फैज़ान मुसन्ना
लेबनान से लेकर सीरिया, इराक, यमन और गजा पट्टी तक में ईरान ने बीते दशक में अपने लिए समर्थक जुटाए हैं। वह पूरे मध्य पूर्व के संघर्षरत इलाकों में अपने लिए सहयोगी बना रहा है और उनके साथ रिश्ते मजबूत कर रहा है। खुद को “प्रतिरोध की धुरी“ कहने वाले गुटों में हिज्बुल्लाह सबसे प्रमुख सदस्यों में है। इन हथियारबंद गुटों में दसियों हजार शिया लड़ाके हैं जो तेहरान के प्रति निष्ठा जताते हैं।
ईरान ने इन गुटों का इस्तेमाल पहले अपने इलाकाई दुश्मनों के खिलाफ हमलों में किया है। इस बात की पूरी आशंका है कि अमेरिका के साथ चल रहा तनाव अगर युद्ध की परिणति तक पहुंचता है तो वह इन लड़ाकों को एकजुट कर इनका इस्तेमाल करेगा।
ईरान फलस्तीन चरमपंथी गुटों को लंबे अरसे से समर्थन देता आ रहा है। उससे समर्थन हासिल करने वालों गुटों में हमास और दूसरे छोटे इस्लामिक फलस्तीन सर्मथक गुट शामिल हैं। हालांकि वर्ष 2011 में हुए अरब बंसत क्रति के बाद ईरान और हमास में दूरियां बढ गयी हैं। इसका नतीजा हमास को हर महीने लाखों डॉलर के नुकसान के रूप में उठाना पड़ा। आज यह गुट गंभीर आर्थिक संकट में है। इसके कर्मचारी और सार्वजनिक सेवा के लोगों को कई वर्षों से पूरी तनख्वाह नहीं मिली है।
माना जाता है कि ईरान अब भी इन्हें सैन्य मदद तो दे रहा है। मगर अब इस गुट को ज्यादा मदद कतर से मिल रही है और ऐसे में उम्मीद कम है कि यह क्षेत्रीय युद्ध की स्थिति में ईरान के साथ जाएगा। सुन्नी चरमपंथियों का गुट इस्लामिक जेहाद ईरान के ज्यादा करीब है लेकिन यह भी हिज्बुल्ला जितना ईरान से हिला मिला नहीं है।
हालांकि बेरुत में हिज्बुल्लाह के नेता ने ईरान की इस्लामिक क्रांति के 40 वर्ष पूरे होने पर एक बड़ी रैली में मजबूती से संदेश दिया कि अमेरिका से लड़ाई हुई तो ईरान अकेला नहीं होगा। हिज्बुल्लाह के नेता नसरल्लाह ने कहा, “अगर अमेरिका ईरान के खिलाफ युद्ध छेड़ता है तो इस लड़ाई में ईरान अकेला नहीं होगा। उन्होने कहा क्योंकि हमारे इलाके का भविष्य इस्लामिक रिपब्लिक ईरान से जुड़ा है।“
हिज्बुल्लाह
अरबी में हिज्बुल्लाह का मतलब है, “खुदा का दल.“ ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड ने लेबनान के गृहयुद्ध के दौरान 1980 के दशक में इसकी नींव रखी थी। आज यह इलाके का सबसे प्रभावशाली हथियारबंद गुट है जो ईरान के प्रभाव को इस्राएल के दरवाजे तक ले जा सकता है। अमेरिका के उप विदेश मंत्री जेफरी फेल्टमन ने हिज्बुल्लाह गुट को ईरान का “सबसे सफल निर्यात“ और तेहरान का “बहुउद्देशीय औजार“ बताया था।
1982 में लेबनान पर इस्राएल की चढ़ाई के बाद उसका मुकाबला करने के लिए हिज्बुल्लाह का गठन हुआ था। हिज्बुल्ला ने 18 साल तक इस्राएल से गुरिल्ला युद्ध किया आखिरकार इस्राएल साल 2000 में लेबनान से बाहर निकल गया। छह साल बाद हिज्बुल्ला ने एक और जंग इस्राएल से लड़ी जो करीब एक महीने चली।
आज इस गुट के पास दसियों हजार रॉकेट और मिसाइलें हैं जो इस्राएल में काफी अंदर तक जाकर मार कर सकती हैं। इसके अलावा कई हजार अनुशासित लड़ाके हैं जिनके पास जंग लड़ने का खूब अनुभव है। हिज्बुल्लाह सरकारी सेना के साथ छह साल से सीरिया में लड़ रहा है और जंग के मैदान में अपनी काबिलियत को पक्का कर रहा है।
अपने देश में इस गुट की ताकत लेबनान की सेना से ज्यादा है और अपने सहयोगियों के साथ अब यह संसद और सरकार में भी पहले से बहुत ज्यादा ताकतवर हो गया है।
