न्यूज डेस्क
मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी मुद्रा योजना, देश की स्मॉल स्केल इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए सुगम कर्ज मुहैया कराने और छोटे कारोबार की सहुलियत के लिए शुरू की गई थी, लेकिन वर्तमान में यह योजना सवालों के घेरे में हैं।
श्रम मंत्रालय की एक ड्राफ्ट (मसौदा) रिपोर्ट से पता चलता है कि उद्यमिता को प्रोत्साहित करने और रोजगार पैदा करने में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की सफलता पर सवाल उठ रहा है। हालांकि अभी सरकार ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया है। मालूम हो कि केंद्र की मोदी सरकार मुद्रा योजना को रोजगार देने के रूप में प्रसारित करती रही है।
गौरतलब है कि मुद्रा योजना को साल 2015 में लॉन्च किया गया था। इसके तहत बिना कोलैटरल के तीन श्रेणियों में शिशु (50,000 रुपये तक), किशोर (50,000 रुपये से पांच लाख रुपये तक) और तरुण (पांच लाख रुपये से 10 तक) लोन दिए जाते हैं।
इंडियन एक्प्रेस में प्रकाशित खबर के मुताबिक इस रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि मुद्रा लोन के पांच लाभार्थियों में से सिर्फ एक ने ही इस लोन को नया बिजनेस स्थापित करने में खर्च किया है, बाकी लोगों ने अपने पुराने बिजनेस को ही बढ़ाने में इसका इस्तेमाल किया।
रिपोर्ट के अनुसार सर्वे में शामिल किए गए 94,&75 लाभार्थियों में से सिर्फ 20.6 फीसदी (19,&96) ने ही नया बिजनेस स्थापित करने के लिए मुद्रा लोन का इस्तेमाल किया, जबकि बाकी 79.4 फीसदी (74,979) लाभार्थियों ने लोन के पैसे का इस्तेमाल अपने मौजूदा बिजनेस के विस्तार में खर्च किया।
अखबार के अनुसार प्रधानमंत्री मुद्रा योजना सर्वेक्षण की ड्राफ्ट रिपोर्ट में पाया गया कि अप्रैल 2015 से दिसंबर 2017 के दौरान 1.12 करोड़ अतिरिक्त नौकरियां सृजित की गईं। ये संख्या दिए गए कुल लोन के मुकाबले 10 फीसदी से भी कम है।
गौरतलब है कि मुद्रा योजना के तहत 2015 से 2018 के बीच 5.71 लाख करोड़ रुपये के कुल 12.27 करोड़ लोन बांटे गए थे। हालांकि ड्राफ्ट रिपोर्ट में ये जानकारी नहीं है कि जितनी नई नौकरियां सृजित की गईं, उसमें से कितनी नई बिजनेस और कितने पुराने बिजनेस के द्वारा की गईं हैं।
मंत्रालय द्वारा कराए गए इस सर्वेक्षण में सृजित की गईं अतिरिक्त नौकरियों के प्रकार पर भी प्रकाश डाला गया है। कुल 1.12 करोड़ नौकरियों में से लगभग आधे (51.06 लाख) ‘स्व-रोजगार या कामकाजी मालिक’ वाली श्रेणी में थे, जिसमें बिना वेतनवाले परिवार के सदस्य भी शामिल हैं, जबकि 60.94 लाख नौकरियां ‘कर्मचारी या काम पर रखे गए कर्मचारी’ वाली श्रेणी में थीं।
केंद्र सरकार ने बेरोजगारी पर राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) की रिपोर्ट का जवाब देने के लिए इस सर्वेक्षण के निष्कर्षों का उपयोग करने की योजना बनाई थी। इसी साल चुनाव के ठीक बाद जारी की गई एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017-18 में बेरोजगारी दर पिछले 45 साल के सर्वो’च स्तर 6.1 फीसदी पर थी।