सैय्यद मोहम्मद अब्बास
नई दिल्ली। चुनाव में जीत और हार लगी रहती है लेकिन सत्ता हासिल करने के लिए राजनीतिक दल कुछ भी करने पर उतारू हो जाते हैं। इसका ताजा उदाहरण है दिल्ली का चुनाव। दरअसल दिल्ली के चुनाव में राजनीतिक दलों ने हर उस मुद्दे को भुनाने की कोशिश की जिससे वोटों का ध्रुवीकरण हो सके। हालांकि देश के राजनीतिक दल केवल अपने फायदे के लिए ऐसा करते हैं।
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केजरीवाल ने दिल्ली में लगायी जीत की हैट्रिक
बात अगर दिल्ली चुनाव की जाये तो केजरीवाल वहां पर जीत की हैट्रिक लगाने जा रहे हैं, इसमे किसी को कोई शक नहीं था। सत्ताधारी पाटी आप रुझाने में 55 से ज्यादा सीटों पर पकड़ मजबूत है, दूसरी ओर बीजेपी के खाते में 12 के आस-पास सीटें जाती दिख रही हैं। पिछले चुनाव की तरह कांग्रेस इस बार भी खाता खोलती नहीं दिख रही है। इसके साथ ही दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनना तय है। सत्ता में लौटने पर AAP का नया नारा भी सामने आ रहा है, अच्छे होंगे 5 साल, दिल्ली में तो केजरीवाल।
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दिल्ली चुनाव में क्या था मुद्दा
दिल्ली चुनाव में पहले धारा-370, राममंदिर, तीन तलाक, सीएए जैसे मुद्दे को उठाया गया लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आया वैसे-वैसे मुद्दा भी बदलता नजर आया। इसके बाद दिल्ली चुनाव में शाहीन बाग की इंट्री होती। इतना नहीं इस चुनाव में पाकिस्तान तक को शामिल किया गया था। इस वजह से पड़ोसी मुल्क पाक भी इस चुनाव में रूचि लेने लगा। हालांकि केजरीवाल ने इस पर पाक को खूब लताड़ लगाई।
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अच्छें कामों के सहारे केजरीवाल ने मारा मैदान
शाहीन बाग के सहारे वोटों को अपनी ओर खींचने के लिए बीजेपी से लेकर कांग्रेस ने कोई कसर नहीं छोड़ी जबकि आम आदमी पार्टी ने इस पर कुछ खास ध्यान नहीं दिया। दरअसल केजरीवाल दिल्ली का चुनावी दंगल केवल अपने अच्छे कामों से जीतना चाहते थे। यही से वो सबसे अलग नेता के रूप में सामने आये हैं।
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केजरीवाल ने बिजली, पानी फ्री, स्कूल में सुधार, हॉस्पिटल और मोहल्ला क्लिनिक के आलावा महिलाओं को बसों में फ्री सफर दिया। चुनाव में इसी कामों के सहारे जनता के बीच गए। उन्होंने भारतीय राजनीति में का नया ट्रेंड सेट करने की कोशिश की है।
बीजेपी के चाणक्य को भी जनता ने नकारा
दिल्ली चुनाव में बीजेपी के चाणक्य अमित शाह ने भी पूरा जोर लगा दिया था लेकिन जनता ने उनको नकारते हुए केवल आप के अच्छे कामों पर वोट देने के फैसला किया।
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बीजेपी ने चुनाव जीतने के लिए राष्ट्रवाद , हिन्दु-मुसलमान, हिन्दुत्व, राममंदिर या फिर पाकिस्तान जैसे मुद्दों को कई बार चुनाव में उठाया लेकिन दिल्ली की जनता को इससे कोई लेना-देना नहीं है।
अन्ना आंदोलन से केजरीवाल ने रखा राजनीति में कदम
दूसरी ओर आम आदमी पार्टी या फिर केजरीवाल का वजूद साल 2011 में अन्ना के नेतृत्व में इंडिया अगेंस्ट करप्शन नामक संगठन द्वारा चलाए गए जन लोकपाल आंदोलन से सामने आया। इसके बाद केजरीवाल ने दिसम्बर 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में झाड़ू चुनाव चिन्ह के साथ चुनाव में उतरने का फैसला किया।
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उन्हें 28 सीटें मिलीं और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई लेकिन 49 दिनों में केजरीवाल ने कांग्रेस से अलग हो गई। हालांकि 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में आप ने दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में से 67 सीटें जीत लीं और केजरीवाल एक बार फिर मुख्यमंत्री बने। यहीं से आप ने राजनीति में नया समीकरण बनाना शुरू कर दिया है।
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केजरीवाल मॉडल को अपना रहे दूसरे राज्य
आम आदमी पार्टी केवल जनता के हक के लिए दिल्ली में काम किया। केजरीवाल ने बिजली, पानी फ्री, स्कूल में सुधार, हॉस्पिटल और मोहल्ला क्लिनिक के आलावा महिलाओं को बसों में फ्री सफर दिया। इस वजह से दिल्ली की जनता केवल इस वजह से केजरीवाल दिल्ली की पहली पसंद बने।
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केजरीवाल के इन कामों से महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल की सरकार भी इतनी प्रभावित हुई वहां पर बिजली फ्री करने की बात सामने आ रही है। इतना ही नहीं अशोक गहलोत राजस्थान में मोहल्ला क्लिनिक की तरह जनता क्लिनिक खोलने की तैयारी में है। कुल मिलाकर देखा जाये तो भारतीय राजनीति में केजरीवाल भले ही नया नाम हो लेकिन उनकी राजनीतिक केवल जनता के हक के लिए सामने आ रही है। इस वजह से जनता भी उनको हाथों-हाथ ले रही है।