जुबिली न्यूज डेस्क
उत्तराखंड के जोशीमठ में उन इमारतों को गिरा दिया जाएगा, जिनमें दरारें आ गई हैं. हिमालय में बसे इस कस्बे से दर्जनों परिवारों को निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया है. जोशीमठ से लोगों को निकालने के बाद अब उन घरों को गिराने का फैसला लिया गया है, जिनमें दरारें आ गई हैं. विशेषज्ञ और जोशीमठ में रहने वाले लोग बहुत लंबे समय से इस खतरे की चेतावनी देते रहे हैं. शहर के आसपास कई बिजली परियोजनाएं चल रही हैं, जिन्हें इस समस्या के लिए जिम्मेदार बताया जा रहा है.
बिजली परियोजनाएं बनी समस्या की वजह
जिन कंपनियों की परियोजनाएं इस इलाके में सक्रिय हैं, उनमें सरकारी थर्मल पावर कंपनी एनटीपीसी भी शामिल है. देश की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक कंपनी एनटीपीसी का कहना है कि उसके द्वारा बनाई जा रहीं सुरंगें और अन्य प्रॉजेक्ट जोशीमठ के संकट के लिए जिम्मेदार नहीं हैं.
उत्तराखंड में चमोली जिले के करीब 17 हजार लोगों का कस्बा जोशीमठ, हिंदू और सिख धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. ये बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब जैसे तीर्थों के अलावा फूलों की घाटी और औली के स्कीइंग स्लोप्स तक पहुंचने के रास्ते में आखिरी बड़ा सीमावर्ती शहर है. माना जाता है कि जोशीमठ, आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किए गए चार मठों में से एक है. लाखों श्रद्धालु और पर्यटक हर साल इस कस्बे की यात्रा करते हैं. धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से अहम होने के अलावा जोशीमठ का सामरिक महत्व भी है. यह हिमालयी क्षेत्र में भारत-चीन सीमा के पास बसे सबसे बड़े शहरों में है.
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तीर्थयात्राओं के ज्यादा प्रचलित होने और सहूलियत बढ़ने पर जोशीमठ, ब्रदीनाथ मार्ग पर एक बड़ा पड़ाव बनता गया. सर्दियों में बद्रीनाथ मंदिर के पट बंद हो जाने पर देवता की मूर्ति यहीं लाई जाती है. ऐसे में तकरीबन सालभर ही पर्यटन चालू रहता है. पर्यटकों की भारी आवाजाही को देखते हुए बीते दशकों में यहां होटल, रेस्तरां और धर्मशालाओं जैसे व्यावसायिक ढांचों का भी बड़े स्तर पर अनियोजित निर्माण हुआ.