जुबिली न्यूज़ डेस्क
कोरोना वायरस महामारी से पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। भारत को भी इससे झटका लगा है। इससे 2024-25 तक 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को हासिल करने में भी देरी हो सकती है।
वैश्विक स्तर पर काम करने वाली वित्तीय संस्था बैंक ऑफ अमेरिका सिक्योरिटीज (बोफा) के अनुसार, कोविड-19 महामारी की वजह से भारत को उत्पन्न संकटों से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का महत्वकांक्षी लक्ष्य हासिल करने में तीन साल की देरी हो सकती है।
ये भी पढ़े:लॉकडाउन की अफवाह के बीच अपने घरों की तरफ निकले मजदूर
ये भी पढ़े:आईपीएस अमिताभ ठाकुर को सरकार ने समय से पहले किया रिटायर
यह लक्ष्य 2031-32 तक ही हासिल हो सकता है। इस संकट के चलते देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पिछले साल के मुकाबले 15.7 प्रतिशत पहले ही घट चुका है। भारत इस समय दुनिया में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
बोफा द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया महामारी के कारण उत्पन्न संकट को देखते हुए अब हमारा अनुमान है कि भारत की अर्थव्यवस्था 2031-32 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी।
अगर भारत की वृद्धि दर 9 प्रतिशत रहती है तो यह 2031 तक (अमेरिकी डॉलर में) जापान के बाजार मूल्य पर आकलित जीडीपी की बराबरी कर लेगा और अगर वृद्धि 10 प्रतिशत रहती है तो भारत को 2030 में यह स्थिति हासिल हो जाएगी।
ये भी पढ़े:दो सगी बहनों की हत्या से दहला पीलीभीत, एक का फंदे लटका मिला शव तो दूसरे का खेत में
ये भी पढ़े:वसूली कांड : भाजपा ने खोला मोर्चा, फडणवीस ने सबूत देकर उठाए सवाल
रिपोर्ट में हालांकि न तो घरेलू अर्थव्यवस्था और न ही जापान की अर्थव्यवस्था के आकार को बताया गया है। वैसे 2019- 20 में भारत की अर्थव्यवस्था 2650 अरब डॉलर की थी जबकि जापान की अर्थव्यवस्था 2020 में 4870 अरब डॉलर की थी।
रिपोर्ट के अनुसार यह आकलन वास्तविक आधार पर 6 प्रतिशत वृद्धि, 5 प्रतिशत मुद्रास्फीति और रुपए की विनिमय दर में 2 प्रतिशत की गिरावट की मान्यता पर आधारित है।
इससे पहले, बोफा ने 2017 में यह अनुमान जताया था कि भारत 2027-28 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश होगा। यह अनुमान जनसंख्या संबधी लाभ, वित्तीय परिपक्वता में वृद्धि और बड़े बाजार के उभरने जैसी मान्यताओं पर आधारित था।
जारी रिपोर्ट में बोफा के अर्थशास्त्रियों ने कहा कि तीनों तत्व अब मजबूत हो रहे हैं। इसके अलावा दो अन्य उत्प्ररेक तत्व हैं जो संरचनात्मक बदलाव को समर्थन कर रहे हैं। इसमें से एक आरबीआई द्वारा करीब आठ साल में विदेशी मुद्रा भंडार का उपयुक्त स्तर हासिल करना है।
इससे वैश्विक झटकों से अर्थव्यवस्था के जोखिम को कम कर रुपए को स्थिर रखने में मदद मिलनी चाहिए। साथ ही, नरम नीति से वास्तविक ब्याज दर नीचे आई है जो 2016 से अर्थव्यवस्था की वृद्धि को प्रभावित कर रही थी।
रिपोर्ट के अनुसार सतत वृद्धि के रास्ते में एकमात्र मुख्य जोखिम तेल की कीमत हैं, खासकर तब जब यह 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर पहुंच जाती है। इसमें कहा गया है वास्तव में हमारा वास्तविक वृद्धि दर 6 प्रतिशत का अनुमान 2014 से हो रही औसतन 6.5 प्रतिशत वृद्धि और 7 प्रतिशत की संभावना के हमारे अनुमान से नीचे है।
ये भी पढ़े:घरों में काम करने वाली महिला को टिकट देकर भाजपा ने किया हैरान
ये भी पढ़े:असम चुनाव : भाजपा के ‘संकल्प पत्र’ में सीएए का जिक्र नहीं