प्रोफेसर रवि कांत उपाध्याय
डेंगू बुख़ार एक संक्रामक बीमारी है जो डेंगू वायरस के कारण होता है। डेंगू बुख़ार मादा एडीज मच्छर के काटने से होता है। इस बुखार से पीड़ित व्यक्ति को बहुत दर्द महसस होता है, और ऐसा लगता है जैसे हड्डियां टूट रही हों। इसलिए इसे ‘हड्डीतोड़’ बुखार भी कहा जाता है शुरुआत में यह बुखार सामान्य बुखार जैसा ही लगता है, और सामान्य बुखार और डेंगू के लक्षणों में फर्क नजर नहीं आता है।
इस बुखार के इलाज में थोड़ी सी लापरवाही भी तकलीफ़ देय एवं जानलेवा साबित हो सकती है। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अपना प्रकोप दिखाता रहता है। पिछले दो दशकों में डेंगू पीड़ित केस संख्या आठ गुना बढ़ी है विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार डेंगू बुखार का प्रकोप दुनिया के 128 देशों में फैला हुआ है। ऐसा समय रहते सही एवं प्रभावी डेंगू पर नियंत्रण नहीं किया गया।
इसी कारण से डेंगू वायरस का संक्रमण बढ़ता जा रहा है। डेंगू वायरस ऊष्णकटिबन्ध और शीत कटिबन्ध के बीच शीतोष्ण जलवायु क्षेत्रों तक फैल चुका है लेकर समशीतोष्ण कटिबन्ध ऊष्णकटिबन्ध और शीत कटिबन्ध के बीच का क्षेत्र कहलाता है। दुनिया के 128 देशों में डेंगू फैला हुआ है।
डेंगू से आजतक कोई भी देश आज तक पूरी तरह से इससे मुक्त नहीं हो पाया है। और अगर इसके इलाज में थोड़ी सी लापरवाही बरती जाए तो यह जानलेवा साबित हो सकती है। भारत में डेंगू का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। सरकारी आंकड़ो पर नजर डालें तो लाखों लोग हर साल डेंगू से पीड़ित होते हैं तथा हज़ारों मौत होती हैं। साल 2019 में यह आंकड़ा 67,000 तक पहुँच गया. इस साल के कुल आंकड़ो का इंतजार है। डेंगू से होने वाली औसत मृत्युदर 4 से 10 प्रतिशत है।
कैसे फैलता है डेंगू वायरस का संक्रमण डेंगू बुख़ार एक संक्रमण है जो डेंगू वायरस के कारण होता है। डेंगू बुखार एडीज इजिप्टी मच्छर के काटे से होता है। मच्छर के काटने के करीब 3-5 दिनों के बाद मरीज में डेंगू बुखार के लक्षण दिखने लगते हैं। डेंगू फैलाने वाले एडीस मच्छर को पूरी तरह से खत्म करना संभव नहीं है। गर्म से गर्म माहौल में भी यह जिंदा रह सकता है।
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वयस्क मादा मच्छर एकत्रित साफ पानी में 200-300 अण्डे देता है, जो इतने छोटे होते हैं कि आंखों से दिखते भी नहीं हैं, जिसके कारण इन्हे मार पाना आसान नहीं होता है। निसेचित अण्डे कई क्रमिक चरणों में प्रबर्धन द्वारा विकसित होकर बड़ा होता है तथा लार्वा में बदल जाता है और फिर लार्वा विकसित होकर अडल्ट मच्छर बन जाता है। फिर प्रजनन कर के अगली पीढ़ी को जन्म देता है। इस तरह एडीज इजिप्टी मच्छर प्रजनन सामान्यत 15 से 27 दिन में अपना जीवनचक्र को पूरा करता है।
