कृष्णमोहन झा
केंद्र में मोदी सरकार की दूसरी पारी का प्रथम वर्ष पूर्ण हो चुका है लेकिन वर्तमान परिस्थितियां सरकार को इस अवसर पर उल्लासपूर्ण आयोजन करने की अनुमति नहीं दे रही हैं। देश में कोरोना संक्रमण ने जो भयावह रूप अख्तियार कर लिया है उसे देखते हुए सरकार खुद भी ऐसे किसी भी आयोजन को उचित नहीं मान रही है और यही एक संवेदनशील सरकार की पहचान है कि वह समय की नजाकत को देख कर ही आगे कदम बढाए। यह सही है कि लाकडाउन के लगातार चार चरणों के बाद भी हम देश में कोरोना को हराने में अपेक्षित सफलता अर्जित नहीं कर पाए परंतु इस बात से इंकार करना भी उचित नहीं होगा कि सरकार ने कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं रखी। देश में कोरोना संक्रमण की शुरुआत होते ही संपूर्ण लाक डाउन लागू करने के मोदी सरकार के फैसले की विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी सराहना की।
सरकार के हाथ में जो कुछ था वह उसने किया परंतु फिर ऐसी स्थिति बन गई कि उसे अपनी विवशताओं को स्वीकार करना पड़ा। प्रधानमंत्री का देशवासियों को कोरोना के साथ जीना सीख लेने के परामर्श में यही संदेश छुपा हुआ है कि कोरोना हमारी गति को अवरुद्ध नहीं कर सकता। जाहिर सी बात है कि हम कोरोना से डरकर अपनी सामाजिक आर्थिक गतिविधियों पर विराम नहीं लगा सकते। इसीलिए सारे देश में अब लाकडाउन को जारी रखते हुए क्रमश: रियायतों को बढ़ाया जा रहा है परंतु सोशल डिस्टेंसिंग के इस माहौल में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की पहली वर्षगांठ पर उसकी एक साल की उपलब्धियों की चर्चा तो अवश्य की जा सकती है।
केंद्र में जब मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दूसरे साल की शुरुआत हो रही है तब देश कोरोना संकट की विभीषिका से जूझने के लिए विवश है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने द्वितीय कार्यकाल की प्रथम वर्षगांठ पर देश वासियों के नाम जो पाती लिखी है उसमें उन्होंने इस अवसर पर लोगों के बीच उपस्थित न हो पाने की विवशता के लिए खेद भी व्यक्त किया है।
निसंदेह मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से ही ऐतिहासिक महत्व के जो फैसले किए वह सिलसिला अगर कोरोना संकट के कारण कुछ समय के लिए अवरुद्ध नहीं हुआ होता तो सरकार के खाते में अब तक और भी कई उल्लेखनीय उपलब्धियां जुड़ चुकी होती परंतु अचानक आईं विपदा ने अगर सरकार की प्राथमिकताओ को बदल दिया और बाकी सारे मोर्चों से ध्यान हटाकर सरकार कोरोना संकट से निपटने के लिए एक साहसिक अभियान में जुट गई।
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सरकार ने कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में जो विशिष्ट रणनीति अपनाई उसकी अंतर्राष्ट्रीय जगत में सराहना भी हुई और इसी रणनीति के कारण दुनिया के अनेक संपन्न देशों की तुलना में हम कोरोना के कारण होने वाले नुकसान को सीमित रखने में सफल रहे| मोदी सरकार ने कोरोना संकट की शुरुआत होते ही देश में संपूर्ण लाकडाउन लागू करके जिस तरह उसे चरण बद्ध तरीके से लगभग सवा दो माह तक जारी उसकी का परिणाम है कि कोरोना वायरस को काफी हद तक काबू में रखने में सफल रहे। इस अवधि में संक्रमितों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने में हमारी कामयाबी भी निरंतर बढी है और पी पी ई तथा आवश्यक चिकित्सा उपकरणों के निर्माण में भी हम आत्मनिर्भर बन गए हैं।
आज जब हम मोदी सरकार की पिछले एक साल की उपलब्धियों पर चर्चा कर रहे हैं तो इसे भी सरकार की उपलब्धि के नजरिए से देखना गलत नहीं होगा। सरकार के दूसरे कार्यकाल के प्रथम वर्ष के अंदर में प्रधानमंत्री मोदी ने 20 लाख करोड़ के जिस आर्थिक पैकेज की घोषणा की वह देश की जी डी पी के 10 प्रतिशत के बराबर है।
दूसरे कार्यकाल के एक साल के अंदर की गई प्रधानमंत्री की इस घोषणा का उद्देश्य समाज के विभिन्न वर्गों को तात्कालिक राहत पहुंचाना तो है ही परंतु देश की जीडीपी के दस प्रतिशत के बराबर के इस आर्थिक पैकेज का हमारी अर्थ व्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव सुनिश्चित है।
