- स्टडी के मुताबिक हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन दवाई के इस्तेमाल से ज्यादा मौंते
- आइसीएमआर ने हाईड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल का दायरा बढ़ाया
न्यूज डेस्क
जिस हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन दवा के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत को दवा न देने के हालात में देख लेने की धमकी दी थी, वह दवा कोरोना के इलाज में खतरनाक साबित हो रही है। साइंस जर्नल ‘लैंसेट’ ने अपनी स्टडी में पाया है कि कोरोना वायरस से संक्रमितों के इलाज में जहां हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन दवाई दी जा रही है, वहां मौत का खतरा ज्यादा है।
एक ओर हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन के इस्तेमाल से ज्यादा मौंतों का दावा हो रहा है तो दूसरी ओर भारतीय आयुर्विज्ञान शोध परिषद (आइसीएमआर) ने भारत में इस दवा के इस्तेमाल का दायरा बढ़ा दिया है।
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पिछले महीने 6 अप्रैल को जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन दवा को लेकर पत्रकारों से बातचीत की थी तभी से यह दवा चर्चा में है। अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाकर आनन-फानन में यह दवा मंगा तो लिया लेकिन वहां कोविड 19 के संक्रमण के इलाज में कारगर साबित नहीं हुआ।
कई रिपोर्ट में ये दावा किया गया कि हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन इलाज में कारगर नहीं है। इस सबके बावजूद इसी हफ्ते राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा था कि कोविड 19 बीमारी से बचने के लिए मलेरिया की दवाई हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन ले रहे हैं, जबकि स्वास्थ्य अधिकारियों ने चेताया था कि इससे हृदय रोग की समस्या बढ़ सकती है।
राष्ट्रपति ट्रंप मेडिकल स्टडी की उपेक्षा करते हुए इस दवाई के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करते रहे हैं।
अब साइंस जर्नल ‘लैंसेट’ ने अपनी स्टडी में पाया है कि मलेरिया की इस दवाई से कोरोना संक्रमितों को कोई फायदा नहीं हो रहा है। भारत में यह दवाई बड़े पैमाने पर बनती है। भारत में भी इसका इस्तेमाल हो रहा है। और तो और भारतीय आयुर्विज्ञान शोध परिषद (आइसीएमआर) ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) के उपयोग पर संशोधित परामर्श दिया है।
आइसीएमआर ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के दायरे को बढ़ाते हुए गैर-कोविड-19 अस्पतालों में काम करने वाले स्पर्शोन्मुख स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के अलावा अन्य कई क्षेत्रों के कर्मियों को भी लेने की सलाह दी है।
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दरअसल भारत सरकार ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को एक निवारक दवा के रूप में उपयोग करने की सिफारिश की है। सरकार द्वारा संशोधित एडवाइजरी में कहा गया है कि गैर-कोविड-19 अस्पतालों में काम करने वाले एसिम्प्टमेटिक हेल्थकेयर, कंटेनमेंट जोन में निगरानी क्षेत्र में तैनात फ्रंटलाइन वर्कर्स और कोरोना वायरस संक्रमण से जुड़ी गतिविधियों में शामिल पुलिस और अर्धसैनिक बलों को हाईड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा ले सकते हैं।
यह एडवाइजरी स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय की अध्यक्षता में संयुक्त निगरानी समूह और एम्स, आइसीएमआर, नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल, नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी, डब्ल्यूएचओ के प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के अस्पतालों से जुड़े विशेषज्ञों की कोरोना प्रभावित और गैर-कोरोना प्रभावित इलाकों में काम करने वाले सभी स्वास्थ्यकर्मियों को इस दवा का उपयोग करने को लेकर समीक्षा बैठक में सिफारिश के बाद जारी की गई।
भारत सरकार ने मार्च में इस दवाई के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था, पर अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप के दबाव में भारत ने यह प्रतिबंध आंशिक रूप से हटा दिया।
मलेरिया की दवा है हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन
वैसे तो भारत में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन का इस्तेमाल मलेरिया, आर्थेराइटिस(गठिया) और ल्यूपस नाम की बीमारी के उपचार में किया जाता है, लेकिन अब इस दवा का इस्तेमाल कोरोना संक्रमित मरीजों को ठीक करने के लिए भी किया जा रहा है। जबकि कोरोना संक्रमितों को लेकर कोई क्लिनिकल ट्रायल इस दवाई के इस्तेमाल की सिफारिश नहीं की है।
द लैंसेट की स्टडी में कोविड 19 से संक्रमित 96,000 मरीजों को शामिल किया गया था। इनमें से 15,000 लोगों को हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन दी गई या इससे मिलती जुलती क्लोरोक्विन दी गई। ये या तो किसी एंटिबायोटिक के साथ दी गई या फिर केवल यही।
इस स्टडी के मुताबिक दूसरे कोविड मरीजों की तुलना में क्लोरोक्विन खाने वाले मरीजों की हॉस्पिटल में ज़्यादा मौत हुई और हृदय रोग की समस्या भी उत्पन्न हुई। जिन्हें हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन दी गई उनमें मृत्यु दर 18 प्रतिशत रही, क्लोरोक्विन लेने वालों में मृत्यु दर 16.4 प्रतिशत और जिन्हें ये दवाई नहीं दी गई उनमें मृत्यु दर 9 प्रतिशत रही।
जिन मरीजों का इलाज हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन या क्लोरोक्विन एंटिबायोटिक के साथ दी गई उनमें मृत्यु दर और ज़्यादा थी। अध्ययनकर्ताओं ने कहा है कि हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन क्लिनिकल ट्रायल से बाहर लेना खतरनाक है।
ट्रंप लगातार कर रहे है इस दवा के प्रोत्साहित
इस हफ्ते राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा था कि कोविड टेस्ट में वो निगेटिव आए हैं क्योंकि वो हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन ले रहे हैं और उन्हें इसका सकारात्मक फायदा मिला है। इसे लेकर ट्रायल चल रहा है कि हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन कोविड 19 में प्रभावी है या नहीं।
यूरोप, एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमरीका के 40 हजार से ज़्यादा स्वास्थ्यकर्मियों को इस ट्रायल में हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन की खुराक दी जाएगी।
जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन से जुड़े संगठन ‘पैन अमरीकान हेल्थ ऑर्गनाइजेशन’ के निदेशक डॉक्टर मार्कोस एस्पिनाल ने ये बात जोर देकर कही है कि किसी भी क्लिनिकल ट्रायल में कोरोना वायरस के इलाज के नाम पर हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन के इस्तेमाल की सिफारिश नहीं की गई है।