डेंगू बुखार के लक्षण डेंगू संक्रमण के शुरु होने के बाद ठंड लगने के साथ रोगी को अचानक तेज बुखार चढ़ता है, तथा सिर, मांसपेशियों और जोड़ों में महसूस असहनीय पीड़ा/दर्द होता है। रोगी की त्वचा पर चेचक जैसे लाल चकत्ते पड़ जाते हैं।
डेंगू के अन्य लक्षण हैं आंखों के पिछले हिस्से में दर्द होना, बहुत ज्यादा कमजोरी लगना, भूख न लगना, जी मितलाना और मुंह का स्वाद खराब होना, गले में हल्का-सा दर्द होना, शरीर खासकर चेहरे, गर्दन और छाती पर लाल-गुलाबी रंग के रैशेज होना। वैसे डेंगू वायरस से संक्रमित लगभग 80% लोगों में कोई लक्षण नहीं होते हैं या बेहद हल्के लक्षण जैसे हल्के बुख़ार का बना रहना।
संक्रमित लोगों में से लगभग 5% लोग (प्रत्येक 100 लोगों में से 5) गंभीर रूप से बीमार पड़ते हैं। डेंगू वायरस से पीड़ित होने के 3 से 14 दिनों के बाद किसी व्यक्ति में लक्षण दिखते हैं। यदि कोई व्यक्ति डेंगू संक्रमित क्षेत्र से लौटता है जहां डेंगू फैला हुआ है उसमें संक्रमण की संभावना ज्यादा होती है। और उसको लौटने के 14 दिन बाद बुख़ार होता है। यदि उसमें लक्षण नहीं दिखते हैं तो शायद उसको डेंगू नहीं होगा।
डेंगू बुखार के प्रकार
सामान्य डेंगू बुखार – इसमें बुखार के साथ तेज सिर दर्द, बदन दर्द, तथा आंखों के पीछे और शरीर पर दाने उभर आते हैं । कुछ रोगियों में लक्षण नहीं उभरते, केवल डेंगू बुखार होता है। ऐसे मरीज का टेस्ट करने पर डेंगू पॉजिटिव आता है लेकिन वे स्वयं बिना किसी इलाज के ठीक हो जाते हैं।
क्लासिकल डेंगू बुखार– इसमें तेज बुखार के साथ रोगी को तेज बदन एवं सिर दर्द, शरीर पर दाने हो जाते हैं। यह एक सामान्य वायरल बुखार/डेंगू फीवर होता है । ऐसे मरीज 5-7 दिन के सामान्य इलाज से ठीक हो जाते हैं।
डेंगू हीमोरेजिक बुखार – यह थोड़ा खतरनाक साबित हो सकता है। इसमें मरीज के खून में प्लेटलेट और वाइट ब्लड सेल्स की संख्या कम होने लगती है। नाक और मसूढ़ों से खून आता है, शौच और उल्टी में खून आने लगता आना है, त्वचा पर गहरे नीले-काले रंग के चकते जाते हैं।
डेंगू शॉक सिंड्रोम– यह डेंगू बुखार से होने वाली एक काफी गंभीर समस्या है। इसमें मरीज धीरे-धीरे होश खोने लगता है, उसका बीपी और नब्ज एकदम कम हो जाती है और तेज बुखार के बावजूद त्वचा (शरीर) ठंडी लगती है। इन लोगों की संख्या कम होती है, तथा इनके ठीक होने संभावना भी कम होती है।
डेंगू वायरस 3 भिन्न-भिन्न प्रकारों के होते हैं। यदि किसी व्यक्ति को इनमें से किसी एक प्रकार के वायरस का संक्रमण हो जाये तो आमतौर पर उसके पूरे जीवन में वह उस प्रकार के डेंगू वायरस से सुरक्षित रहता है।
डेंगू बुखार की जांच
डेंगू के लक्षणों से इसकी पहचान की जाती है और रोगी की ट्रेवलिंग इतिहास की जांच की जाती है। जिससे उसके डेंगू प्रभावित क्षेत्र में विजिट का पता लगाया जा सके। रोगी के खून की जांच करानी चाहिए। इसके लिए कम्पलीट ब्लड (खून) टेस्ट (सीबीसी) कराना अति आवश्यक है, जिससे खून में उपस्थित लाल रुधिर कणिकाओं (आरबीसी) श्वेत रुधिर कणिकाओं (वाइट ब्लड सेल्स) जैसे मोनोसाइट, बेसोफिल,इओसीनोफिल और बेसोफिल, तथा प्लेटलेट्स की संख्या का भी पता चल जाता है।