केंद्र में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की जिस तरह धमाकेदार शुरुआत हुई थी उसे सरकार के आत्मविश्वास का परिचायक मानते हुए यह अनुमान लगाना कठिन नहीं था कि सरकार आगे आने वाले समय में राष्ट्र के व्यापक हित में साहसिक कदम उठाने के लिए कमर कस कर तैयार हो चुकी है, ये अनुमान मोदी 2.0 के प्रथम वर्षार्द्ध में ही सच साबित हुए। सरकार ने इस छोटी सी अवधि में एक के बाद एक कई साहसिक कदम उठा कर नया इतिहास रच दिया।
ये सारे कदम केवल वही सरकार उठा सकती थी जो प्रबल इच्छा शक्ति की धनी हो और मोदी सरकार ने दूसरे कार्यकाल के पहले साल की शुरुआत से ही यह संकेत देने शुरू कर दिए थे कि साहसिक फैसलों के लिए आवश्यक इच्छा शक्ति की उसके पास कोई कमी नहीं है। भारतीय जनता पार्टी की गत लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि उनकी सरकार सबको साथ ले कर सबके विकास के मार्ग पर चलते हुए सबके विश्वास की कसौटी पर खरी उतरने के लिए कृत संकल्प है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की, धमाकेदार शुरुआत से यह संकेत मिलने लगे थे कि सरकार का दूसरा कार्य काल उसके पहले कार्य काल से अधिक चमकदार साबित होगा।
सरकार ने गत एक वर्ष के काम से ही यह साबित कर दिया कि वह अपने दूसरे कार्यकाल में किसी भी मोर्चे पर साहसिक फैसले लेने से कोई परहेज नहीं करेगी। सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की सदियों पुरानी कुप्रथा से मुक्ति दिलाने वाला कानून बनाकर उनके लिए समाज में सम्मान और बराबरी का दर्जा सुनिश्चित किया। जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने वाला कानून बनाकर उस राज्य को राष्ट्र को मुख्य धारा से जोड़ने का मार्ग प्रशस्त किया।
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सरकार का एक और ऐतिहासिक कदम इस एक साल में बेहद चर्चित रहा और उसने कई विवादों को भी जन्म दिया। सरकार ने कुछ पडोसी देशों से आकर भारत में शरण लेने वाले गैर मुस्लिम नागरिकों को भारत की नागरिकता प्रदान करने की मंशा से नागरिकता संशोधन कानून बनाकर अपना करुणा भाव भी प्रदर्शित किया। इस कानून को लेकर विपक्ष ने अल्पसंख्यकों के बीच गलतफहमी फैलाने का प्रयास तो खूब किया परंतु उसे सफलता नहीं मिली। मोदी सरकार ने पिछले एक साल में आतंकवाद के विरुद्ध अपनी लड़ाई को और तेज किया और मसूर अजगर जैसे कुख्यात आंका सरगना को सुरक्षा परिषद में वैश्विक आतंकवादी घोषित करवाने में सफलता प्राप्त की।
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के प्रथम वर्ष में ही सदियों पुराने अयोध्या विवाद को सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह सुलझा दिया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सभी संबंधित पक्षों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। यह मोदी सरकार की ऐतिहासिक सफलता थी जिसने अयोध्या में भव्य राममंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। अगर कोरोना संकट से देश को नहीं जूझना पडता तो अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण भी शुरू हो गया होता। यही नहीं, कोरोना संकट के कारण मोदी सरकार को अपना सारा ध्यान इस संकट के विरुद्ध प्रभावी लडाई की तैयारी पर केन्द्रित करना पड़ा।
इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर कोरोना संकट के विरुद्धअपनी लड़ाई में हमें शुरु में ही सफलता मिल गई होती तो मोदी सरकार की एक वर्ष की उल्लेखनीय उपलब्धियों की फेहरिस्त में अब तक कुछ और ऐतिहासिक उपलब्धियां जुड़ गई होतीं हालांकि कोरोना संकट से निपटने के लिए मोदी सरकार द्वारा तत्परता पूर्वक उठाए गए कदमों की जिस तरह अंतर्राष्ट्रीय जगत में सराहना हुई उसका भी सरकार की एक उल्लेखनीय उपलब्धि के रूप में ही आकलन किया जाना चाहिए।
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