जुबिली न्यूज डेस्क
अवध विश्वविद्यालय पुरातन छात्र सभा की जनहित याचिका पर अगले सप्ताह है सुनवाई..
अयोध्या। राम नगरी में बन रहे श्रीराम अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के लिए अधिग्रहित की गई अवध विश्वविद्यालय की कुलपति कॉलोनी का ध्वस्तीकरण शासन-प्रशासन के गले की फांस बन गया है। मुआवजे की मांग को लेकर अवध विश्वविद्यालय पुरातन छात्र सभा ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका भी दाखिल कर रखा है।
दो माह पूर्व ही शिक्षक कॉलोनी को खाली करा लिया गया था। इसे लेकर तमाम चर्चाएं तैर रही है कहा तो यह भी जा रहा है कि पूर्व कुलपति ने अपने बचाव के लिए शासन प्रशासन में गुहार ही नहीं लगाया।
कालोनी को खाली करने में विश्वविद्यालय के इस्तीफा दे चुके कुलपति रविशंकर सिंह पटेल ने पहल की थी। कहा जाता है कि ऐसा उन्होंने इसलिए किया था ताकि शासन का वरदहस्त बना रहे। जिला प्रशासन की नोटिस पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने शिक्षकों को आवास खाली करने के लिए पत्र जारी किया था। सबसे अंत में शिक्षक डॉ संजय चौधरी ने 26 मई को आवास खाली किया।
इस दौरान विद्युत विभाग ने प्रशासन के कहने पर 25 मई को ही कॉलोनी की बिजली पानी काट दिया। शिक्षक को अंधेरे में रात गुजारनी पड़ी थी।
मालूम हो कि अवध विश्वविद्यालय की लगभग 25 एकड़ जमीन और लगभग 50 करोड़ के भवनों को अधिकृत कर उत्तर प्रदेश शासन ने एयरपोर्ट अथारिटी को सौंप दिया है। भवनों और जमीन के मुआवजे के लिए एक टका भी उत्तर प्रदेश शासन ने अवध विश्वविद्यालय को नहीं दिया है, जिसके खिलाफ अवध विश्वविद्यालय पुरातन छात्र सभा के अध्यक्ष ओमप्रकाश सिंह ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल किया है। इसकी सुनवाई जुलाई के दूसरे सप्ताह में होनी है। इसमें प्रदेश और केंद्र सरकार के लगभग 17 विभागों को नोटिस जारी हुई है ।
अवध विश्वविद्यालय की लगभग 25 एकड़ जमीन और लगभग 50 करोड़ के भवनों को अधिकृत कर उत्तर प्रदेश शासन ने एयरपोर्ट अथारिटी को सौंप दिया है। अब इन भवनों के ध्वस्तीकरण को लेकर एयरपोर्ट अथॉरिटी ने हाथ खड़ा कर दिया है उनका कहना है कि हमने जमीन मांगी थी। भवनों के मुवावजे और ध्वस्तीकरण हमारे जिम्मे नहीं है।
यह भी पढ़ें : थोक में हए इतने तबादले कि मृतक को भी कर दिया ट्रांसफर, यूपी के स्वास्थ्य महकमे में बड़ा भूचाल
उधर हाइकोर्ट की बेंच ने डॉ राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के भूमि अधिग्रहण प्रकरण में राज्य सरकार को नोटिस जारी कर रखा है। अदालत ने याचिकाकर्ता की इस दलील कि बगैर कार्यपरिषद की सहमति के सरकार विश्वविद्यालय के जमीन का अधिग्रहण नहीं कर सकती है, पर सहमति व्यक्त किया है। विश्वविद्यालय स्वायत्तशासी संस्था है और कार्यपरिषद इसकी सर्वोच्च निर्णायक समिति। उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 के अनुसार कार्य परिषद का निर्णय ही अंतिम होता है। यहां तक कि कुलाधिपति/ राज्यपाल भी कोई निर्णय लेते हैं तो उसके अनुपालन के लिए कार्य परिषद को इंगित किया जाता है।
भूमि अधिग्रहण के प्रकरण में विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद ने उत्तर प्रदेश सरकार को भूमि देने से मना कर दिया था। उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने कैबिनेट में एक प्रस्ताव पास कर बिना मुआवजा दिए जमीन और भवनों का अधिग्रहण कर लिया है। राज्य सरकार के इस निर्णय के खिलाफ अवध विश्वविद्यालय पुरातन छात्र सभा के अध्यक्ष ओम प्रकाश सिंह ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल कर भूमि के बदले भूमि व भवनों के मुआवजे की मांग किया है।