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संकट एक, प्रतिक्रिया अनेक

रतन मणि लाल

आम तौर पर किसी भी प्रकार का संकट काल राजनीतिक दलों के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज कराने और छवि को बेहतर बनाने का श्रेष्ठ समय होता है। ऐसे समय में, जब सत्तारूढ़ दल व सरकार संकट से निबटने के लिए आवश्यक कदम उठा रही होती है, तब विपक्षी दलों को की जा रही कार्यवाई में नुक्स निकालने, वजह-बेवजह से सुझाव देने, और आपत्ति दर्ज करने या विरोध करने का अच्छा मौका मिल जाता है। ऐसा करने में कोई भी दल पीछे नहीं रहता।

कोरोना वायरस की महामारी और संक्रमण के डर से बने माहौल में जहां उत्तर प्रदेश सरकार और अधिकारी जो उन्हें ठीक लग रहा है वो कर रहे हैं, वहीं विपक्षी दल इस अवसर का उपयोग वैसे ही कर रहे हैं जैसे उनसे अपेक्षित है।

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राष्ट्रीय स्तर पर, कांग्रेस पार्टी ने सबसे पहले सरकार के साथ सहयोग करने की बात कही थी और सरकार द्वारा घोषित आर्थिक मदद के पैकेज का स्वागत भी किया था। यहाँ तक कि राहुल गाँधी ने इस पैकेज को सरकार द्वारा “पहली बार उठाया गया एक अच्छा कदम” बताया था। लेकिन प्रदेश स्तर पर ये प्रतिक्रियाएं कुछ अलग हैं।

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प्रियंका की चिट्ठियां

कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा ने अपनी ओर से इस अवसर पर चिट्ठियां लिखने का क्रम शुरू किया है। पहले 24 मार्च को उन्होंने कांग्रेस के उत्तर प्रदेश के जिला व शहर स्तर के पदाधिकारियों को एक पत्र लिख कर उनसे लोगों की हर संभव मदद करने को कहा। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता राजनीतिक मतभिन्नता को छोड़ व व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठ कर लोगों की मदद करें, लॉक डाउन को सफल बनाने में सहयोग करें।

उन्होंने अगली चिट्ठी उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ को 27 मार्च को लिखी और उन्हें कोरोना वायरस से लड़ने में अपनी पार्टी की ओर से हर सहयोग का भरोसा दिया। उन्होंने योगी को बताया कि वंचितों तक हर संभव सहायता पहुंचाने के लिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं के वालंटियर की टीम और हेल्पलाइन हर जिलें में बनी हुई हैं जो जनसेवा और प्रशासन की मदद के लिए तैयार हैं।

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प्रियंका की तीसरी चिट्ठी देश की प्रमुख टेलिकॉम (दूरसंचार) कंपनियों के प्रमुख कार्यपालकों को थी, जिसमे उन्होंने लॉकडाउन के बीच प्रवासियों के संकट को देखते हुए अपने नेटवर्क पर एक महीने के लिए इनकमिंग-आउटगोइंग कॉल मुफ्त करने की गुजारिश की।

यह पत्र उन्होंने जिओ टेलिकॉम के मुकेश अंबानी, वोडाफोन-आईडिया के कुमार मंगलम बिड़ला, बीएसएनएल के पीके पुरवार और एयरटेल के सुनील भारती मित्तल को लिखी। स्पष्ट है कि इन तीनो ही पत्रों में उनकी ओर से एक सकारात्मक पहल की गयी, जिसकी चारों ओर सराहना की गयी। ये बात अलग है कि कांग्रेस के अन्य राष्ट्रीय स्तर के नेता या तो इस समय किसी भी प्रकार की बयानबाजी से बच रहे हैं, या अपने अंदाज़ में केंद्र सरकार विशेषकर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर प्रहार कर रहे हैं।

