न्यूज डेस्क
देश की राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है और चुनाव आचार संहिता भी लागू हो गई है। दिल्ली में 8 फरवरी को मतदान होगा। इस चुनाव में केंद्र शासित प्रदेश के 1 करोड़ 46 लाख मतदाता सीएम अरविंद केजरीवाल के काम और पीएम नरेंद्र मोदी के नाम में से किसको चुनेंगे इस बात का फैसला 11 फरवरी को सामने आ जाएगा।
राजनीतिक विश्लेषक संतोष श्रीवास्तव की माने तो इस चुनाव का सबसे दिलचस्प पहलू सत्ताधारी पार्टी को लेकर ही है और अगर अरविंद केजरीवाल 2015 का प्रदर्शन दोहरा दें तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए।
दरअसल, एक जनआंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी पहले वर्ष 2013 में और फिर वर्ष 2015 में जनता का दिल जीतने में कामयाब रही थी। उस वक्त दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनाव में महज 28 सीटें पाने वाली आम आदमी पार्टी ने 2015 के चुनाव में 67 सीटें जीतकर सभी को हैरत में डाल दिया था।
अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने उस वक्त प्रचंड बहुमत हासिल किया था जब इस चुनाव से पहले हुए लोकसभा चुनाव-2014 में बीजेपी ने देश के बड़े भाग पर अपना भगवा परचम लहराकर सारे विपक्ष को किनारे लगा दिया था।
अब एक बार फिर से ये चुनाव ऐसे समय में होने वाले हैं जब 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पहले से ज्यादा लोकसभा सीटें हासिल कर देश में सरकार बनाई है। मतलब दिल्ली की सियासत की इस बिसात पर मोहरे एक बार फिर से उसी जगह पर हैं जहां पर वो 2015 में थे। यही वजह है कि इस बार भी चुनाव में सीधेतौर पर मुकाबला बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच होता ही दिखाई दे रहा है।
हालांकि दिल्ली की राजनीति को बहुत करीब से देखने वाले अविनाश भदौरिया का मानना है कि जिस तरह से देश में और खास कर दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ है और जो आज भी जारी है। उससे बीजेपी को चुनाव में लाभ हो सकता है। बीजेपी एक बार फिर नरेंद्र मोदी के चेहर पर चुनाव लड़ेगी और 2019 लोकसभा चुनाव की तरह ही राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाएगी।
बता दें कि बीजेपी ने पहले दो चुनाव डॉक्टर हर्षवर्धन और किरण बेदी का चेहरा सामने रखकर लड़ा था, जिसमें उसको करारी हार का सामना करना पड़ा। इस बार पार्टी किसके ऊपर ये जिम्मेदारी डालेगी ये देखना बेहद दिलचस्प होगा। बीजेपी के पास में इस चुनाव के लिए कई चेहरे हैं। इनमें बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के अलावा पार्टी के दूसरे दिग्गजों का भी नाम शामिल है।
माना जा रहा है कि पार्टी के इस चुनाव में सरकार बनाने लायक सीटें मिलने तक इसका एलान नहीं किया जाएगा। वहीं कांग्रेस की बात करें तो शीला दीक्षित के बाद पार्टी के पास कोई दमदार चेहरा दिखाई नहीं देता है। वहीं पार्टी के अंदर किसी भी एक नाम को लेकर एकजुटता का अभाव साफतौर पर दिखाई देता है। ऐसे में पार्टी का आप या बीजेपी को टक्कर देना काफी मुश्किल दिखाई देता है।