बॉलीवुड शोमैन राजकपूर ने मधुबाला के बारे में एक बार कहा था कि लगता है कि ईश्वर ने खुद उन्हें अपने हाथों संगमरमर से तराशा है। भारतीय सिनेमा में सबसे खूबसूरत चेहरों की जब भी बात होती है तो अमूमन लोग मधुबाला का नाम लेते हैं। उनकी शोख-चंचल अदाएं जेहन में उभर आती है। मुगले आजम की कनीज अनारकली हो गया फिर हाबड़ा ब्रिज की मादक डांसर। लोग उनके अभिनय से ज्यादा उनकी खूबसूरती की चर्चा करते हैं। इसके अलावा सबसे ज्यादा चर्चा उनकी अधूरी प्रेम कहानी की होती है।
मधुबाला को इस दुनिया से अलविदा हुए पांच दशक से ज्यादा हो गए है लेकिन आज भी वह प्रासंगिक है। उनकी खूबसूरती, प्रेम कहानी, और अभिनय की चर्चा होती रहती है। यह तय है कि जहां प्रेम की बात होगी वहां मधुबाला और दिलीप कुमार की बात होनी निश्चित है। ये एक दूसरे के प्रयाय बन चुके हैं। महज छह साल की उम्र में मधुबाला ने मायानगरी में अपने कदम रख दिए थे। काम के प्रति उनका पैशन ही था कि सिर्फ 36 साल की उम्र और उसमें भी जीवन के आखिरी नौ साल अपने घर में कैद होकर रहने की मजबूरी के बावजूद उन्होंने 66 फिल्में की। उन्होंने इतनी कम उम्र में जो मुकाम हासिल किया वो शायद ही किसी ने किया हो।
दरअसल जन्म से ही मधुबाला के दिल में छेद था और डॉक्टरों के मुताबिक उस बीमारी में उन्हें बहुत ज्यादा आराम की जरूरत थी लेकिन मधुबाला के पिता ने उन्हें ऐसी दुनिया में धकेला हुआ था जहां उन्हें लगातार काम करना पड़ा था। मधुबाला अपने माता-पिता ही नहीं बल्कि 11 भाई बहन वाले परिवार में इकलौती आजीविका कमाने वाली थीं। उनके पिता लाहौर में इंपीरियरल टोबैको कंपनी में काम किया करते थे। उनकी नौकरी छूटी तो दिल्ली आए और फिर दिल्ली से बंबई पहुंचे। बंबई वह इसीलिए गए थे कि उनकी खूबसूरत बेटी को फिल्मों में काम मिल जायेगा। मधुबाला को खूब काम मिला और ज्यादा काम करने की वजह से ही उनकी सेहत बिगड़ती चली गई। उन्होंने अपने आप को काम में खपा दिया।
खतीजा अकबर ने मधुबाला के फिल्मी जीवन पर ‘आई वांट टू लिव- द स्टोरी ऑफ मधुबाला लिखी है। इस पुस्तक से उन्होंने लिखा है कि मधुबाला की ख़ूबसूरती ने उनके अभिनय के प्रति अनुशासन और सीखने की लगन को कभी कम नहीं होने दिया। मधुबाला उस दौर में फिल्मी दुनिया की इकलौती कलाकार थीं जो समय से पहले सेट पर मौजूद होती थीं। हालांकि स्वास्थ्य कारणों से वो रात में शूटिंग नहीं किया करती थीं और अपने पूरे करियर में उन्होंने कभी आउटडोर शूटिंग में हिस्सा नहीं लिया। बावजूद इसके मधुबाला अपने समय की शीर्ष अभिनेत्रियों में शुमार होती रहीं। काम के प्रति मधुबाला का परफैक्शन देखना हो तो मुगले आजम फिल्म के प्रेम दृश्य देखिए। सिने संसार की सबसे रोमांटिक दृश्यों में मुगले आजम फिल्म के वो प्रेम दृश्य, जिसमें शहजादा सलीम, अनारकली को मोर के पंखों से छेड़ता है, शुमार है। ये जानना दिलचस्प है कि इन दृश्यों के अलावा भी मुगले आजम के तमाम प्रेम दृश्यों के वक्त दिलीप कुमार और मधुबाला की आपसी बातचीत बंद थी।
दिलीप कुमार-मधुबाला की प्रेम कहानी
दोनों को एक समय में भारतीय फिल्म इतिहास की सबसे रोमांटिक जोड़ी माना जाता था। दोनों एक दूसरे से प्यार भी करते थे। 1955 में पहली बार फिल्म इंसानियत के प्रीमियर के दौरान मधुबाला दिलीप कुमार के साथ सार्वजनिक तौर पर नजर आईं थीं। ये पहला और इकलौता मौका था जब दिलीप कुमार और मधुबाला एक साथ सार्वजनिक तौर पर साथ नजर आए थे। शम्मी कपूर ने भी अपनी किताब में जिक्र किया है कि किस तरह से दिलीप कुमार केवल मधुबाला को देखने के लिए मुंबई से पूना तक कार चला कर आया करते थे और दूर खड़े होकर मधुबाला को देखा करते थे।
मधुबाला-दिलीप क्यों हुए अलग?
