Saturday - 26 October 2024 - 12:21 PM

‘स्किन-टू-स्किन’ टच का विवादित फैसला देने वाली जज का डिमोशन

जुबिली न्यूज डेस्क

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने बॉम्बे हाईकोर्ट की महिला अतिरिक्त जज जस्टिस पुष्पा वी गनेडीवाला के नाम की स्थायी जज के रूप में सिफारिश नहीं करने का फैसला किया है।

पुष्पा गनेडीवाला वहीं जज हैं, जिनके एक फैसले ने काफी विवाद खड़ा किया था। उन्होंने अपने फैसले में कहा था कि अगर पीडि़ता और आरोपी के बीच ‘स्किन-टू-स्किन’ टच नहीं हुआ है तो तो पॉस्को कानून के तहत इसे यौन अपराध नहीं माना जाएगा।

फिलहाल कॉलेजियम के फैसले का मतलब है कि बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में सेवारत जस्टिस गनेडीवाला को फरवरी 2022 में उनकी अतिरिक्त जजशिप के खत्म होने पर फिर से जिला न्यायपालिका में वापस भेज दिया जाएगा।

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उच्च न्यायालय में नियुक्तियों का निर्णय लेने वाले कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और डी वाई चंद्रचूड़ शामिल हैं।

हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 224(1) के तहत सीधे बार या राज्य न्यायपालिका से दो साल से अधिक की अवधि के लिए नहीं की जाती है। इनकी सेवानिवृत्ति की आयु 62 वर्ष है।

जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला का परिचय

1969 में महाराष्ट्र के अमरावती जिले के परतवाड़ा में जन्मी जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला को 2007 में जिला जज नियुक्त किया गया था। 2019 में, उन्हें उन्हें नागपुर में बॉम्बे हाईकोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की मंजूरी 2018 में उनके फैसले को टालने के बाद आई थी।

HC के जजों की असहमति के बावजूद हुई थी नियुक्ति

पहली बार उनके नाम की सिफारिश नवंबर 2017 में हाईकोर्ट ने की थी और सितंबर 2018 में राज्य के पांच अन्य न्यायिक अधिकारियों के साथ सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के सामने आया था।

लेकिन तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा, जस्टिस रंजन गोगोई और मदन लोकुर के कॉलेजियम ने उनकी उम्मीदवारी को टाल दिया।

कॉलेजियम को तब बॉम्बे हाई कोर्ट के जजों से असहमति के दो मजबूत नोट मिले, जिनसे नियुक्ति पर सलाह ली गई थी। इसके बावजूद, उन्हें 2019 में तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस ए के सीकरी और एस ए बोबडे के एक कॉलेजियम द्वारा नियुक्त किया गया था।

यौन उत्पीडऩ केस में सुनाया था विवादित फैसला

न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने एक फैसला सुनाया था। उनके मुताबिक, यदि आरोपी और पीडि़़त के बीच “कोई सीधा शारीरिक संपर्क, यानी स्कीन टू स्कीन टच” नहीं हुआ है तो क्कह्रष्टस्ह्र अधिनियम की धारा 7 के तहत यौन उत्पीडऩ के अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा।

हालांकि नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के इन फैसलों को खारिज कर दिया था।

बॉम्बे HC कॉलेजियम ने की थी 5 जजों के नाम की सिफारिश

बॉम्बे हाईकोर्ट कॉलेजियम ने जुलाई में स्थायी न्यायाधीश नियुक्त करने के लिए पांच अतिरिक्त न्यायाधीशों के नामों की सिफारिश की थी।

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के गुरुवार को एक बयान के अनुसार, तीन न्यायाधीशों (न्यायमूर्ति माधव जयजीराव जामदार, अमित बी बोरकर और एस दत्तात्रेय कुलकर्णी) की स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए सिफारिश की गई है और न्यायमूर्ति अभय आहूजा का कार्यकाल एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया है।

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