कृष्णमोहन झा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कान्फ्रेन्सिंग के माध्यम से हाल में ही जो चर्चा की है उससे यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कोरोना संक्रमण को काबू में करने के लिए 3 मई तक बढ़ाये गए लाक डाउन को हटाने का उचित समय अभी नहीं आया है। प्रधान मंत्री के साथ चर्चा में अनेक राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने लाक डाउन बढ़ाने का सुझाव देते हुए कहा है कि इस संबंध में प्रधानमंत्री जो भी फैसला करेंगे उसका पालन करने के लिए वे पूरी तरह तैयार हैं।
3 मई तक बढ़ाया गया लाकडाउन आगे कब तक और किस रूप में लागू रहेगा यह जानने की उत्सुकता हर देशवासी को है और यह उत्सुकता प्रधानमंत्री के संदेश से ही मिट सकती है। प्रधानमंत्री ने 24 मार्च को राष्ट्र के नाम अपने संदेश में जब सारे देश में लाक डाउन लागू करने की घोषणा की थी तब उसकी थीम थी- जान है तो जहान है।
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फिर यह लाक डाउन जब 3 मई तक बढ़ाया गया तो उस थीम को बदल कर जान भी और जहान भी कर दिया गया। अब यह उत्सुकता का विषय है कि 3 मई को जब लाक डाउन के बारे में प्रधानमंत्री कोई नई घोषणा करेंगे तो उसकी थीम क्या होगी लेकिन एक बात तो निश्चित रूप से कही जा सकती है कि 3 मई तक चलने वाले लाक डाउन की नई अवधि और स्वरूप के प्रति लोगों की उत्कंठा पहले से कहीं अधिक है क्योंकि पहली बार जो लाक डाउन 21 दिनों के लिये लागू किया गया था उसकी अवधि बढाए जाने का देश वासियों को पहले से ही अंदेशा था और वे इसके लिए मानसिक रूप से तैयार भी थे। सबसे बड़ी बात तो यह है कि देशवासी 21 दिनों के लाक डाउन की अवधि बढ़ाने के पक्ष में थे परंतु ज्यों-ज्यों 3मई की तारीख़ नजदीक आ रही है त्यों-त्यों लाक डाउन बढ़ाने के बारे में लोगों की राय बंटी हुई नजर आने लगी है।
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आबादी का एक हिस्सा लाक डाउन को तीन मई के बाद भी कुछ समय तक इसे जारी रखने के पक्ष में तो है परंतु उसका मानना है कि आबादी का एक हिस्सा लाक डाउन को तीन मई के बाद भी कुछ समय तक इसे जारी रखने के पक्ष में तो है परंतु उसका मानना है कि सरकार यदि लाक डाउन को तीन मई के आगे और कुछ समय तक जारी रखना आवश्यक मानता है तो जनता को कुछ और रियायतें दी जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री की इस बात से शायद ही कोईअसहमत होगा कि अगर समय पर लाक डाउन लागू नहीं किया जाता तो दुनिया के देशों के समान हमारे यहां भी कोरोना वायरस का संक्रमण हजारों मौतों का कारण बन सकता था। संक्रमण को काबू में रखने के लिए केंद्र सरकार ने समय रहते देश में लाक डाउन लागू करने का जो कठोर फैसला किया उसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत की सराहना हो रही है। प्रधानमंत्री ने हाल में ही अपने मन की बात कार्यक्रम में कहा था कि देशवासियों को अतिआत्मविश्वास से बचना होगा ताकि ‘सावधानी हटी दुर्घटना घटी’ कहावत को सच साबित न हो सके।
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प्रधानमंत्री की इस चेतावनी को हमेशा ध्यान में रखने की जरूरत है पिछले दिनों देश के अनेक भागों में ऐसे दृश्य देखे जा चुके हैं जिनमें लोग लाक डाउन का उल्लंघन कर सड़कों पर तफ़रीह करते नजर आ रहे हैं। कई जगह जरूरी सामानों की खरीददारी करने के लिए मिली छूट का दुरुपयोग कर सडकों पर भीड लगाने से भी नहीं चूके। अंततः पुलिस को सख्ती दिखाने के लिए विवश होना पड़ा।
दरअसल सारे देश में एक साथ लाकडाउन लागू करने का फैसला कठोर भले ही था परंतु कोरोना संक्रमण से बचाव हेतु लाक डाउन की अनिवार्यता को स्वीकार करते हुए इसका पालन भी जनता ने खुद होकर किया और उसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आए परंतु लाक डाउन लागू करने से बड़ी चुनौती लाक डाउन हटाना है। जो लोग लाक डाउन में भी बाहर निकलने से बाज नहीं आते वे लाक डाउन हटने के बाद क्या कुछ कर गुजरेंगे। यह कौन बता सकता है इसलिए लाक डाउन का नया स्वरूप और उसकी नई अवधि तय करना भी सरकार के लिए एक कठिन चुनौती है।
