Thursday - 7 November 2024 - 2:51 AM

दिल्ली चुनाव नतीजे : उत्तराखंड बीजेपी की सियासत पर असर!

चेतन गुरुंग

दिल्ली विधानसभा चुनाव में BJP के मटियामेट और पूरी तरह ध्वस्त-अपमानित होने का बड़ा असर उत्तराखंड बीजेपी और त्रिवेन्द्र सल्तनत पर पढ़ने के आसार बढ़ गए हैं। पार्टी में जोश भरने और सरकार में रफ्तार-नयापन लाने के लिए त्रिवेन्द्र और हाई कमान के पास दो विकल्प है। एक-मंत्रियों की खाली कुर्सियों को तत्काल भरना। दूसरा-मंत्रियों में जो नतीजे देने के मामले में निराश कर रहे हैं, या जिनकी जगह किसी नए चेहरे को लाना जरूरी है, उसको लाना। इससे न सिर्फ त्रिवेन्द्र को सियासी मजबूती मिलेगी, बल्कि उनकी नौका डुबोने में जुटे संगठन के सूबेदारों को भी धक्का लग सकता है। कम से कम तीन नाम फिलहाल खुद की ब्रांडिंग में दिल्ली दरबार में जु-जो हुजूर कर रहे हैं।

लंबे समय से ये माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री जल्द ही मंत्रिपरिषद की खाली सीटों को भर देंगे। सरकार के गठन के समय से दो सीटें खाली थीं। पिछले साल वित्त, आबकारी और पेयजल मंत्री प्रकाश पंत की कैंसर से आकस्मिक मृत्यु के बाद से एक सीट और खाली हो गई है। इस तरह तीन सीटों पर नए और मजबूत चेहरों को अपनी टीम में शामिल करने का खूबसूरत अनमोल मौका त्रिवेन्द्र के पास है। ऐसा करने से उनकी निजी सियासी ताकत ही नहीं बढ़ेगी। सरकार के कामकाज को गति भी हासिल होगी।

ये भी मुमकिन है कि पार्टी के नाखुश बैठे और मंत्री बनने की आस लगाए बैठे अलमबरदार उनके साथ ताल से ताल मिला के चलने लगें। इससे विकास कार्यों और योजनाओं के बेहतर नियंत्रण का मौका भी उनके पास रहेगा। दिल्ली चुनावों ने ये साबित कर दिया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विधानसभा चुनावों में जीत की गारंटी कहीं से नहीं रहे हैं। जीत का फॉर्मूला मुख्यमंत्री और सरकार के हाथ में रहेगा। जो मुख्यमंत्री कामकाज-व्यवहार से अवाम का दिल जीतेगा, वही विधानसभा चुनाव में सिकंदर साबित होगा।

ऐसे में त्रिवेन्द्र के लिए मोदी के नाम की माला जपना छोड़ अपने बूते ही अरविंद केजरीवाल की तरह काम और बर्ताव को अपनाना होगा। निबटी और लिटी हुई काँग्रेस को देखते हुए इसमें कोई अजूबा नहीं होगा, अगर बीजेपी काम के बूते फिर सरकार हासिल कर ले। कम से कम उत्तराखंड में ये नामुमकिन नहीं है। यहाँ की परंपरा हर पाँच साल में सरकार का बदल जाना। काँग्रेस-बीजेपी का बारी-बारी से राज करना है। हाई कमान का भरपूर आशीर्वाद पाए और जबर्दस्त बहुमत वाली सरकार चला रहे त्रिवेन्द्र को दोनों काम एक साथ करने होंगे।

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एक तो संगठन में नाखुश-नाराज लोगों को शांत करना। दूसरा खाली पड़ी मंत्रियों की सीटों को भर देना। विकास कार्यों को इससे निस्संदेह रफ्तार मिलेगी। सकारात्मक असर उन पर पड़ेगा। उनके पास अभी भी दो साल का अरसा है। पुरानी खामियों और गलतियों को सुधार के नए सफर पर नई डगर से चलना और मंजिल हासिल करना मुमकिन है। उनको अंदेशा या अंदाज तो है कि पार्टी के कुछ शक्तिशाली सिपहसालार उनके तख्त को हिला कर खुद बैठने के लिए किस कदर बेकरार हैं। एक ठाकुर और दो ब्राह्मण नामों की दिल्ली में इन दिनों चर्चा है कि वे कमर कसे हुए हैं। वे त्रिवेन्द्र के उत्तराधिकारी बनने को बेचैन हैं। ऐसा सूत्र बता रहे। इसके लिए वे तमाम हथकंडे भी अपना रहे हैं। त्रिवेन्द्र के पास उनको परास्त-निराश करने का एक ही रास्ता है। वह है अवाम को अपने कामकाज से अपने हक में करना।

त्रिवेन्द्र चाहे तो 3-4 मंत्रियों को बदल के और बेहतर चेहरों को टीम में शामिल कर सकते हैं। इससे न सिर्फ मंत्रिपरिषद में नयापन आएगा, बल्कि कामकाज की रफ्तार में इजाफा होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। बेहतर होगा कि वह युवा और आक्रामक लेकिन सूझ-बूझ भरे पुष्कर सिंह धामी, स्वामी यतीश्वरानंद सरीखे नामों को मौका देने की प्राथमिकता दें। हाई कमान भी राज्यों में लगातार पार्टी की हार से त्रस्त और परेशान है। ऐसे में अब वह भी चाहेगा कि आने वाले जल्द सालों में जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं, वहाँ कुछ नए प्रयोग किए जाएँ। इससे त्रिवेन्द्र को अपनी योजना पर अमल करने का पूरा मौका मिल सकता है।

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