सुरेंद्र दुबे
लगता है देश के इतिहास के साथ छेड़छाड़ का सिलसिला अब शुरु हो गया है। वैसे इतिहास, इतिहासकार लिखते रहे हैं पर न्यू इंडिया में यह काम राजनीतिक दल करने को उतावले मालूम देते हैं। ऐसा भी समय आ सकता है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग ढंग से इतिहास लिखाया और पढ़ाया जाए। ये भी हो सकता है कि केंद्र सरकार के विद्यालय एक ढंग का इतिहास बताए और राज्य सरकारें दूसरे ढंग का इतिहास बताए। पूरे देश में एक ही ढंग का सही या गलत इतिहास तभी बताया जायेगा जब पूरे देश में केवल एक पार्टी की सरकार हो। इस समय पूरे देश में न भाजपा की सरकार है और न ही कांग्रेस की। इसलिए छात्रों को अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न इतिहास पढऩे को मिल सकता है। इतिहास सही लिखा जा रहा है या गलत, इसका निर्णय तो भविष्य में इतिहासकार ही कर पायेंगे। कम से कम इतिहास के साथ नेतागिरी करने से बचना चाहिए।
अब इतिहास को कैसे तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है इसकी एक बानगी मणिपुर में दिखी है। वहां बोर्ड के कक्षा 12 के राजनीति विज्ञान के पेपर में छात्रों से कमल बनाने और ‘राष्ट्र निर्माण के लिए नेहरू के दृष्टिकोण के नकारात्मक लक्षणों’ के बारे सवाल पूछा गया है। आज तक राजनीति शास्त्र में कभी भी किसी राजनैतिक दल के चुनाव चिन्ह के बारे में न तो पूछा गया और न ही उसका चित्र बनाने को कहा गया, क्योंकि यह सब राजनीति शास्त्र के पाठ्यक्रम का अंश नहीं होता है।
आप ये भी सवाल कर सकते हैं कि अगर कमल का फूल बनाने को कह ही दिया गया तो ऐसा क्या गलत हो गया? पर ये एक शुरुआत है, जो भविष्य में इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने की आशंकाओं की ओर इशारा करता है। आज कमल का चिन्ह बनाने को कहा गया, आने वाले कल में कमल के चुनाव चिन्ह का प्रचार-प्रसार करने को भी कहा जा सकता है। कमल का चित्र बनवाते-बनवाते छात्रों को यह भी रटाया जा सकता है कि अगली बार चुनाव में कमल के निशान पर ही बटन दबाना।
मणिपुर में भाजपा की सरकार है तो वहां कमल चुनाव चिन्ह बनाने के लिए कहा गया। जिस प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होगी वहां हाथ के पंजे की छवि बनाने को कहा जा सकता है। यानी जिस प्रदेश में जिसकी सरकार होगी उसका चुनाव चिन्ह राजनीति शास्त्र के प्रश्नपत्र में पूछा जाने लगेगा। धीरे-धीरे पार्टियां इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर राज्यों और देश के इतिहास में अपनी पार्टी के कपोल कल्पित इतिहास का वर्णन करने लगेंगी।
पंडित जवाहर लाल नेहरू के बारे में पूछा गया प्रश्न साफ-साफ दर्शाता है कि इरादा नेहरू की छवि धूमिल करने का है। वर्ना कभी किसी राजनेता के बारे में नकारात्मक सवाल नहीं पूछा जाता है। हो सकता है कि कल प्रश्नपत्र में ये पूछ लिया जाए कि पंडित नेहरू कितने घटिया नेता थे। ये भी पूछा जा सकता है कि महात्मा गांधी ने कौन-कौन से गलत काम किए थे। महापुरुषों व राजनेताओं के बारे में इस तरह के सवाल इस बात की ओर इशारा करते हैं कि इरादा छवि धूमिल करने का है, प्रश्न पूछने का नहीं। क्येांकि जो पूछा गया वह प्रश्न न होकर एक टिप्पणी है। जिस पर उत्तर नकारात्मक ही देना है।
मणिपुर में इस मामले को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। सत्तारूढ़ बीजेपी और कांग्रेस आमने-सामने आ गई हैं। इस मामले में मणिपुर प्रदेश कांग्रेस कमिटी (PCC) के प्रवक्ता जयकिशन ने कहा है कि ‘सवाल छात्रों के बीच एक निश्चित राजनीतिक मानसिकता को स्थापित करने के प्रयास का हिस्सा थे।’ तो वहीं बीजेपी प्रदेश महासचिव एन निम्बस सिंह ने कहा कि छात्रों से ‘राष्ट्र निर्माण के लिए नेहरू के दृष्टिकोण के नकारात्मक लक्षणों’ के बारे में पूछना ‘प्रासंगिक’ था क्योंकि वह देश के पहले पीएम थे। सिंह ने कहा कि चूंकि नेहरू ने भारत के निर्माण में भूमिका निभाई, इसलिए उनके नेतृत्व में सिस्टम में नकारात्मकता के साथ-साथ सकारात्मकता भी हो सकती थी।
अभी यह घटना एक छोटी सी घटना लग रही है। जो बड़े घटनाक्रम की शुरुआत की ओर इशारा करती है। राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे अपने राजनीतिक एंजेडे को बढ़ाने के लिए इतिहास के साथ छेड़छाड़ न करें। आज जो सत्ता में हैं वो कल विपक्ष में हो सकते हैं। जब पाला बदलेगा तब इतिहास के राजनीतिकरण का दंश उन्हें भी कष्ट देगा। समय सबका इतिहास बताता और लिखता है। प्रश्नपत्र में मनमाने ढंग से राजनीतिक इतिहास लिखने से किसी पार्टी का इतिहास नहीं लिखा जा सकता।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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