यदि प्लेटलेट्स और वाइट ब्लड सेल्स की संख्या कम पायी जाती है तो डेंगू की सम्भावना ज्यादा होती है। डेंगू की ठीक स्थिति जानने के लिए अन्य क्लिनिकल टेस्ट कराने अति आवश्यक होते हैं। रोगी को भयानक 104 फोरेन्हाईट तेज बुखार के अन्य कारण भी हो सकते हैं।
इसलिए डॉक्टर डेंगू को अन्य बीमारियों से अलग पहचानने के लिए और जांचें करवाते हैं । इसके अलावा रोगी का ब्लड कल्चर और यूरिन कल्चर के साथ स्पाइनल टेस्ट भी कराया जाता हैं जिससे डेंगू और अन्य बिमारियों के मध्य अंतर. किया जा सके।
डेंगू रोग की सही पहचान के लिए इम्यूनोग्लोबिन एम-बेस्ड टेस्ट (MAC- ELISA assay) का कराया जाता है। इसके अलावा डेंगू फीवर को जांचने के कई अन्य test भी उपलब्ध हैं जो कि रोगी के डेंगू वाईरस के प्रति इम्युनोलॉजिकल प्रतिक्रिया पर आधारित हैं जैसे इम्यूनोग्लोबिनजी-एलिसा (IgG-ELISA),डेंगू वायरल प्लेक रिडक्शन टेस्ट और पीसीआर टेस्ट मुख्य हैं।
डेंगू की जांच में मुख्यतया मरीज के खून में ऐंटीजन IgM और IgG व प्रोटीन NS-1 उपस्थिति का पता किया जाता है। NS-1 की उपस्थिति से मरीज के अंदर डेंगू वायरस का यह पता चल जाता है लेकिन जरूरी नहीं कि उसे डेंगू फीवर हो। IgM और IgG में से अगर केवल IgG पॉजिटिव है तो इसका अर्थ है कि मरीज को पहले कभी डेंगू हुआ है।
डेंगू में प्लेटलेट्स और PCV दोनों का ध्यान रखना अति आवश्यक है। PCV ब्लड में रेड ब्लड सेल्स का प्रतिशत बताता है। यह सेहतमंद पुरुषों में 45 फीसदी और महिलाओं में 40 फीसदी होता है। डेंगू होने पर यह बढ़ सकता है। इसके बढ़ने का मतलब खून का गाढ़ा होना है। अगर PCV बढ़ रहा है तो यह एक खतरनाक एवं काफी गंभीर स्थिति होती है।
बचाव और रोकथाम के उपाय
घर एवं अपने आस पास साफ़ सफाई रखें। मच्छरों को पैदा होने से रोकने के लिए बालटी, कूलर, गमले, टूटे-फूटे डिब्बे, पुराने टायर, बर्तन, बोतलें आदि को उलटा करके रखें जिससे उनमें बरसात का इकट्ठा ना हो। किसी भी जगह खुले में पानी इकठ्ठा ना होने दे, पानी पूरी तरह ढककर रखें।
बाथरूम, किचन तथा नालियों में जहां पानी भी रुकता हो, वहां दिन में एक बार मिट्टी के तेल का छिड़काव जरूर करें। पानी की टंकी को खुला नहीं छोड़ें अच्छी तरह बंद करके रखें। जिससे डेंगू के फैलाने वाले मच्छरों को पैदा होने से रोका जा सके। कूलर का इस्तेमाल बंद कर दें। दिन में खुले बदन न रहें मच्छरों के काटने से खुद को बचाएं।
पूरी बांह की शर्ट, बूट, मोजे और फुल पैंट पहनें। मच्छररोधी लेप आदि का प्रयोग नियमित रूप से करना चाहिए ताकि मच्छरों से बचाव किया जा सके। शाम के समय दरवाजे खिड़की बंद रखें मोस्कीटो रिपलटेंट पेर्मेथ्रिन का उपयोग मच्छरों को भगाने कर सकते हैं, मच्छरों को मारने के लिए मेरीगोल्ड और लेमन ग्रास का उपयोग किया जा सकता है।
