जुबिली न्यूज डेस्क
बात बिहार की राजनीति की हो और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव का जिक्र न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। लालू विरोध कर सत्ता में आने वालों को सत्ता में बने रहने के लिए भी लालू का नाम जरूरी लगता है। वैसे तो पिछले ढ़ाई साल से लालू यादव जेल में हैं, पर बिहार की राजनीति के केंद्र में इस बार भी अभी तक वही दिख रहे हैं।
वैसे देखा जाए तो ढाई साल से जेल में बंद होने के कारण लालू यादव राजनीति के हाशिये पर हैं, फिर भी बिहार की राजनीति में उनके विरोधियों को उनका नाम लेना जरूरी लगता है। बिहारी में चुनावी माहौल हैं इसलिए लालू यादव अब राजनीति के केंद्र में आ गए हैं।
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11 जून को लालू यादव ने अपना तिहत्तरवां जन्मदिन मनाया। इस मौके पर भी वह विरोधियों के निशाने पर रहे। उनके विरोधियों ने उनका तीसरा बेटा तरुण के होने का खुलासा करके एकबार फिर राजनीति गरमा दी है।
बिहार की सियासी रणभूमि में लालू को नजरअंदाज करना मुश्किल लगता है। यही कारण है कि कोरोना महामारी के बीच धीरे-धीरे विधानसभा चुनाव की तरफ बढ़ रहे बिहार में एक बार फिर लालू प्रसाद यादव की गूंज तेज हो गई है। इसको ऐसे समझ सकते हैं।
11 जून को लालू यादव का जन्मदिन था और इस दिन का इस्तेमाल उनकी अपनी पार्टी से ज्यादा उनके विरोधियों ने किया। इस मौके पर जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) की तरफ से पोस्टर के जरिए उन पर हमला किया गया। पटना में लगे इस पोस्टर में लालू के 73वें जन्मदिन के मौके पर दिखाया गया कि किस तरीके से उन्होंने 73 साल में 73 अकूत संपत्ति की संख्या तैयार की । इस पोस्टर का टैगलाइन था, ‘लालू परिवार का संपत्ति नामा, 73वें जन्मदिवस पर 73 संपत्ति श्रृंखला।’
बिहार में चुनावी हलचल बढ़ गई है। अभी जो स्थिति है उसमें सत्तारूढ़ दल के निशाने पर लालू यादव हैं। लालू के पंद्रह साल बनाम नीतीश के पंद्रह साल पर चुनाव मोडऩे पर सत्तापक्ष जुट गया है। चाहे वर्चुअल हो या समक्ष, जनता को बताया जा रहा है कि विकास नीतीश के 15 साल में हुआ और लालू के 15 साल में भ्रष्टाचार।
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अमित शाह के भी निशाने पर रहे लालू
राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव बीते ढ़ाई साल से जेल में हैं। ट्विटर पर ही उनकी थोड़ी-बहुत सक्रियता दिखती है। हाशिए पर रहने के बावजूद वे विरोधियों के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं इसका अंदाजा ऐसे लगा सकते हैं। 7 जून का बिहार विधान सभा चुनाव के शंखनाद के मौके पर देश की पहली वर्चुअल रैली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उन पर और उनके परिवार पर निशाना साधने से परहेज नहीं किया।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो चुनावी चर्चा में अपने कार्यकर्ताओं से बकायदा कहा कि लोगों के बीच जाए और उनको बताए कि उनकी सरकार बिहार को लालटेन युग से निकाल कर एलईडी युग में लाई है। लोगों को बताइये कि 15 साल पहले बिहार कहां था।
नीतीश कुमार का मानना है कि लोगों के जेहन में उस गुजरे जमाने की याद ताजा रखना जरूरी है। यह राजनीतिक रूप से उन्हें फायदा पहुंचायेगा।
इसके अलावा उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी समेत अन्य भाजपा नेता मौके-बेमौके लालू-राबड़ी राज के कुशासन व उनके परिवार के लोगों के भ्रष्टाचार के कारनामे तथा अपने सुशासन की याद ताजा कराने से नहीं चूकते। मानो सत्ता की कुंजी और लालू विरोध का चोली-दामन का साथ हो।
बहरहाल तरीके कुछ भी हों, सत्ता और विपक्ष दोनों ही अपने-अपने तरीके से एक-दूसरे को घेरने में जुटे हैं। इस बार भी लड़ाई आमने-सामने की ही है और सत्तारूढ़ दल के निशाने पर हैं लालू यादव।