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प्रधानमंत्री ने विगत दिनों विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ जो चर्चा की उससे यह संभावनाएं बलवती हो उठी हैं कि 3 मई के बाद उन क्षेत्रों में छूट बढाई जा सकती है जो हाट स्पाट की श्रेणी में नहीं हैं। जो क्षेत्र अभी भी हाट स्पाट बने हुए हैं उन्हें लाक डाउन में छूट के लिए अभी और इन्तजार करना होगा। राज्य सरकारों को लाक डाउन में धीरे- धीरे छूट बढ़ाने की रणनीति पर ही अमल करना होगा।
रेड जोन वाले जिलों को आरेंज जोन में लाने और आरेंज जोन में आने वाले जिलों को ग्रीन जोन में लाने के लिए सभी राज्य सरकारें भरसक प्रयास कर रही हैं। हर राज्य सरकार यह चाहता है कि उसके यहां जल्दी से जल्दी आर्थिक गतिविधियों की शुरुआत है कार्यालयों में पहले जैसा कामकाज होने लगे परंतु इसके लिए 3 मई के पहले ही एक रोड मैप तैयार करना होगा और 3 मई के बाद उस पर सुनियोजित तरीके से अमल कर निरंतर समीक्षा करनी होगी। प्रधानमंत्री ने सावधानी हटी दुर्घटना घटी की स्थिति के प्रति पहले ही सचेत कर दिया है।
प्रधानमंत्री के साथ चर्चा में इस बार 9 राज्यों के मुख्य मंत्रियों को अपनी बात कहने का मौका मिला और इस बात पर आम तौर पर सहमति रही कि रेल और हवाई सेवाएं फिर से प्रारंभ करने का उचित समय अभी नहीं आया है। बिहार के मुख्यमंत्री ने प्रवासी मजदूरों का मुद्दा उठाते हुए कहा कि केंद्र सरकार को इस संबंध में पहले जारी की गई गाइड लाइन में संशोधन करना चाहिए।
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गौरतलब है कि बिहार के जो मजदूर और छात्र लाक डाउन के कारण दूसरे राज्यों में फंसे हुए हैं उन्हें बिहार वापस लाने से मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने फिलहाल मना कर दिया है। इसके लिए राज्य के प्रमुख विपक्षी दल राजद ने उनकी आलोचना भी की है परंतु नीतिश कुमार अपने फैसले से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं।
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इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों का धैर्य अब जवाब देने लगा है और वे अपने घर वापस पहुंचने के लिए हर तरह का कष्ट सहने के लिए तैयार हैं। मीलों पैदल चलकर या साइकिल चलाकर जब वे राज्य की सीमा पर पहुंचते हैं और उन्हें वहां से वापस लौटा दिया जाता है तब उन्हें जो निराशा होती होगीं उसकी कल्पना करना कठिन नहीं है। इन मजदूरों के पास अब इतने पैसे भी नहीं हैं कि वे पेट भर भोजन कर सकें। सरकार की ओर से यद्यपि राशन और खाना बांटा जा रहा है परंतु वह या तो अपर्याप्त है अथवा कई बार उसका लाभ हर बेबस मजदूर तक नहीं पहुंच पाता। लाक डाउन के तीसरे चरण मे प्रवासी मजदूरों और छात्रों की घर वापसी सुनिश्चित करने के लिए की योजनाबद्ध शुरूआत करने के लिए अभी से कोई रोड मैप तैयार किया जाना चाहिए।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने इस दिशा में जो पहल की है वह सराहनीय है। अब उसे चरण बद्ध तरीके से आगे बढ़ाने की जरूरत है। कोटा से उत्तर प्रदेश के छात्रों की वापसी के बाद और भी कई राज्य अपने यहां के छात्रों को वापस ले जा चुके हैं। नीतिश कुमार इसके लिए कई तैयार नहीं हैं। ऐसे में कोटा में पढ़ने वाले बिहार के छात्रो एवं उनके अभिभावकों की मनोदशा को समझना कठिन नहीं है।
अब समय आ गया है कि इस संबंध में एक निश्चित गाइड लाइन जारी कर दी जाए। इससे प्रवासी मजदूरों एवं छात्रों की अधीरता को कुछ कम करने में मदद मिल सकती है। कुल मिलाकर तीन मई के बाद सरकार के सामने बड़ी चुनौती आर्थिक गतिविधियों की शुरुआत करके उनको गति प्रदान करने की है उसके साथ ही उसे प्रवासी मजदूरों एवं छात्रों की सुनियोजित घर वापसी के बारे में कोई रोड मैप भी तैयार करना है। सरकार को निरंतर कोरोना के संक्रमण की स्थिति पर भी निगरानी रखना है। अगर गंभीरता के साथ सारे पहलुओं पर विचार किया जाए तो अब पहले से भी अधिक सावधानी की जरूरत है ताकि हमारी अब तक की उपलब्धि पर पानी न फिर सके।
(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के सलाहकार है)