रात में सोने के लिए मच्छरदानी का उपयोग करें, बच्चों को पूरे कपड़े पहनाएं जिससे उनकी त्वचा पूरी ढकी रहे। खाली बर्तनों में जमा नहीं उसका पानी रोज बदलें और उसमें ब्लीचिंग पाउडर या बोरिक एसिड जरूर डालें। घर के अंदर सभी जगहों में संक्रमित मच्छरों को मारने के लिए कीटनाशक दवा का छिड़काव नियमित रूप से जरूर करें।
डेंगू के उपचार
डेंगू के लक्षण दिखते ही डॉक्टर से सम्पर्क करना चाहिए। रोगी को आराम करने देना चाहिए, ग्लूकोज-डी उपयोग, ओआरएस इलेक्ट्रोलाइट्स लिक्विड का रहना चाहिए। जिससे रोगी के शरीर में पानी की कमी नहीं होनी चाइये। डॉक्टर के कहने पर बुखार के लिए पेरासिटामोल खाएं, डेंगू के लिए घरेलू उपचार भी सहायक सिद्ध हो सकता हैं।
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इसमें डेंगू के मरीज को पपीते के पत्तों का रस पिलाना इसके लिए पपीता के पेड़ की पत्तियों का सत (एक्सट्रेक्ट) बनाकर उपयोग में लिया जा सकता हैं। इससे शरीर में प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ जाती हैं। इस पर अब भी वैज्ञानिक शोध ज़ारी हैं। तुरंत पहचान के साथ ही उपचार शुरू करना आवश्यक हैं। लोगों को डेंगू वायरस से बचाने के लिये कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है।
डेंगू बुख़ार के उपचार के लिए नॉन-स्टीरोइडल एंटी-इन्फ्लामेतट्रि एजेंट्स (NSAID) जैसे एस्पिरिन,आईबुप्रोफेन का उपयोग किया जाता हैं। अन्य NSAID का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि NSAID हिमोरेज में और वृद्धि कर सकते हैं। डेंगू की ज्यादा गंभीर स्थिति एडिशनल सपोर्टिव ट्रीटमेंट की आवश्यकता होती हैं,जिसमें रोगी को IV फ्लूइड हाईड्रेशन,ब्लड ट्रांसफ्यूजन, प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन,ब्लड प्रेशर सपोर्ट और अन्य इंटेंसिव देखभाल मुहैया करनी चाहिए।
जन जागरूकता
डेंगू प्रभावित क्षेत्र में आने वाले हाई रिस्क गांवों में स्कूली बच्चों एवं उनके अभिभावकों, आम नागरिकों को डेंगू बुखार के नियंत्रण के सम्बन्ध में जागरूक करने के लिए जन जागरूकता अभियान व्यापक पैमाने पर चलाया जाना चाहिए। रोगी की सही जांच , इलाज, उपचार एवं उचित देखभाल करनी चाहिए तथा उसे पूरा स्वस्थ होने तक कुछ हफ्तों का बेडरेस्ट देना चाहिए।
रोगी को स्वस्थ और पौष्टिक आहार तथा तरल पदार्थों का उपभोग करना चाहिए। बारिश के मौसम में हाई रिस्क गांवों में मच्छररोधी लेप एवं मच्छरदानी नि:शुल्क वितरण होना चाहिए। मच्छरों को मारने के लिए कीटनाशक दवा का छिड़काव नियमित रूप से जाना चाहिए।
(लेखक दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में जंतु विज्ञान विभाग के प्रोफेसर हैं।)