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आपदा व युद्ध : अपने ही देश में शरणार्थी बनते लोग

न्यूज डेस्क

दुनिया में विस्थापन की समस्या के पीछे सबसे बड़ी वजह आपदा और युद्ध रहा है। इसके चलते हर साल लाखों लोग अपने ही देश में शरणार्थी बनने को मजबूर होते हैं।

पिछले साल 2019 में आपदा और युद्ध के कारण 3.34 करोड़ लोग अपने ही देश के भीतर शरणार्थी बन गए। यह आंकड़ा 2012 के बाद सबसे अधिक है। ऐसा पहली इतनी बड़ी संख्या में लोगों में अपने देश के भीतर ही घर छोड़कर रिफ्यूजी की तरह रहना पड़ रहा है।

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जेनेवा स्थित इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (आईडीएमसी) के अनुसार वर्ष 2019 में संघर्ष की जगह प्राकृतिक आपदाओं की वजह से बहुत से लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हए। जो लोग पिछले साल बेघर हो गए उनमें ऐसे लोग भी शामिल हैं जो आपदा से बचने के लिए घर छोड़ कर चले गए। ऐसे लोगों की संख्या 2.49 करोड़ है।

आईडीएमसी की रिपोर्ट में भारत, बांग्लादेश और मोजांबिक जैसे देशों में पिछले साल आए चक्रवाती तूफान का जिक्र किया गया है।
वहीं अफ्रीका में आई बाढ़ के कारण भी भारी संख्या में लोग रिफ्यूजी बनने को मजबूर हुए।

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संघर्ष के कारण भी लाखों लोग शरणार्थी बनने को मजबूर हुए। पिछले साल 85 लाख लोग संघर्ष के कारण विस्थापित हुए। बुर्किना फासो, कांगो, इथियोपिया,दक्षिण सूडान और सीरिया जैसे देशों में संघर्ष जारी है। साल की समाप्ति पर वैश्विक रूप से विस्थापित हुई आबादी की संख्या 5.8 करोड़ हो चुकी थी। कुल संख्या में इससे पिछले साल विस्थापित हुए लोग भी शामिल हैं।

इस मामले में नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल (एनआरसी) के प्रमुख यान इगेलैंड कहते हैं, “सामूहिक रूप से हम दुनिया के सबसे कमजोर वर्ग को सुरक्षित करने में असफल हो रहे हैं।”

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वहीं कोरोना महामारी की वजह से ऐसे लोगों की समस्याएं बढ़ रही है। इन शरणार्थियों को लेकर लोग चिंतित हैं। एक बयान मेंयान इगेलैंड ने कहा, “कोरोना वायरस के इस दौर में जारी राजनीतिक हिंसा पूरी तरह से संवेदनहीन है। ” उन्होंने सरकारों से संघर्ष विराम और शांति वार्ता की अपील की है।

वहीं इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर की निदेशक एलेक्जेंड्रा बिलाक कहती हैं कि कोरोना वायरस महामारी के कारण आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के लिए और अधिक खतरा पैदा हो रहा है। बिलाक के मुताबिक, “इस कारण उनके पहले से ही रहने वाले हालात से समझौता होगा। उन तक पहुंचाई जानी वाली मदद और मानवीय सहायता भी सीमित हो जाएगी।”

आईडीएमसी का कहना है कि कोरोना वायरस महामारी के चलते विस्थापित लोगों को मौसम की मार पडऩे से पहले उनके घरों तक पहुंचाना सरकारों के लिए कठिन काम होगा, क्योंकि हजारों लोगों को एक साथ आश्रयों में नहीं रखा जा सकता है। विस्थापित हुए

लोग भी रिलीफ कैंपों में रहते हैं और ऐसे में वहां भी संक्रमण का खतरा अधिक रहता है।

बिलाक कहती हैं, “आप कोविड-19 के प्रसार से लडऩे के लिए अपनी राष्ट्रीय कोशिशों के साथ उन संवेदनशील मानवीय राहत प्रयासों को कैसे संतुलित करते हैं यह एक मुश्किल भरा काम होने वाला है।”

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