ओम दत्त
मानव शरीर में नोवेल कोरोना वायरस के संक्रमण का प्रसार व्यक्ति में अलग-अलग होता है। जबकि कई स्पर्शोन्मुख रहते हैं औरअन्य हल्के लक्षणों का अनुभव करते हैं।
प्रभावित लक्षणों के केवल एक छोटे से हिस्से में गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं और औसतन लगभग 1% पुष्ट मामले बीमारी के कारण मर जाते हैं। हालांकि बीमारी की मृत्यु दर को अलग-अलग आबादी के बीच अलग-अलग दिखाया गया है। इसलिए कुछ आबादी के बीच कोरोना वायरस घातक बनाने वाले कारकों को समझना एक प्रभावी प्रतिक्रिया के लिए महत्वपूर्ण है ।
पूरी दुनियां में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या12अप्रैल को 14.00बजे तक 17,83,948 हो गयी है जिसमें मरने वालों का आंकड़ा 1,08,959 को पार कर गया है ।अकेले भारत में अब तक 290 लोगों ने जान गवां दी है।
विशेषज्ञों की नजर में: प्रदूषित हवा में कोरोना वायरस से कैसे बढ़ जाता है,मौत का जोखिम
- अमेरिका में किए गए एक अध्ययन का दावा है कि वायु प्रदूषण के उच्च स्तर वाले क्षेत्रों में रहने वालों से कोरोना से मौत का बढ़ता जोखिम जुड़ा है। निष्कर्ष में उन्होंने पाया कि PM 2.5 के लिए लंबी अवधि के एक्सपोजर में थोड़ी वृद्धि से कोविड-19 की मृत्यु दर में उल्लेखनीय वृद्धि होती है ।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय के टी एच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोध कर्ताओं ने अपने शोध में PM2.5 स्तर पर डेटा का विश्लेषण किया और पाया कि अमेरिका में होने वाली मृत्यु में औसतन हवा में PM2.5 सिर्फ एक माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर अधिक पाये जाने वाले काउण्टियों के कारण कोविड-19 की मृत्यु दर 15% अधिक थी।
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- PM2.5 क्या होता है,और इसका रोल क्या है यह जानने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि कोरोना वायरस का गम्भीर संक्रमण शरीर में किस हिस्से को सबसे अधिक डैमेज करता है और तभी हमें प्रदूषण PM2.5 का असर समझने में आसानी होगी।
कोरोना वायरस फेफड़ों को करता है कमज़ोर
गंभीर मामलों में, जब वायरस फेफड़ों में पहुंचता है, तो यह सूजन ( इंफ्लामेशन) को पैदा करता है। जिससे फेफड़ों को रक्तप्रवाह में ऑक्सीजन भेजने में कठिनाई आती है। इस वजह से फेफड़ों में पानी भरना शुरू हो जाता है और सांस लेने में मुश्किल आने लगती है। ऐसे मरीज़ों को सांस लेने में मदद के लिए वेंटीलेटर का सहारा लेना पड़ता है।
PM2.5 (पार्टिकुलेट मैटर 2.5) किसे कहते हैं
फाइन PM2.5 एक वायु प्रदूषक है जो हवा के स्तर अधिक होने पर लोगों के स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय है। PM2.5 वायुमंडलीय पार्टिकुलेट(PM) को संदर्भित करता है जिसमें 2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास होता है। यह मानव बाल के व्यास का लगभग 3% है। ये ऐसे कण हैं जो10 माइक्रोमीटर या उससे भी कम हैं। उन्हें महीन कण भी कहा जाता है, ये फेफड़ों और हृदय प्रणाली की गहराइयों में प्रवेश कर जाते हैं। PM2.5 में सल्फर,नाइट्रेट और ब्लैक कार्बन जैसे प्रदूषक शामिल हैं।
कब और कैसे जानलेवा हो जाता है PM2.5
एक अध्ययन में पाया गया कि छोटे प्रदूषित कणों (पालुटैण्ट पार्टिकिल्स) को PM2.5 के रूप में जाना जाता है जो वर्षों से सम्पर्क में होने से ,सांस में जा कर तेजी से वायरस से मरने की संभावना बढ़ाते हैं।
चूंकि वह इतने छोटे और हल्के होते हैं कि ठीक कण भारी कणों की तुलना में हवा में लंबे समय तक रहते हैं इससे मनुष्य और जानवरों के शरीर में बने रहने की संभावना बढ़ जाती है।2.5 माइक्रोमीटर से छोटे कण, कान नाक और गले को बाईपास करने में सक्षम होने के कारण फेफडो़ और हृदय में प्रवेश करके संक्रमण को बढ़ा कर श्वास नली को अवरुद्ध कर देते हैं।
अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि PM2.5 के लिए लंबे समय तक जोखिम, धमनियों में पट्टीका जमा हो सकता है जिससे संवहनी सूजन और धमनियां सख्त हो सकती हैं,जो अंततः दिल का दौरा और स्ट्रोक का कारण बनता है। अध्ययन में वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि प्रत्येक 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर में सूक्ष्म कण वायु प्रदूषण में वृद्धि होती है।
“प्रतिष्ठित जरनल एनवायरमेंटल पाल्यूशन”में प्रकाशित इटैलियन स्टडी में प्रकाश डाला गया है कि यह नोबेल कोरोना वायरस ने “लंबार्डी और एमीलिया रोमानिया” जैसे क्षेत्रों में उच्च स्तर का प्रभाव दिखाया। यह दोनों क्षेत्र यूरोप के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में शामिल हैं। अध्ययन का निष्कर्ष है कि, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में कोरोना वायरस संबंधी स्वास्थ्य जटिलताओं पर विभिन्न क्षेत्रों में प्रदूषण की भूमिका का वैज्ञानिक दृष्टि से मूल्यांकन किया जाना बहुत आवश्यक है।
यदि “दिल्ली”और “बीजिंग” जैसे दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में समान सहसंबंध सिद्ध होते हैं तो गैर आवश्यक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने से पहले मूल्यांकन करने के लिए शहर के अधिकारियों के पास एक अतिरिक्त कारक होगा।
वायु प्रदूषण के स्तर में गिरावट कोरोनावायरस प्रेरित लाक डाउन है, जो पिछले कुछ हफ्तों से शहर की चर्चा है ।भले ही लाकडाउन का प्राथमिक उद्देश्य सोशल डिस्टेंसिंग से वायरस के प्रसार को सीमित करना था लेकिन नए अध्ययनों से पता चला है कि वायु प्रदूषण में गिरावट कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई में भी एक वरदान साबित हो सकती है।
भारत जैसे देशों के लिए जहां शहरी वायु प्रदूषण का स्तर वर्ष के अधिकांश भाग के लिए उच्च रहता है यह अध्ययन समय पर चेतावनी हो सकता है। सौभाग्य से भारतीय शहरों में वायु गुणवत्ता मार्च के बाद से अधिकांश शहरों में मध्यम स्तर तक संतोषजनक बनी हुई है ।
अगले अंक में पढ़ें-प्रदूषण के सुधरे स्तर को स्थाई बनाने के लिये उठाने होंगे ये कठोर कदम।
(लेखक जुबिली पोस्ट मीडिया वेंचर में एसोसिएट एडिटर के पद पर कार्यरत हैं)