प्रो. अशोक कुमार
चिकित्सा शिक्षा न केवल व्यक्तियों के जीवन, बल्कि पूरे समाज के लिए महत्वपूर्ण है। यह रोगों को रोकने और उनका इलाज करने, स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों को मजबूत बनाने, सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, अनुसंधान और नवप्रवर्तन को प्रोत्साहित करने और वैश्विक स्वास्थ्य में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चिकित्सा शिक्षा जीवन के हर पहलू को छूती है। यह व्यक्तिगत स्वास्थ्य से लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य, सामाजिक विकास और वैश्विक स्वास्थ्य तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
यह एक ऐसा क्षेत्र है जो निरंतर विकसित हो रहा है और मानवता के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। शिक्षा केवल डॉक्टरों को बनाने तक सीमित नहीं है। यह व्यक्तियों, समुदायों और पूरे समाज के स्वास्थ्य और कल्याण को बेहतर बनाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत मे चिकित्सा शिक्षा के लिए सार्वजनिक और निजी दो प्रकार के मेडिकल कॉलेज हैं ! भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक और निजी मेडिकल कॉलेजों के बीच भेदभाव और निजी मेडिकल कॉलेजों को परेशान करने के आरोप जटिल मुद्दे हैं।
इन आरोपों के दो पहलू हैं:
1. शिक्षा शुल्क:
• सरकारी मेडिकल कॉलेज: सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की फीस काफी कम होती है, 1 लाख से 5 लाख तक , क्योंकि इन कॉलेज को सरकारी अनुदान मिलता है। इस कारण मेडिकल प्रवेश परीक्षा मे सबसे ज्यादा मेघावी छात्र सरकारी मेडिकल कॉलेज मे प्रवेश लेते हैं !
• निजी मेडिकल कॉलेज: निजी मेडिकल कॉलेजों में फीस बहुत अधिक होती है, 50 लाख से 3 करोड़ , क्योंकि उन्हें सरकारी अनुदान नहीं मिलता है। इस कारण मेडिकल प्रवेश परीक्षा मे वरीयता मे जो छात्र नीचे होते हैं वह निजी मेडिकल कॉलेज मे प्रवेश लेते हैं !
यह शुल्क अंतर छात्रों के लिए एक बड़ी बाधा हो सकता है, खासकर गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों से। इसलिए यह आवश्यक है की निजी मेडिकल कॉलेज को भी आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए !
2. संकाय और सुविधाएं:
• सरकारी मेडिकल कॉलेज: कुछ सरकारी मेडिकल कॉलेजों में अनुभवी संकाय सदस्य और बेहतरीन सुविधाएं होती हैं।
• निजी मेडिकल कॉलेज: कुछ निजी मेडिकल कॉलेजों में भी अच्छे संकाय सदस्य और आधुनिक सुविधाएं होती हैं।
आज देश में विभिन्न मेडिकल कॉलेज में विशेषज्ञ शिक्षकों की बहुत कमी है लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि जब कभी सरकारी मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण होता है उस समय सरकार एक मेडिकल कॉलेज से दूसरे मेडिकल कॉलेज में शिक्षकों का स्थानांतरण कर देती है और फिर भी यदि शिक्षकों की कमी होती है तो राज्य
सरकार एक शपथ पात्र दे देती है : हम शिक्षकों की कमी को पूरा कर देंगे और इस पत्र के आधार पर राजकीय मेडिकल कॉलेज को एक चेतावनी के साथ छूट दे दी जाती है ! लेकिन यदि परीक्षण निजी मेडिकल कॉलेज का हो और वहां पर शिक्षकों की कमी पाई जाए तो ऐसी संभावना है कि जिस विषय में शिक्षकों की कमी हो उस विषय को निजी मेडिकल कॉलेज मे समाप्त कर दिया जाए !
शिक्षकों की कमी एक उदाहरण है : सरकारी मेडिकल कॉलेज मे कोई अन्य कमी पाई जाती है तब भी प्रशासन द्वारा जारी एक शपथ पात्र के आधार पर उनको छूट दे दी जाती लेकिन निजी मेडिकल कॉलेज में तुरंत कार्रवाई होती है और मेडिकल कॉलेज बंद करने के लिए चेतावनी दी जाती है ! ऐसा भेदभाव क्यों ??
सरकारी दृष्टिकोण:
• सरकार का कहना है कि वे सभी मेडिकल कॉलेजों, चाहे वे सरकारी हों या निजी, के लिए समान मानकों और नियामक ढांचे को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
• वे यह भी तर्क देते हैं कि निजी मेडिकल कॉलेजों को भी राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ( एनएमसी ) द्वारा निर्धारित मानकों का पालन करना होता है।
• सरकार का यह भी कहना है कि वे मेडिकल शिक्षा में निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करते हैं ( लेकिन आर्थिक सहायता नहीं देते ), क्योंकि यह मेडिकल कॉलेजों की संख्या में वृद्धि करता है और छात्रों के लिए अधिक अवसर पैदा करता है।
निजी मेडिकल कॉलेजों का दृष्टिकोण:
• कई निजी मेडिकल कॉलेजों का आरोप है कि उन्हें सरकार द्वारा भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
• उनका कहना है कि उन्हें सरकारी मेडिकल कॉलेजों की तुलना में कठोर नियमों और विनियमों का पालन करना पड़ता है।
• निजी मेडिकल कॉलेज यह भी तर्क देते हैं कि उन्हें पर्याप्त सरकारी अनुदान और सहायता नहीं मिलती है, जिससे उनके लिए उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करना मुश्किल हो जाता है।
विशेषज्ञों का दृष्टिकोण:
• शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सार्वजनिक और निजी दोनों प्रकार के मेडिकल कॉलेजों की अपनी-अपनी भूमिका होती है।
• उनका कहना है कि दोनों प्रकार के कॉलेजों से स्नातक डॉक्टर देश की स्वास्थ्य सेवा आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं।
• विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि सरकार को सभी मेडिकल कॉलेजों के लिए एक समान और न्याय संगत नीति ढांचा बनाने का प्रयास करना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण मेडिकल शिक्षा तक पहुंच प्राप्त हो।
निष्कर्ष:
भारत में सार्वजनिक और निजी मेडिकल कॉलेजों के बीच भेदभाव का मुद्दा जटिल और बहुआयामी है। सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य पर अधिक से अधिक आर्थिक अनुदान करना चाहिए ! इस मुद्दे पर कोई आसान जवाब नहीं है, और सभी हितधारकों के दृष्टिकोणों पर विचार करना महत्वपूर्ण है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह मुद्दा अभी भी बहस के अधीन है, और विभिन्न स्रोतों से अलग-अलग जानकारी उपलब्ध है।
(लेखक पूर्व कुलपति कानपुर, गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय हैं)