नई दिल्ली। आज दुनियाभर में जल संकट के बदल छाए हुए है। ऐसे में एक रिपोर्ट से पता चलता है की दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश तक भूजल काफी नीचे गिर रहा हो और सरकारे इनसे पल्ला झड़ने में जुटी हुए है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरी दुनिया में उत्तरी भारत ही ऐसा है जहां भूजल तेजी से कम हो रहा है।
भूजल पर हुए अध्ययन को लेकर एक रिपोर्ट आई है। इस बढ़ते संकट के केंद्र में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली है, जहां प्रतिदिन भूजल कम होता जा रहा है। अध्ययन करने वाले नेशनल ज्योग्राफिक रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डॉक्टर विरेंद्र एम तिवारी का कहना है, “दिल्ली से लेकर, हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में हर साल 32 क्यूबिक किमी पानी बर्बाद होता है। जो कि सामान्य से काफी अधिक है। यह पानी आंशिक रूप में क्रत्रिम मानसून से ही प्राप्त किया जा सकता है।” उनके अनुसार, “गर्मियों में भूमिगत जल और भी कम होता जाता है।”
रिपोर्ट में खुलासा, वैश्विक भूजल संकट के केंद्र में है राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली
वैज्ञानिकों का कहना है कि सेंट्रल ग्राउंडवाटर बोर्ड के अनुमान से 70 फीसदी तेजी से भूजल कम हो रहा है। कुछ रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि 1990 के दशक में हर साल 172 क्यूबिक किमी भूजल कम हो रहा था। तिवारी का कहना है, “हमें इस बारे में कुछ नहीं पता कि क्षेत्र में कितना भूजल बचा हुआ है। लेकिन हमें साफ तौर पर पता है कि तस्वीर बेहद गंभीर है।”
नीति आयोग का तो ये तक कहना है कि अगर दिल्ली में ऐसी ही स्थिति बनी रही तो 2020 तक यहां भूजल बचेगा ही नहीं। तिवारी ने कहा कि बढ़ती जनसंख्या और जल संसाधनों के सिकुड़ने से भूजल क्षेत्र हर साल 10 सेमी तक कम हो रहा है। कई अन्य पर्यावरणीय प्रभावों के साथ दिल्ली इस संकट के भी केंद्र में है। पोषक तत्व खत्म हो रहे हैं और मिट्टी के प्रकार खराब हो रहे हैं।
बीते साल नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि अन्य मेट्रो सिटी सहित दिल्ली में 2020 तक भूजल नहीं बचेगा। एनजीआरआई के अनुमान के अनुसार दिल्ली को हर साल पीने, औद्योगिक और घरेलू कामों के लिए 1 क्यूबिक सेमी पानी की जरूरत होती है।
वहीं 10 साल पहले दूषित पानी केवल पश्चिम बंगाल और बिहार में ही देखने को मिलता था लेकिन अब ये उत्तर पश्चिम की ओर जा रहा है। कई अन्य रिसर्च में ये भी सामने आया है कि आर्सेनिक युक्त पानी से फसल पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।