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हालांकि तमाम नारों के बावजूद हिज्बुल्लाह का कहना है कि वह इस्राएल के साथ एक और युद्ध नहीं चाहता और किसी क्षेत्रीय युद्ध में शामिल नहीं होगा, कम से कम शुरुआती दौर में, जब तक कि उसे उकसाया ना जाए। सीरिया की जंग में हिज्बुल्लाह ने अपने सैकड़ों लड़ाके खोए हैं। जाहिर है कि यह नुकसान शिया समुदाय का है जहां से उसे सबसे ज्यादा समर्थन मिलता है।
शिया विद्रोही हूथी
यमन के शिया विद्रोही हूथी के नाम से जाने जाते हैं। हूथी विद्रोहियों ने उत्तर की ओर से जंग छेड़ी और 2014 में राजधानी सना पर कब्जा कर लिया। इसके अगले साल सऊदी अरब के नेतृत्व में एक गठबंधन सेना इस जंग में सरकार की तरफ से उतरी. तब से यह जंग चली आ रही है इसमें दसियों हजार लोगों की मौत हुई है और दुनिया के लिए एक बड़ा मानवीय संकट पैदा हो गया है।
सऊदी अरब हूथी विद्रोहियों को ईरान के छद्म लड़ाके मानता है। पश्चिमी देशों के साथ संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों और सऊदी अरब ने आरोप लगाया है कि ईरान ने उन्हें हथियार दिए हैं। इनमें लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों की भी बात कही जाती है जिन्होंने सऊदी अरब की राजधानी रियाद पर भी हमले किए हैं। ईरान विद्रोहियों का समर्थन करता है लेकिन उन्हें हथियार देने के आरोप से इनकार करता है।
सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन के युद्ध में उतरने के बावजूद हूथियों ने अपने कब्जे की बहुत थोड़ी जमीन ही खोई है। इस हफ्ते की शुरुआत में उन्होंने सऊदी अरब की एक प्रमुख तेल पाइपलाइन पर ड्रोन से हमला किया। सऊदी अरब ने इसका जवाब यमन के हूथी नियंत्रण वाले इलाके में हवाई हमले से दिया। इस हमले में बहुत से आम लोग मारे गए।
इराकी मिलिशिया
इराक ने शिया मिलिशिया को 2003 में अमेरिकी हमले के बाद उनसे लड़ने के लिए ट्रेनिंग, पैसा और हथियार दिया। एक दशक बाद यही गुट इस्लामिक स्टेट से लड़ने लगा। इस गुट में असैब अहल अल हक, कातेब हिज्बुल्लाह और बद्र संगठन शामिल हैं। इन तीनों का नेतृत्व ऐसे लोगों के हाथ में है जिनके जनरल कासेम सुलेमानी से करीबी संबंध हैं। सुलेमानी ईरान की एलीट कुद्स फोर्स के कमांडर हैं और तेहरान की क्षेत्रीय नीतियां तैयार करते हैं।
यह मिलिशिया इराक की लोकप्रिय मोबिलाइजेशन फोर्सेज (पीएमएफ) के झंडे के नीचे काम करती है जो मुख्य रूप से शिया मिलिशियाओं का एक संगठन है। इसे देश की सशस्त्र सेना ने 2016 में तैयार किया था. कुल मिला कर इनमें करीब 1 लाख 40 हजार लड़ाके हैं। भले ही यह संगठन औपचारिक रूप से इराकी प्रधानमंत्री के प्रशासन में है लेकिन राजनीतिक रूप से पीएमएफ के लोग ईरान के साथ जुड़े हैं।
इराकी संसद ने 2014 में अमेरिकी सेना को बुलाया और उसके बाद अमेरिकी सेना और पीएमएफ इस्लामिक स्टेट से जंग में मिल कर लड़े। अब जब यह जंग मोटे तौर पर खत्म हो गई है कुछ मिलिशिया नेताओं ने अमेरिकी सेना से बाहर जाने को कहा है और उन्हें बार बार खदेड़ने की धमकी दी है। ईरान से बढ़ते तनाव के मद्देनजर इस हफ्ते अमेरिका ने सभी गैरजरूरी सरकारी कर्मचारियों से इराक छोड़ने के लिए कहा।
अमेरिका और ईरान के बीच की तनातनी ने मध्यपूर्व में एक और युद्ध की आशंका जगा दी है। कई लोग कयास लगा रहे हैं कि युद्ध की स्थिति में ईरान का साथ कौन देगा?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ है. ये लेख उनके ब्लॉग “मुबाहिसा” पर भी प्रकाशित है )