फिल्मी पत्र-पत्रिकाओं में अक्सर छपता रहा है कि मुधबाला के पिता नहीं चाहते थे कि मधुबाला और दिलीप कुमार की शादी हो, लेकिन दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा दिलीप कुमार- द सब्सटेंस एंड द शैडो में इससे उलट बात कही है। उन्होंने लिखा है, ‘जैसा कि कहा जाता है, उसके उलट मधु और मेरी शादी के खिलाफ उनके पिता नहीं थे। उनके अपनी प्रॉडक्शन कंपनी थी और वे इस बात से बेहद ख़ुश थे कि एक ही घर में दो बड़े स्टार मौजूद होंगे। वे तो चाहते थे कि दिलीप कुमार और मधुबाला एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले अपने करियर के अंत तक उनकी फिल्मों में डूएट गाते नजर आएं। फिर ऐसी क्या बात हुई, जिसके चलते बॉलीवुड की सबसे मशहूर प्रेम कहानी शादी तक नहीं पहुंच पाई।
उनकी किताब में इसका भी जिक्र है, ‘जब मुझे मधु से उनके पिता की योजनाओं के बारे में पता चला तो मेरी उनसे कई बार बातचीत हुई जिसमें मैंने उन दोनों से कहा कि मेरे काम करने का अपना तरीका है, मैं अपने हिसाब से प्रोजेक्ट चुनता हूं और उसमें मेरा अपना भी प्रॉडक्शन हाउस हो तो भी ढिलाई नहीं कर सकता।
दिलीप कुमार के मुताबिक उनकी यही बात मधुबाला के पिता अयातुल्ला खान को पसंद नहीं आई और उन्होंने दिलीप कुमार को जिद्दी और अडियल मानना शुरू कर दिया। दिलीप के मुताबिक मधुबाला का रुझान हमेशा अपने पिता की तरफ रहा और वो कहती रहीं कि शादी होने के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा। ऐसा भी नहीं था कि दिलीप शादी के लिए तैयार नहीं थे, 1956 में ढाके की मलमल फिल्म की शूटिंग के दौरान एक दिन उन्होंने मधुबाला से कहा भी काजी इंतजार कर रहे हैं चलो मेरे घर आज शादी कर लेते हैं, लेकिन उनकी बातों पर मुधबाला रोने लगीं। दिलीप कुमार कहते रहे कि अगर आज तुम नहीं चली तो मैं तुम्हारे पास लौटकर नहीं आऊंगा, कभी नहीं आऊंगा।
एक विवाद से असमय खत्म हुई मोहब्बत
मधुबाला के शादी के इंकार के बाद दिलीप कुमार उनके पास नहीं लौटे, लेकिन 1957 में एक विवाद की वजह से हमेशा के लिए उन दोनों की राहें जुदा हो गईं। दरअसल 1957 में प्रदर्शित नया दौर फिल्म के लिए दिलीप कुमार और मुधबाला को निर्देशक बीआर चोपड़ा ने साइन किया। इस फिल्म की आउटडोर शूटिंग पूना और भोपाल में होनी थी, लेकिन मधुबाला के पिता ने मधुबाला को भोपाल भेजने से इनकार कर दिया। तब तक बीआर चोपड़ा अपनी फिल्म की काफी शूटिंग कर चुके थे। पेशे से वकील रह चुके बीआर चोपड़ा मामले को कोर्ट में ले गए और इस बीच उन्होंने मधुबाला की जगह वैजयंती माला को साइन कर लिया।
इसी मामले की सुनवाई के दौरान दिलीप कुमार ने कोर्ट में कहा था कि वे मधुबाला से मोहब्बत करते हैं और उनके मरने तक मोहब्बत करते रहेंगे। लेकिन उन्होंने अपना बयान बीआर चोपड़ा के पक्ष में दिया था। दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में इसके बारे में लिखा है कि उन्होंने अपनी ओर से सुलह की बहुत कोशिश की थी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ था और पूरे मामले में बीआर चोपड़ा का पक्ष सही था। इसके बाद मधुबाला को यकीन हो गया कि दिलीप कुमार उनके पास कभी नहीं लौटेंगे।https://www.jubileepost.in