह भी बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए।
प्लास्टिक प्रदूषण ने दुनिया को तबाही के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है। वैज्ञनिक बार-बार चेता रहे हैं लेकिन प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध नहीं लग रहा है।
साल 1950 से अब तक 8 अरब टन यानी 1.5 अरब हाथियों के वजन के बराबर प्लास्टिक का उत्पादन किया जा चुका है।
प्लास्टिक का सबसे अधिक कचरा कूड़ा पैकेजिंग, एक बार इस्तेमाल में आने वाले कंटेनरों, कवर और बोतलों से पैदा होता है। हर जगह आसानी से मिलने वाले इन उत्पादों का ही दुष्प्रभाव है कि अब चाहे हवा हो या पानी, प्लास्टिक कचरा हर जगह मौजूद है।
कई रिचर्स रिपोर्ट में पाया गया है कि लोग न सिर्फ लोग अनजाने में खाने के साथ प्लास्टिक खा रहे हैं बल्कि इसके अति सूक्ष्म कण सांस के साथ हमारे फेफड़ों में भी जा रहे हैं।
ऐसे हालत में पिछले कुछ वर्षों से कई शोधकर्ता ऐसे अति सूक्ष्म जीवों की खोज में हैं, जिनके जरिए अमर मानी जाने वाली प्लास्टिक को धीरे-धीरे खत्म किया जा सके।
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गाय के पेट में है प्लास्टिक का संहारक
सबसे संतोषजनक बात यह है कि बहुत पहले ही ऐसे सूक्ष्मजीवों की खोज की जा चुकी है, जो प्राकृतिक पॉलिएस्टर (प्लास्टिक का एक रूप) को गला सकते हैं। यह प्राकृतिक पॉलिएस्टर टमाटर और सेब के छिलकों में पाया जाता है।
चूंकि गाय के आहार में भी ये प्राकृतिक पॉलिएस्टर शामिल होता है, इसलिए वैज्ञानिकों को लगा कि गायों के पेट में भी पर्याप्त मात्रा में ऐसे सूक्ष्म रोगाणु मौजूद होंगे, जो पौधों के हर तत्व को खत्म कर सकें।
इसे आजमाने के लिए वियना की यूनिवर्सिटी ऑफ नैचुरल रिसोर्सेज एंड लाइफ साइंसेज की डॉ डोरिस रिबिच और उनके साथियों ने ऑस्ट्रिया के एक बूचडख़ाने जाकर गायों के पेट के एक हिस्से रूमेन में पाया जाने वाला रस निकाला।
डॉ. डोरिस रिबिच कहती हैं, “एक गाय के पेट में करीब 100 लीटर यह रूमेन तरह का पदार्थ बनता है तो आप समझ सकते हैं कि हर दिन बूचडख़ानों में कितना रूमेन तरल पाया जा सकता है और यह केवल बर्बाद होता है।”
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प्लास्टिक गलाने की शुरूआत में लगेगा समय
शोधकर्ताओं ने जब यह द्रव निकाल लिया तो इसे तीन तरह के पॉलिएस्टरों, PET (एक सिंथेटिक पॉलिमर, जो आम तौर पर कपड़े और पैकेजिंग में इस्तेमाल होता है), PBAT (बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक जिसका इस्तेमाल अक्सर खाद वाली प्लास्टिक थैलियों में होता है) और PEF (रिन्यूएबल संसाधनों से बनी बायो प्लास्टिक) के साथ मिला दिया गया।
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इनमें से हर तरह की प्लास्टिक को फिल्म और पाउडर दोनों ही रूपों में रूमेन तरल के साथ मिलाया गया। इसके नतीजों में पाया गया कि तीनों ही तरह के प्लास्टिक, लैब में गायों के पेट में पाए जाने वाले तरल पदार्थ से गलाए जा सकते हैं।
इस प्रयोग में प्लास्टिक का चूरा, प्लास्टिक की फिल्म से ज्यादा तेजी से गला। शोधकर्ता बताते हैं, रूमेन में हजारों की संख्या में सूक्ष्मजीव मौजूद होते हैं, इसलिए प्रयोग के अगले चरण में हम उन उन सूक्ष्म जीवों की खोज करने वाले हैं, जो इस प्लास्टिक को गलाने के लिए जिम्मेदार हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा-फिर उन एंजाइमों को पहचानने की कोशिश होगी, जिन्हें पैदा करके ये सूक्ष्म जीव प्लास्टिक को गलाते हैं। एक बार इन एंजाइमों की पहचान कर ली गई तो उनका उत्पादन किया जा सकेगा और उन्हें रिसाइक्लिंग में इस्तेमाल किया जा सकेगा।
दुनिया के अधिकांश देशों में ज्यादातर प्लास्टिक कचरे का निस्तारण जलाकर किया जाता है। इसके अलावा इसे कई बार अन्य उत्पादों के निर्माण के लिए गलाया भी जाता है लेकिन इस प्रक्रिया में एक समय ऐसा आता है, जब प्लास्टिक इतना खराब हो जाता है कि इसका और ज्यादा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
प्लास्टिक निस्तारण की एक अन्य प्रक्रिया में केमिकल रिसाइक्लिंग का इस्तेमाल भी होता है, जिसमें प्लास्टिक को फिर से उसके केमिकल रूप में तोड़ लिया जाता है, लेकिन यह प्रक्रिया पर्यावरण के अनुकूल नहीं होती। ऐसे में एंजाइम का इस्तेमाल प्रदूषणरहित ग्रीन केमिकल रिसाइक्लिंग में किया जा सकता है।
वैसे यह पहली बार नहीं है, जब ऐसे किसी एंजाइम को खोजा गया हो। शोधकर्ता ऐसे एंजाइम खोजने और उन्हें विकसित करने के काम में पहले से लगे हैं। सितंबर में दो अलग-अलग एंजाइमों को जोड़कर एक सुपर एंजाइम का निर्माण किया गया था। ये दोनों एंजाइम जापान में प्लास्टिक खाने वाले सूक्ष्मजीवों में एक कचरा फेंकने वाले स्थान पर 2016 में पाए गए थे।
कुछ ही घंटों में प्लास्टिक खत्म कर सकते हैं सुपर एंजाइम
कृत्रिम तौर पर बनाए एंजाइम का पहला रूप 2018 में ही सामने आ गया था, जो कुछ ही दिनों में प्लास्टिक को खत्म करना शुरू कर देता था, लेकिन सुपर एंजाइम प्लास्टिक गलाने वाले सामान्य एंजाइम से छह गुना तेज काम करता है।
इसके पहले इसी साल अप्रैल में फ्रेंच कंपनी ‘कारबोइस’ ने जानकारी दी कि कई अलग-अलग एंजाइम, जिन्हें पत्तियों से बनी खाद के ढेर में पाया गया था, उन्होंने प्लास्टिक की 90 प्रतिशत बोतलों को सिर्फ 10 घंटे में ही खत्म कर दिया था।
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