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अखिलेश का अलग रुख

अब आते हैं समाजवादी पार्टी की ओर। अध्यक्ष व पूर्व मुख्य मंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि “इन हालात में सत्ताधारी दल की जिम्मेदारी जहां ज्यादा है, वहीं मुख्य विपक्षी दल के रूप में सपा भी जनता के दुख-दर्द के प्रति पूरी तरह संवेदनशील है।” इसके बाद उन्होंने समाजवादी पार्टी के कई नेताओं, नेता, विधायक, कार्यकर्ताओं की सराहना की, जो भोजन-पानी वितरित कर रहे हैं, बीमारों को दवाएं पहुंचा रहे हैं, बुजुर्गों का ख्याल रख रहे हैं और उन्होंने अपना आर्थिक सहयोग भी दिया है।

एक और बयान में उन्होंने सुझाव दिया कि भाजपा सरकार समाजवादी सरकार के समय भोजन के लिए वितरित किए गए समाजवादी राहत पैकेट को बांटने का निर्देश जिलाधिकारियों को दे।

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यह योजना अखिलेश शासनकाल में सूखा या बाढ़ ग्रस्त इलाकों में रहत बांटने के लिए बनाई गई थी। अखिलेश यादव द्वारा दिए गए अन्य सुझावों में उनकी सरकार द्वारा चलाई गयी समाजवादी पेंशन, किसान सम्मान राशि योजना को फिर से शुरू किये जाना शामिल है।

ऐसा लगता है कि अखिलेश यादव इस मौके पर एक ओर तो अपने पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना चाह रहे हैं और दूसरी ओर, मुख्य मंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल की योजनाओं की याद दिलाना चाह रहे हैं। इस महामारी के फैलने के शुरूआती दौर में तो सपा नेता राम गोविन्द चौधरी ने नागरिकता कानून को कोरोना वायरस से भी ज्यादा खतरनाक बताया था।

बसपा कहाँ है

इन सबसे अलग, बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती इस मुद्दे पर कुछ शांत दिख रहीं हैं। उन्होंने प्रधान मंत्री द्वारा लॉक डाउन घोषित किये जाने का 25 मार्च को स्वागत किया था और अपने बयान में गरीबों को उनकी जरूरत की चीजें मुफ्त मुहैया कराने की मांग की थी। अगले दिन, उन्होंने केन्द्र सरकार द्वारा घोषित किये गए आर्थिक पैकेज को एक “सराहनीय कदम” बताया था।

इसके अलावा, मायावती की ओर से कोई विशेष मांग, सुझाव या आलोचना नहीं आई। ऐसा प्रतीत होता है कि पिछले कुछ वर्षों से लगातार मिल रही राजनीतिक निराशा की वजह से मायावती न केवल किसी भी प्रकार की कठोर प्रतिक्रिया देने से बच रहीं हैं, और शायद उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यों में अपने दल के प्रतिनिधियों में व्याप्त बेचैनी से भी परेशान हैं।

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भाजपा की अलग शैली

सत्तारूढ़ दल होने के नाते, और अपने अलग कार्यशैली की भी वजह से, भारतीय जनता पार्टी के नेता व कार्यकर्ता शुरू से ही इस आपदा के समय में काम कर रहे हैं। अपने नेतृत्त्व के आदेश के अनुसार, बूथ स्तर पर कार्यकर्ता टीम बना कर राहत कार्य में लगे हैं व खाने की सामग्री, दावा आदि वितरित कर रहे हैं।

सभी सांसद, विधायक अपनी निधि से धन देने का एलान कर चुके हैं। जाहिर है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कम करने के तरीके के अनुरूप, भाजपा कार्यकर्ता भी अनुशासित तरीके से अपना काम कर रहे हैं। और धन व संसाधनों की कमी यहाँ नहीं हैं।

संकट का समय

इसमें कोई शक नहीं है कि कोरोना वायरस की महामारी देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लिए एक अप्रत्याशित संकट है, और इससे निबटने के लिए क्या रणनीति हो इस का कोई पिछला उदाहरण नहीं है। शायद राजनीतिक विरोध को थोड़ी देर के लिए भुला कर स्थिति को सामान्य बनाने में सभी वर्ग सहयोग करें, तो आगे चल कर परम्परागत राजनीति करने का समय जल्दी वापस आएगा।

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