गिरीश चन्द्र तिवारी
2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के लिए ‘सोने का अंडा’ देने वाली मुर्गी साबित हुआ था। तब मोदी लहर के बीच 80 में से 73 सीटें बीजेपी गठबंधन को मिली थी। समाजवादी पार्टी (सपा) को पांच और कांग्रेस को दो सीटों पर संतोष करना पड़ा था तो बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का खाता ही नहीं खुल पाया था।
यूपी के बल पर बीजेपी ने केन्द्र में सरकार बनाई थी। 2019 लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह यूपी के लिए 74 पार का नारा दे रहे है, लेकिन इस बार हालात पिछले आम चुनाव से अलग है।
जातीय समीकरण के साथ मोदी का चेहरा
पांच साल में किए काम को लेकर मैदान में उतरी बीजेपी का देश में कई जगह सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है। शायद इसी कारण बीजेपी ने कई दिग्गज नेताओं के साथ मौजूदा दो दर्जन से ज्यादा सांसदों का टिकट काटा है। बीजेपी 2014 की तरह इस बार भी मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है। सांसद प्रत्याशी कोई भी हो लेकिन वोट मोदी के नाम पर मांगा जा रहा है। यानी बीजेपी टिकट देते समय जातीय समीकरण को साध रही है और मोदी के चेहरे का भी इस्तेमाल अच्छे से कर रही है।
गठबंधन राह का रोड़ा
उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन के बाद बीजेपी की राह और कठिन हो गई है, मोदी का चेहरा आगे करने के बावजूद सपा-बसपा गठबंधन बीजेपी के लिए दलित-मुस्लिम और यादव बाहुल्य सीटों पर परेशानी का सबब बनती दिख रही हैं।
इस हिसाब से प्रदेश में लोकसभा की 20 सीटों पर सपा-बसपा गठबंधन का गणित बीजेपी पर भारी पड़ता दिख रहा है। बीजेपी गठबंधन ने 2014 लोक हासिल की सभा चुनाव में 80 सीटों में से जिन भाजपा 73 सीटों पर फतह की थीं, उनमें 20 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवारों की जीत का अंतर अधिकतम लाख-सवा लाख वोटों का था। इनमें भी बीजेपी के करीब डेढ़ दर्जन उम्मीदवार एक लाख से कम मतों के अतंर से जीते थे।
बीजेपी का समीकरण बिगड़ा
गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी उत्तर प्रदेश में रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल करते हुए 73 सीटों पर काबिज़ हुई थी। इस बार भी दावा 73 नहीं बल्कि 74 सीटों का है, लेकिन सीट दावों से नहीं, समीकरणों से मिलती है और इस दफे सपा-बसपा के गठबंधन ने बीजेपी के इस समीकरण को गड़बड़ा दिया हैं। बीजेपी को इस गठबंधन से अब खतरा महसूस होने लगा हैं।
योगी को नई जिम्मेदारी दी गई
इसी वजह से सीएम योगी आदित्यनाथ ने अब दलित-यादव यानी DY फॉर्मूले को तोड़ने में जुट गए हैं। इसीलिए अब कभी वह दलित के चौखट पर तो कभी यादवों के मठ में अपनी आमद दर्ज करा रहे हैं। विवादित बयान के बाद चुनाव आयोग के तीन दिन के प्रतिबंध को झेलते हुए सीएम योगी ने भले ही सीधे चुनाव प्रचार न किया हो, लेकिन मंदिर और मठों का दौरा कर DY समीकरण में सेंध लगाने का प्रयास जरुर किया। योगी ने अयोध्या में मंदिर दर्शन के बाद दलित के घर भोजन कर बीजेपी के दलित हितैषी होने का एक बड़ा सन्देश देने की कोशिश की।
दलितों के लिए बीजेपी की ये रणनीति कोई नई नहीं है
बता दें कि साल 2014 का इलेक्शन दलित समाज को अपनी तरफ लाने के लिए बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने दलितों के यहाँ भोजन कर अपनी तस्वीर मीडिया में दिखाने पे जोर दिया था। 2019 में इसकी शुरुआत सूबे में योगी ने की है।
यादव मठ में योगी
इस बार सपा-बसपा का गठबंधन है लिहाजा बीजेपी की निगाह यादव वोट में भी सेंध लगाने की है। यही वजह है कि प्रतिबंध के तीसरे दिन वाराणसी पहुंचे योगी ने अपने दौरे की शुरुआत बजरंग बली के दर्शन से तो की लेकिन इसके बाद योगी आदित्यनाथ यादव समाज के सबसे बड़े मठ गढ़वाघाट पहुंचे। वाराणसी में ये वह मठ है जहां यादव समाज की आस्था ज़्यादा है इसे वो भगवान कृष्ण के वंशज के रूप में देखते हैं। यहां पहुंचकर योगी ने गाय को हरा चारा और गुड़ खिलाया और आश्रम के महंत के साथ गुफ्तगू की।
बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग
यूपी के अंदर अभी तक यादवों पर समाजवादी पार्टी का एकाधिकार रहा है। बीजेपी को लगता है कि जिस तरह से उसने दलितों को अपने साथ जोड़ा था, उसी तरह यादवों को भी जोड़ सकती है। साल 2014 में बीजेपी ने सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला लाते हुए दलितों के साथ पिछड़े वर्ग को अपने साथ जोड़ा।
अब बारी खासतौर से यादव समाज की है, जो बीजेपी से अब तक दूर रही है। बीजेपी इस मिथक को तोड़ना चाहती है और उसकी उम्मीद गढ़वाघाट आश्रम पर टिकी है। बीजेपी को ये बात बखूबी मालूम है कि सपा-बसपा गठबंधन के तहत अगर यादव पूरी तरह से गोलबंद हो गए तो कई सीटों पर उसका समीकरण गड़बड़ा सकता है, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या यादव समाज बीजेपी को गले लगाएगा क्या सूबे के मुखिया की ये कवायद प्रदेश में सपा बसपा गठबंधन पर असर डालेगा। इसका जवाब तो चुनाव बाद ही पता चल पायेगा फिलहाल तो बीजेपी अपने हर दांव को खेल रही है।