कृष्णमोहन झा
पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह पर यह आरोप हमेशा लगाया जाता है कि वे शिगूफेबाजी करके चर्चा में बने रहना चाहते हैं। इन आरोपों को नकारते हुए दिग्विजय सिंह ने हमेशा दावा किया है कि वह जो कुछ भी कहते हैं, उसके पुख्ता प्रमाण उनके पास होते हैं। अभी दो दिन पूर्व ही उन्होंने आरोप लगाया था कि राज्य की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के द्वारा राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के कुछ विधायकों को 25 से 30 करोड़ का प्रलोभन और मुख्यमंत्री तथा उप मुख्यमंत्री पद का लालच देकर भाजपा में शामिल होने को कहा जा रहा है, जिससे प्रदेश में कमलनाथ सरकार का पतन हो जाए।
दिग्विजय सिंह के उक्त बयान को भाजपा नेताओं ने उनकी स्वाभाविक शिगूफेबाजी का हिस्सा बताते हुए इस आरोप को पूरी तरह मनगढ़ंत तक करार दे दिया था, परंतु भाजपा दिग्विजय सिंह के आरोपों को पूरी तरह मनगढ़त और निराधार सिद्ध कर पाती, उसके पूर्व दिल्ली से जो खबर आ गई, उसने सिंह के दावे को एक सच साबित कर दिया। अब दिग्विजय सिंह के आरोपों में कोई गहरा सच छिपे होने का आभास होने लगा है। इससे राजनीतिक पंडित भी यह अनुमान लगाने पर विवश हो गए हैं कि कहीं न कहीं दाल में कुछ काला अवश्य है।
दरअसल जब दिल्ली से यह खबर आई कि कांग्रेस बसपा का एक-एक तथा चार निर्दलीय सहित 10 से अधिक विधायक मानेसर के एक होटल में ठहरे हुए हैं और उनके साथ राज्य की पूर्ववर्ती सरकार के पूर्व मंत्री भी होटल में ठहरे हुए हैं तो यह खबर बिजली की गति से प्रदेश की राजधानी तक आ पहुंची। इसके बाद कमलनाथ सरकार के दो मंत्री तथा दिग्विजय सिंह स्वयं भी वहां पहुंचे। बताया जाता है कि इन तीनों को हरियाणा की खट्टर सरकार की पुलिस ने अंदर जाने से रोक दिया। उसके बाद दिग्विजय सिंह ने मीडिया से चर्चा में कहा कि अंदर भाजपा के लोग मारपीट कर रहे हैं और हम मुश्किल से विधायक रामबाई और उनके परिजनों को बाहर ला पाए हैं। दिग्विजय सिंह ने यह भी आरोप लगाया कि अंदर भाजपा नेता करोड़ों की रकम लिए बैठे हैं ओर कोई उन पर छापा मारने की हिम्मत नही दिखा पा रहा है।
इसमें सबसे दिलचस्प बात यह रही कि जब पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इस मामले की भनक लगी तो वे भी रातों-रात दिल्ली पहुंच गए और उन्होंने सारे मामले को मनगढ़त करार दे दिया। बताया जाता है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने ही उन्हें तत्काल दिल्ली पहुंचने का निर्देश दिया था।
दरअसल उक्त कथित घटनाक्रम को राज्य में इसी माह होने वाली राज्यसभा की तीन सीटों के चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी चाहती है कि उक्त तीन सीटों में से दो पर अपने उम्मीदवार जिता ले जाए, जबकि संख्या बल के हिसाब से दो सीटें कांग्रेस के पास जाना तय माना जा रहा है। विधायकों की इस कथित खरीद-फरोख्त की खबरों को भी राज्यसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। इधर भाजपा विधायक दल की बैठक में नारायण त्रिपाठी और शरद कोल की अनुपस्थिति ने भाजपा खेमे की बेचैनी को भी बढ़ा दिया है।
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गौरतलब है कि 2019 में विधानसभा में एक विधेयक पर हुए मतदान में उक्त दोनों विधायकों ने कमलनाथ सरकार का समर्थन किया था। भाजपा में तभी से दोनो विधायकों पर निगाह रखी जा रही है। इधर भोपाल में मुख्यमंत्री कमलनाथ की अध्यक्षता में संपन्न कैबिनेट मीटिंग में हॉर्स ट्रेडिंग के मुद्दे पर चर्चा हुई और तब ही मुख्यमंत्री ने पूरी पार्टी को एकजुट रहने के लिए कहा था। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा भाजपा पर लगाए गए हॉर्स ट्रेडिंग के आरोपों से भी सहमति जताई।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि दिग्विजय सिंह के आरोपों को भाजपा ने भले ही शिगूफेबाजी बताकर खारिज कर दिया है, परंतु राज्यसभा की दो सीटें जीतने के लिए उसे जोड़-तोड़ करने के लिए मजबूर होना ही पड़ेगा, परंतु जोड़-तोड़ का स्वरूप ऐसा नहीं होना चाहिए, जो उसकी छवि को ही धूमिल कर दें।
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने जो आरोप लगाए हैं वह सनसनीखेज तो है ही, लेकिन उनकी गंभीरता को झुठलाया नहीं जा सकता है। कुल मिलाकर यह आरोप केवल राजनीतिक बयानबाजी का हिस्सा नहीं है। भाजपा हमेशा यह दावा करती रही है कि उसका चाल, चरित्र और चेहरा अन्य राजनीतिक दलों से अलग है, लेकिन पिछले साल कर्नाटक में जो नाटक हुआ, उसने भाजपा के दावे पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
सवाल यह उठता है कि मध्यप्रदेश में जोड़-तोड़ का यह खेल केवल राज्यसभा चुनाव के लिए ही है, अथवा इसका अंतिम लक्ष्य कमलनाथ सरकार को गिराकर पुनः सत्ता में आना है। बेहतर तो यही होगा कि लगातार 15 वर्षों तक सत्ता में रहने वाली भाजपा सत्ता में लौटने के लिए जोड़तोड़ न करते हुए आगामी चुनाव तक प्रतीक्षा करें।
प्रदेश में जोड़ तोड़ के इस खेल पर निकट भविष्य में विराम लगने की कोई संभावना नहीं है। कमलनाथ सरकार के कई मंत्री कह चुके हैं कि अनेक भाजपा विधायक उनके संपर्क में है। ऐसा ही दावा भाजपा भी करती रही है और इस तरह की खबरें सुर्खियों का विषय बनती है तो उसे मनगढ़त कहानी बताकर नकार दिया जाता है। अतःअब समय आ गया है कि इन खबरों की सच्चाई की गहराई से छानबीन होना चाहिए।
अगर कोई विधायक पांच साल के अंदर किसी लोक लुभावन के कारण अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल होता है तो इसे निसंदेह उसके अपने क्षेत्र के मतदाताओं से विश्वासघात माना जाना चाहिए। हॉर्स ट्रेडिंग के यह आरोप निसंदेह हमारे उस प्रजातंत्र की प्रतिष्ठा पर आंच पहुंचाते हैं, जिस पर हमने हमेशा गर्व किया है। दुख की बात यह है कि जोड़ तोड़ के इस खेल में आज किसी राजनीतिक दल को परहेज नहीं है।
(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)
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