प्रो. अशोक कुमार
दल बदल, जिसे राजनीतिक दल-बदल भी कहा जाता है, एक ऐसी प्रथा है जिसमें कोई निर्वाचित प्रतिनिधि उस राजनीतिक दल को छोड़ देता है जिसके टिकट पर वह चुनाव जीता था और दूसरे दल में शामिल हो जाता है।
इतिहास:
भारत में दल बदल की प्रथा स्वतंत्रता से पहले से ही मौजूद थी, लेकिन 1960 के दशक में गठबंधन सरकारों के उदय के साथ यह अधिक आम हो गई। 1980 के दशक में, दल बदल ने भारतीय राजनीति में अस्थिरता पैदा कर दी, जिसके कारण अक्सर सरकारें गिर जाती थीं।
दल बदल विरोधी कानून:
1985 में, दल बदल को रोकने के लिए 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से दसवीं अनुसूची को संविधान में जोड़ा गया। इस कानून के तहत, यदि कोई निर्वाचित प्रतिनिधि दल बदल करता है, तो उसे अपनी सीट से अयोग्य घोषित किया जा सकता है और उसे अगले कुछ वर्षों तक चुनाव लड़ने से वंचित किया जा सकता है।
दल बदल के कारण: दल बदल के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
वैचारिक मतभेद: कभी-कभी, निर्वाचित प्रतिनिधि उस राजनीतिक दल की विचारधारा से सहमत नहीं रह जाते हैं जिसके टिकट पर उन्होंने चुनाव लड़ा था।
राजनीतिक महत्वाकांक्षा: कुछ निर्वाचित प्रतिनिधि अधिक शक्ति या पद प्राप्त करने के लिए दल बदलते हैं।
पैसे या अन्य प्रलोभन: कभी-कभी, निर्वाचित प्रतिनिधियों को दूसरे दल में शामिल होने के लिए रिश्वत या अन्य प्रलोभन दिए जाते हैं।
विरोधी दल द्वारा दबाव: विरोधी दल कभी-कभी सत्ताधारी दल के सदस्यों को दल बदलने के लिए धमकाते हैं या उन्हें मनाते हैं।
दल बदल के प्रभाव: दल बदल के कई नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
राजनीतिक अस्थिरता: दल बदल से सरकारें गिर सकती हैं और राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो सकती है।
मतदाताओं का विश्वास कम होना: दल बदल से मतदाताओं का राजनीतिक दलों और नेताओं पर विश्वास कम हो सकता है।
राजनीतिक भ्रष्टाचार: दल बदल से राजनीतिक भ्रष्टाचार बढ़ सकता है, क्योंकि निर्वाचित प्रतिनिधि अक्सर अपने निजी लाभ के लिए दल बदलते हैं।
नीतिगत निष्क्रियता: दल बदल से नीतिगत निष्क्रियता पैदा हो सकती है, क्योंकि सरकारें अक्सर राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रही होती हैं।
दल बदल को रोकने के उपाय: दल बदल को रोकने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं, जिनमें शामिल हैं।
दल बदल विरोधी कानून को मजबूत करना: दल बदल विरोधी कानून को और अधिक मजबूत बनाया जा सकता है ताकि दल बदल को रोकने में अधिक प्रभावी हो सके।
राजनीतिक दलों के बीच आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा देना:
राजनीतिक दलों के बीच आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा देने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि निर्वाचित प्रतिनिधि दल के नेतृत्व और सदस्यों के साथ सहमत हों।
मतदाताओं में जागरूकता पैदा करना: मतदाताओं में जागरूकता पैदा करने से उन्हें उन उम्मीदवारों को चुनने में मदद मिलेगी जो दल बदल की संभावना कम रखते हैं।
दल बदल क़ानून में संशोधन के लिए एक सुझाव- “ आचार संहिता लागू होने के बाद से चुनाव परिणाम तक “दल बदल “ अवैध माना जाएगा ।
निष्कर्ष:
दल बदल भारत में एक गंभीर समस्या है जिसके कई नकारात्मक प्रभाव हैं। दल बदल को रोकने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं, लेकिन इसके लिए राजनीतिक दलों, चुनाव आयोग और नागरिकों की ओर से एक ठोस प्रयास की आवश्यकता होगी।
(पूर्व कुलपति कानपुर, गोरखपुर विश्वविद्यालय)