न्यूज डेस्क
मॉब लिचिंग की घटनाओं ने हमारे दिलों में छेद कर दिया है। इसका अंत होता नहीं दिख रहा है। अब बर्दाश्त के भी बाहर है। मुस्लिम अन्य समुदायों से अलग हैं। अन्य कोई समुदाय निशाने पर होता, तो अब तक उन्होंने जवाब दे दिया होता।
इस बयान में उग्रता के साथ-साथ भावुकता भी है। ऐसी तमाम बातें उस समुदाय के लोगों ने कही जो तबरेज अंसारी के समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। देश में बढ़ रहे मॉब लिचिंग के मामलों से मुस्लिम समुदाय का दर्द और डर अब सड़क पर आ गया है।
एक जून को महाराष्ट्र के मालेगांव में मुस्लिम समाज के एक लाख से ज्यादा लोग इकट्ठा हुए और एंटी-लिंचिंग कानून की मांग की। ये लोग अंग्रेजों द्वारा 97 साल पहले सात स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दिए जाने की याद में लोग मालेगांव के ‘शहीदों की यादगार’ स्मारक पर इकट्ठा हुए थे।
मुस्लिम समुदाय द्वारा भीड़ द्वारा हत्या का विरोध करने के लिए इसे पहली रैली करार देते हुए, आयोजकों ने कहा कि झारखंड के 24 वर्षीय तबरेज अंसारी की हत्या में सभी को झकझोर के रख दिया।
विरोध प्रदर्शन के दौरान, मालेगांव के मुफ्ती मोहम्मद इस्माइल कासमी ने कवि फैयाज के शब्दों में कहा, ‘आज अगर निशाने में हम हैं, तो दूसरे लोगों को खुश नहीं होना चाहिए।’
रैली की अगुवाई करने वाले जमीयत उलेमा के सदस्यों ने इस मामले में सरकार एक हफ्ते में कोई कदम उठाने की मांग की। उन्होंने कहा कि- ‘हम बदला नहीं चाहते हैं और हिंसा में विश्वास नहीं करते हैं। हम कानून के शासन में विश्वास करते हैं।’
शहीद स्मारक पर जाने से पहले लोग मालेगांव किले पर पहुंचे थे। रैली में पुलिस प्रशासन और राज्य एंव केंद्र सरकारों से संविधान में ध्यान देने की अपील की गई। भाषण में उग्रता और भावुकता, दोनों का भाव था।
पीड़ित परिवार को मिले 50 लाख रुपये का मुआवजा
इन लोगों ने महाराष्ट्र्र प्रशासन को एक पत्र भी सौंपा। पत्र में राष्ट्रपति से सभी राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को लिंचिंग के बारे में लिखने और राज्य के प्रमुखों को उनके संवैधानिक कर्तव्यों को याद दिलाने का आग्रह किया है। इसके अलावा मॉब लिंचिंग के प्रत्येक पीड़ित के परिवार को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने की भी मांग की गई है।